मेरा नाम शांति (बदला हुआ) है। मेरी उम्र 32 साल है, रंग सावला, लम्बाई 5"4, और थोड़ी मोटी लेकिन बराबर फिट। मेरे गाँव का नाम रतनपुर है। मेरी शादी, जब मैं 18 साल की तब ही हो गई थी। मेरे परिवार में मेरी दो बड़ी बहनें और मुझसे छोटा भाई और मम्मी-पापा।
मैंने बी.एस. सी. तक पढ़ाई की है। मेरे पति का नाम शिवप्रसाद, जो कम पढ़ा लिखा किसान है। वह रात में मेरे साथ साधारण तरीके से चुदाई करता था जिससे मेरी प्यास मिटती नहीं थी। लेकिन आदत बन चुकी थी, जल्दी से चुदाई करवा कर सो जाने की।
जब मैं 19 साल की थी तभी मुझे बच्चा हो गया था। उसका नाम राधे है। जब वह 5 साल का हो गया, तब उसे पास के शहर के स्कूल में दाखिला दिला दिया और मेरे ही ताऊ ससुर के पोते अंशु के साथ पढ़ने के लिए भेज दिया जो कालेज में पढ़ता था।
राधे शहर में अंशु के साथ रहने लग गया था। अंशु 19 साल का था और खुद खाना बनाता था। उनके खाने-पीने के सामान घर से ही कोई जाकर पहुँचाता था। शुरू से ही अंशु के पापा यानि मेरे जेठ पहुँचा देते थे।
लेकिन एक दिन वो किसी गाँव में किसी निमंत्रण में चले गए। दोनों के लिए सामान पहुँचाना जरूरी था, मैंने अपने पति से कहा तो उन्होंने कहा- मैं चला तो जाता लेकिन इन भैंसों को और बैल को कौन घर लायेगा... ये किसी को पास नहीं आने देते, इतने मरखने है। ऐसा कर तू ही चली जा, पढ़ी-लिखी भी है.... तुझे सूझ भी पड़ जाएगी। यह कहानी आप अन्तर्वासना.कॉम पर पढ़ रहे हैं।
अगले दिन मुझे मेरे पति ने, एक बोरे में गेंहू, दाल, चावल रखकर बस में बिठा दिया। दो-ढाई घंटे में मैं शहर जा पहुँची। वहाँ इधर-उधर ढूंढ कर तो अंशु के घर पहुँची मुझे देखते ही वो मुझे अपने कमरे में ले गया, जहाँ मेरा बेटा और वो रहता था।
राधे वहाँ नहीं था और मैं भी सोच रही थी कि वह स्कूल गया होगा। लेकिन शाम तक नहीं आने पर मैंने अंशु से पूछा तो उसने बताया कि राधे अपने स्कूल के पिकनिक पर 15 दिनों के लिए गया हुआ है।
फिर मुझे थोड़ी शांति हुई। मैं उठी और हाथ-मुँह धोने चली गई। थोड़ी देर में खाना बनाया और अंशु दोनों ने खाया। अंशु को पढ़ना था इसलिए वह देर से सोता था लेकिन मैं थकी हुई थी इसलिए जल्दी ही सो गई।
एक ही कमरा था और बिस्तर भी एक ही था पर थोड़ा लम्बा चौड़ा था, मेरे पास ही वह सोया।
रात में मैं पेशाब करने के लिए उठी और पेशाब करके सोने लगी तो मैंने अंशु को देखा। वह तौलिया लपेट कर सोया हुआ था। नींद में उसका तौलिया खुल गया था और उसकी चड्डी के अंदर उसका लंड पूरा तना हुआ था। पहले तो मैं चकरा गई क्योंकि किसी सोते हुए आदमी का लंड पहली बार देखा था, फिर थोड़ी देर में सोचा कि इसको पेशाब आ रही होगी इसलिए तना हुआ है। लेकिन मैं उसको जगाये बगैर ही सोने लगी पर उसका लंड देखकर मेरी नींद उड़ गई, मेरी चूत में खुजली होने लगी, पूरा शरीर कांपने लगा क्योंकि मेरी कामवासना जाग गई थी।
मैं उसे एकदम तो पकड़ नहीं सकती थी इसलिए उससे चुदने की योजना बनाने लगी।
अगले दिन सुबह वह जल्दी उठ गया और मुझे भी उठा दिया। नहा-धोकर वह कालेज चला गया, मैं भी नहा धोकर तैयार हो गई और खाना भी तैयार कर दिया। वह शाम चार बजे आ गया, खाना खाया और बालकनी में कुर्सी लगाकर बैठ गया।
मैंने यों ही उससे बातचीत शुरू की- क्यों रे अंशु ! तुम रोज ऐसे ही खाना खाते हो क्या?
"नहीं काकी ! कभी कभी लेट हो जाते हैं। लेकिन राधे का टिफ़िन मैं जल्दी तैयार करके स्कूल भेजता हूँ।
"ठीक है लेकिन खाना वक्त पर खाना चाहिए।"
"ठीक है काकी, आपने खाना खा लिया या नहीं?"
"खा लिया मैंने कभी का !"
फिर मैंने पूछा- कालेज में पढ़ने ही जाता है या और कुछ करने?
"पढ़ने ही जाता हूँ पर क्यों?"
"नहीं !! कभी तुम मस्ती में लग जाओ और पैसे बर्बाद हों।"
"नहीं ! पढ़ता हूँ !"
"अच्छा क्लास की कोई लड़की पटा रखी है क्या?" उसको ऐसा मूड में लाने के लिए मैंने अचानक पूछा।
वह एकटक देखने लगा, उसे शर्म आ गई। सर झुककर नहीं में जवाब दिया।
मैंने बात को टालते हुए कहा- चल ठीक है, थोड़ा पढ़ ले, फिर रात को जल्दी सो जाना।
रात को वह दस बजे ही सो गया।
मैंने सोने का नाटक करते हुए उसकी जांघ पर हाथ रखा, लेकिन वह सोया हुआ था। उसने कोई प्रतिक्रिया नहीं की। मेरा और भी साहस बढ़ गया, अब मैंने उसका लंड हाथ में पकड़ लिया और एक पाँव उसके पांव पर रख दिया।
मैंने अपनी साड़ी ब्लाउज से अलग कर ली और एक बटन खोल लिया।
उसकी अचानक नींद खुली, उसने मेरे हाथ को अलग कर दिया और मुझे गोर से देखने लगा। लेकिन मैं उठने वाली नहीं थी। उसे लगा कि काकी का हाथ नींद में रखा गया है, वह फिर सो गया।
मैंने फिर उसका लंड पकड़ लिया और उसके ज्यादा पास सरक गई। उसे नींद नहीं आ रही थी, वह मेरी हरकतें देख रहा था। अब मैंने अपने ब्लाउज के सारे बटन खोल कर उसकी छाती पर अपने बोबे टिका दिए और लंड को जोर से हिलाने लगी। लेकिन फिर भी वह ऐसा ही पड़ा था, वह कोई विरोध नहीं कर रहा था, तो मेरी हरकतें और बढ़ गई। मेरा लंड हिलाना और तेज हो गया...
थोड़ी देर बाद पिचक-पिचक की आवाजें आने लगी, मेरा हाथ गीला लगने लगा, देखा तो वह झड़ चुका था।
अब मैं उससे अलग होकर सो गई और उसकी तरफ पीठ करके सो गई। लेकिन नींद नहीं आ रही थी क्योंकि जब तक चूत शांत न हो तब तक नींद कैसे आये।
अंशु भी जाग चुका था और मेरी घटिया हरकतों को जान चुका था लेकिन उसे भी मजा आया था।
थोड़ी देर बाद उसने मुझे देखा ...उसे लगा कि काकी सो गई है तो उसने मेरा पेटीकोट ऊपर कर दिया और मेरी पेंटी को चूतड़ों पर से अलग करके अपना लंड घुसाने लगा।
मुझे मजा आ रहा था और लग रहा था कि मेरी सालों की प्यास आज अच्छी तरह से बुझेगी। वह मेरे और करीब आ गया और तेज धक्के लगाने लगा। बहुत देर तक रुक रुक कर धक्का लगाता रहा, जब उसके झड़ने का समय आया तो उसने मेरे कूल्हों पर ही छोड़ दिया।
अब वह बालकनी में चला गया जहाँ अगल-बगल में लेट्रिन-बाथरूम भी था। उसे बहुत देर हो चुकी थी वह आया नहीं था। मैंने जाकर देखा तो लेट्रिन में अपना लंड पकड़ कर जोर जोर से हिला रहा था।
मैं उसका वापस झड़ने से पहले ही उसके सामने चली गई। वह शरमा गया लेकिन मैंने उससे कहा- एक प्यासी चूत के होते हुए तुम्हें हाथ से करने की जरुरत नहीं है मेरे आशिक।
यह कह कर मैं उसे कमरे में ले आई और उसके कपड़े उतार दिए। उसने भी मेरे सारे कपड़े उतार दिए। लग रहा था जैसे वह चुदाई के खेल में बहुत माहिर हो और होना भी चाहिए क्योंकि उसका लंड ज्यादा बड़ा नहीं था।
कपड़े उतारने के बाद मैंने तुरंत उसके लंड को अपने मुँह में भर लिया और बेहताशा चाटने लगी, कुल्फी की तरह चूसने लगी क्योंकि लंड पहले बार मिला था चूसने को।
वह कराह रहा था, मैं जोर जोर से चूसती जा रही थी। थोड़ी देर चुसवाने के बाद उसने मेरा मुँह दूर किया और मुझे बिस्तर पर लेटा कर मेरी दोनों टाँगें फ़ैला दी और मेरी चूत को चाटने लगा।
अंशु जोर से जीभ घुमाने लगा और मैं सिसकारियाँ भरने लगी।
सारा कमरा मेरी आवाजों से गूंजने लगा था- आ आह ऊऊ ऊईई ईईइ अन्शूऊ धीरे नाआअ ईई उईई माआ मार दीईइ रीई !
मैं पूरी तरह गरम हो चुकी थी।
उसने उसका लंड पकड़ कर मेरी चूत पर फ़िराया और अचानक मेरी चूत में भर दिया।
मैं दर्द से चिल्ला उठी- ...आ आआ आअ ह हह हइ इईईइ अहिस्ता झटके मार अंशु ! खून निकलने लग जायेगा याआअर !
पर वह मदहोश था। वह और जोर से चोदने लगा था...थोड़ी देर में मैं तो झड़ चुकी थी...
लगभग दस मिनट के बाद वह भी झड़ने वाला था.. सो उसने धक्के और तेज कर दिए।
थोड़ी देर में अंशु ने अपना सारा वीर्य मेरी चूत के अन्दर ही छोड़ दिया और लंड चूत में ही डालकर मुझसे लिपट कर कम से कम दस मिनट तक मेरे ऊपर लेटा रहा।
मैंने उठ कर देखा तो तीन बज चुके थे। हम दोनों उठे और बाथरूम में जाकर दोनों ने साथ में ही पेशाब किया। पहले उसने फिर बाद में मैंने किया।
मैं जोर लगा रही थी जिससे सारा वीर्य धीरे धीरे बाहर निकल रहा था। पूरा निकल गया तो चूत को पानी से धोकर साफ किया और उठकर वापस बिस्तर पर जा गिरी।
मैंने उसका लंड पकड़ कर कहा- क्यों रोज लड़कियों की गांड मारता रहता है क्या? लंड कितना छोटा हो गया है..?
"नहीं काकी ! वो तो हम दोस्त के यहाँ सेक्सी फिल्म देख देख कर हिलाते है और फिर रोज आदत हो गई थी इसलिए छोटा रह गया।"
"ठीक है, फिर भी काम तो चल जायेगा।"
हम फ़िर गर्म होने लगे थे, मैंने फिर से उसका लंड मुँह में लिया और चूसने लगी। उसने मुझे उल्टा होने को कहा 69 के जैसे !
अब हम साथ में चूस रहे थे, बहुत मजा आ रहा था।
उसका लंड फ़िर तन गया और उसने मुझे घोड़ी बनने को कहा।
मैंने पूछा तो कहने लगा- अब मैं आपकी गांड में लंड डालूँगा।
मैंने कहा- दर्द होगा अंशु...
"नहीं होगा ! मैं आराम से करूँगा !"
और मुझे घोड़ी बना दिया।
उसने मेरी गांड में प्यार से डाला, मेरा पूरा सांस अटक गया, आआअ अ ईई ! मैं कराहने लगी जिससे वह ज्यादा उत्तेजित होने लगा और जोर से डालने लगा।
काफ़ी देर तक यह चलता रहा। जब वह झड़ने वाला था तब अपना लंड चूत से निकाल कर मेरे मुँह के ऊपर लाकर हिलाने लगा, मुझसे मुँह खुलवाया और सारा रस मेरे मुँह में छोड़ दिया और बोला- पी जाओ इसको ! अच्छा लगेगा।
मैं भी पी गई सारा का सारा, कुछ अलग ही मजा आया।
साढ़े चार बज चुके थे, अब हम उठे और नहाये।
इस तरह रोज राधे के आने तक हमने अलग-अलग तरीकों से चुदाई की, और अब भी कई बार मैं शहर जाकर अंशु से अपनी चूत की प्यास बुझवा कर आती हूँ।
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