Tuesday, January 28, 2020

कामिनी (6-10)

मेरे दरवाजे पर दस्तक के साथ मम्मी की आवाज़ “अरे तुझे जाना है कि नहीं, घड़ी देखो 7 बज रहे हैं।” सुन कर मैं बदनतोड़ चुदाई से थकी, अथमुंदी आंखों से अलसाई सी उठती हुई बोली, “हां बाबा हां पता है जाना है, तैयार होती हूं,” मन में तो कुछ और ही बोल रही थी, “तुम लोगों के नाक के नीचे जब तीन तीन हवस के पुजारी बूढ़ों से रात को नुच चुद कर छिनाल बन रही थी तो घोड़े बेच कर सो रही थी और अब बड़ी आई है मुझे उठाने।”
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खैर उठी और तैयार हो कर नाश्ते के टेबल पर आई तो देखा तीनों बूढ़े मुस्कुराते हुए मुझे ही देख रहे थे। मेरी बदली हुई चाल पर सिर्फ उन्हीं ने ध्यान दिया था क्योंकि ये उन्हीं के कमीनी करतूतों का नतीजा था। मैं उनपर खीझ भी रही थी और प्यार भी आ रहा था। ” साले हरामी बूढ़े, चोद चोद कर मेरे तन का कचूमर निकाल दिया और अब खींसे निपोरे हंस रहे हैं।” मैं खिसियानी सी मुस्कान के साथ उनसे बोली, “आपलोग तैयार हो गये क्या?”
“ये तो कब से तैयार बैठे तुम्हारा ही इंतज़ार कर रहे हैं।” पापा बोले, “जल्दी नाश्ता करो और निकलने की तैयारी करो, मैं तुमलोगों को बस स्टैंड तक छोड़ दूंगा।” मैं नाश्ता कर के उन लोगों के साथ बस स्टैंड पहुंची। पापा ने हमलोगों का टिकट कटा कर बस में बैठाया और जब हमारी बस छूटने को थी, वे वापस लौट गए।
जब बस छूटी उस समय 9 बज रहा था। मौसम काफी खराब हो रहा था, घने बादल के साथ जोरों की बारिश शुरू हो चुकी थी। दिन में ही रात की तरह अंधकार छाया हुआ था। बस की सीट 3/2 थी। 3 सीटर सीट में मुझे बीच में बैठाकर दाहिनी ओर नानाजी और बाईं ओर बड़े दादाजी बैठ गये। दूसरी ओर 2 सीटर पर दादाजी बैठे कुढ़ रहे थे और बार बार हमारी ओर देख रहे थे। ये लोग धोती कुर्ते में थे और मैं स्कर्ट ब्लाउज में। तीन दिनों के ही नोच खसोट में मेरा ब्लाउज टाईट हो गया था और मैं काफी निखर गई थी। सीट का बैक रेस्ट इतना ऊंचा था कि हम पीछे वालों की नज़रों से छिप गए थे।
बगल वाले 2 सीटर पर दादाजी के साथ एक और करीब 60 – 62 साल का मोटा ताजा पंजाबी बूढ़ा बैठा हुआ था। बस जैसे ही चलने लगी, मैं ने अपनी दाई जांघ पर नानाजी के हाथ का रेंगना महसूस किया और बाईं जांघ पर बड़े दादाजी का हाथ रेंगने लगा।
तभी “टिकट?” कंडक्टर की आवाज आई, मैं ने देखा दुबला पतला काला कलूटा टकला, ठिगना, करीब 4 फुट 10 इंच का, 50-55 साल का, अपने सूअर जैसे चेहरे पर पान खा खा कर लाल मुंह में बाहर की तरफ भद्दे ढंग से निकले काले काले दांत निपोरे बड़ी अश्लीलता से मुझे देखता हुआ मुस्कुरा रहा था। हमारे चेहरों का रंग उड़ गया था। झट से बूढों ने अपने हाथ हटा लिए। मगर शायद उस कंंडक्टर की नज़रों ने इनकी कमीनी करतूतों को ताड़ लिया था। फिर वह मुस्कराते हुए अन्य यात्रियों के टिकट देखने आगे बढ़ा।
मेरा दिल धाड़ धाड़ धड़क उठा।। फिर भी ये खड़ूस बूढ़े अपनी गंदी हरकतों से बाज नहीं आ रहे थे। मैं ने हल्का सा प्रतिरोध किया, “ये क्या, यहां भी शुरू हो गये हरामियों।” मैं फुसफुसाई। मगर इन कमीनो पर कोई असर नहीं हुआ।
“अरे कोई नहीं देख रहा है बिटिया, तू बस चुपचाप मज़ा ले”, नानाजी फुसफुसाए। धीरे धीरे मै उत्तेजित होने लगी और मैं ने भी अर्धचेतन अवस्था में उनकी जांघों पर हाथ रख दिया। दादाजी कनखियों से हमारी हरकतों को देख देख कुढ़ते रहे।
दादाजी के बगल वाले सरदारजी का ध्यान भी हमारी हरकतों पर गया था जिसका अहसास हमें नहीं था। वे भी खामोशी से कनखियों से हमारी इन कमीनी हरकतों को देख रहे थे। धीरे धीरे नानाजी और बड़े दादाजी का हाथ मेरी जांघों में ऊपर सरकने लगा और स्कर्ट के अंदर प्रवेश कर मेरी फूली हुई चूत को पैन्टी के ऊपर से ही सहलाने लगे। “आ्आ्आह” मेरी सिसकारी निकल पड़ी। मेरी आंखें अधमुंदी हो गई। बेध्मानी में मेरे हाथ उनकी धोती सरकाकर कब उनके टनटनाए खंभों तक पहुंचे मुझे पता ही न चला। इधर उनके हाथ मेरी पैंटी के अंदर प्रवेश कर मेरी चूत सहलाने लगे और उधर उनके अंडरवियर के अंदर मेरे हाथों की गिरफ्त में थे उनके गरमागरम टनटनाए गधे सरीखे विशाल लंड। उत्तेजना के आलम में मेरी लंबी लंबी सांसें चल रही थीं जिस कारण मेरा सीना धौंकनी की तरह फूल पिचक यह था। वे भी लंबी लंबी सांसें ले रहे थे। अब और रहा नहीं जा रहा था, वासना की ज्वाला में हम जल रहे थे।
बड़े दादाजी ने मेरे कान में फुसफुसाया, “हमार गोदी में आ जा बिटिया,” मैं किसी कठपुतली की तरह कामोत्तेजना के वशीभूत सम्मोहन की अवस्था में उनकी गोद में बैठ गई। बड़े दादाजी ने धीरे से धोती हल्का सा सरकाया, अपना मूसलाकार लंड अंडरवियर से बाहर निकाला, मेरे स्कर्ट को पीछे से थोड़ा उठाया, पैंटी को चूत के छेद के एक तरफ किया और फुसफुसाया, “थोड़ा उठ,” मैं हल्की सी उठी, उसी पल उन्होंने लंड के सुपाड़े को बुर के मुंह पर टिकाया और फुसफुसाया, “अब बैठ”। मैं यंत्रचालित बैठती चली गई और उनका फनफनाता गधा सरीखा लौड़ा मेरी चूत रस से सराबोर फूली फकफकाती बुर को चीरता हुआ मेरे बुर के अंदर पैबस्त हो गया। “आआआआआआआआआआह” मेरी सिसकारी निकल पड़ी। “आह रानी, बड़ा मज़ा आ्आ्आ् रहा है,” बड़े दादाजी फुसफुसाए। ऊपर से देखने पर किसी को भनक तक नहीं लग सकता था कि हमारे बीच क्या चल रहा है। सब कुछ मेरी स्कर्ट से ढंका हुआ था।
टूटी-फूटी सड़क पर हिचकोले खाती बस में अपनी चूत में बड़े दादाजी का लौड़ा लिए बिना किसी प्रयास के चुदी जा रही थी। बीच-बीच में बड़े दादाजी नीचे से हल्का हल्का धक्का मारे जा रहे थे। ” आह मैं गई” फुसफुसा उठी और मेरा स्खलन होने लगा। अखंड आनंद में डूबती चली गई। “आ्आ्आह”। मगर यह बड़े दादाजी भरे बस में इतने यात्रियों के बीच बड़े आराम से मुझे चोदे जा रहे थे और मैं भी फिर एक बार जागृत कामोत्तेजना में मदहोश चुदती हुई एक अलग ही आनंद के सागर में गोते लगा रही थी, इस तरह दिन दहाड़े यात्रियों के बीच चुदने के अनोखे रोमांचक खेल में डूबी चुदती चुदती निहाल हुई जा रही थी।
अचानक बड़े दादाजी ने मुझे कस कर जकड़ लिया और उनका लंड अपना मदन रस मेरी चूत में उगलने लगा और एक मिनट में खल्लास हो कर ढीले पड़ गए। इस बार मैं अतृप्त थी, मैं खीझ उठी मगर नानाजी ने स्थिति की नजाकत को भांपते हुए कहा, “अब तू मेरी गोद में आ जा। तेरे बड़े दादाजी थक गये होंगे।”
मैं बदहवास तुरंत नानाजी की गोद में ठीक उसी तरह बैठी जैसे बड़े दादाजी की गोद में बैठी थी।
उनका कुत्ता लंड जैसे ही मेरी चूत में घुसा,”आह्ह्ह्” मेरी जान में जान आई। फिर वही चुदाई का गरमागरम खेल चालू हुआ। इस बार 5 मिनट में ही मैं झड़ गई। नानाजी तो इतनी देर से अपने को बमुश्किल संभाले हुए थे, इतनी आसानी से कहां छोड़ने वाले थे भला। करीब 20 मिनट की अद्भुत चुदाई के बाद फचफचा कर झड़ना लगे, और इसी पल मैं भी झरने लगी। ” हाय मैं गई” यह मेरा दूसरा स्खलन था। अचानक मेरा दिल धड़क उठा, हाय, नानाजी का लौड़ा तो मेरी चूत में फंस चुका था। अब क्या होगा? मैं परेशान हो गई।
इसी समय बस भी रुकी और कंडक्टर की आवाज आई, “जिसको जिसको चाय पीना है पी लीजिए। 10 मिनट बाद हम चलेंगे।” मैं बड़ी बुरी फंसी। “अब क्या होगा?” मैं फुसफुसाई। “अरे कुछ नहीं होगा तू चुपचाप बैठी रह” नानाजी फुसफुसाए। “अरे भाई इतनी बारिश में कौन बस से उतरेगा, दिमाग खराब है क्या? चलो चलो।” सभी यात्री एक स्वर में बोले। मेरी जान में जान आई और मैं ने चैन की लम्बी सांस ली। बस आगे चल पड़ी। करीब 25 मिनट तक उनका लंड मेरी चूत में अटका पड़ा था। 25 मिनट तक लंड फंसे रहने के कारण मैं फिर से उत्तेजित हो चुकी थी। जैसे ही उनके लंड से मुक्ति मिली मैं ने चैन की सांस ली।
“अब मेरा नंबर है” मेरे कानों में दादाजी की फुसफुसाहट सुनाई पड़ी। नानाजी ने बिना किसी हीले हवाले के दादाजी के साथ सीट की अदला बदली कर ली। “हाय, अब दादाजी भी चोदेंगे” वैसे भी अबतक मैं फिर से उत्तेजित हो कर चुदने को तैयार हो चुकी थी। आनन फानन में फिर उसी तरह चुदने का क्रम चालू हो गया। दादाजी के साथ आधे घंटे तक चुदाई चलती रही। अभी दादाजी नें अपना वीर्य मेरी चूत में झाड़ना चालू किया कि मैं भी थरथरा उठी और तीसरी बार छरछरा कर झ़ड़ने लगी। यह स्खलन थोड़ा लंबा चला और जैसे ही हम निवृत हुए, एक और फुसफुसाहट मेरे कानों में आई, ,” कुड़िए अब मेरा नंबर है,” मैं झुंझलाहट से मुड़ कर देखी तो मेरा गुस्से का पारावार न रहा, दादाजी के सीट की बगल वाला लंबा-चौड़ा सरदार खड़ा था। इससे पहले कि मैं कुछ बोलूं, उसने चुप रहने का इशारा किया और अपना मोबाइल निकाल कर मुझे दिखाते हुए धीरे से कहा, “जरा इसको देखो” कहते हुए दादाजी को उठा कर उनकी सीट पर बैठ गया और जो कुछ दिखाया उसे देख कर मेरे छक्के छूट गये। हमारी सारी कामुक हरकतों की वीडियो थी।
मेरी तो बोलती बंद हो गई। “चुपचाप अब तक जो हो रहा था, मुझे भी करने दे वरना…….” मैं समझ गई। अब यह सरदार मुझे चोदे बिना नहीं छोड़ेगा। मैं ने चुपचाप उनका कहा मानने में ही अपनी भलाई देखी। मैं ने अपने आप को परिस्थिति के हवाले छोड़ दिया। उधर दादाजी और नानाजी ने भी समझ लिया कि इस मुसीबत से बाहर निकलने का और कोई रास्ता नहीं है।
फिर सरदारजी ने मुझे उठ कर साथ चलने का इशारा किया और मैं उनके साथ यंत्रवत सबसे पीछे वाली सीट पर गयी जो पूरी तरह खाली थी। सबसे पीछे वाली सीट के आगे के सीट पर भी कोई नहीं था, मतलब यह कि सरदारजी को मेरे साथ मनमानी करने की पूरी आजादी थी। दादाजी, नानाजी और बड़े दादाजी चुप रहने को मजबूर थे और मैं उनकी मजबूरी समझ सकती थी। जैसे ही हम सीट पर बैठे, सरदारजी ने बड़ी बेसब्री से अपने पैजामे का नाड़ा ढीला कर आहिस्ते से नीचे खिसकाया और “हे भगवान” करीब साढ़े नौ इंच का 4″ मोटा फनफनाता लौड़ा फुंफकार उठा।
“नहीं मैं मर जाऊंगी सरदारजी” मैं फुसफुसाई।
“चुप रंडी, तीन तीन लौड़ा खा के मरने की बात करतीं है, चुपचाप मेरे लंड का मज़ा ले।” सरदार फुंफकार उठा। मैं क्या करती, बुरी तरह फंस चुकी थी। फिर उसने मेरी चड्डी पूरी तरह उतार दी और जैसे ही मेरी चुद चुद कर फूली चूत का दर्शन किया वह कामुकतापूर्ण मुस्कान से फुसफुसाया, “कुड़िए तू तो पूरी की पूरी तैयार मस्त माल है। तुझे चोदने में बड़ा मज़ा आएगा रानी। चल झुक कर पहले मेरा लौड़ा चूस।” और मेरा सिर पकड़ कर अपने लंड के पास ले आया। उस राक्षस जैसे सरदार का राक्षसी लंड देख कर मेरी तो घिग्घी बंध गयी। मैं थोड़ी हिचकिचाई तो सरदार ने जबर्दस्ती मेरा सिर पकड़ कर अपना दानवी लन्ड का मोटा सुपाड़ा मेरे मुंह में सटा दिया और मैं अपना मुंह खोल कर उस बदबूदार लंड को मुंह में लेने को मजबूर हो गई, नहीं तो पता नहीं वह और क्या रुख अख्तियार करता। मैं बड़ी मुश्किल से आधा लंड ही मुंह में ले सकी और चूसना शुरू कर दिया।
“आह मेरी रानी, ओह साली रंडी, चूस, और चूस कुतिया,” वह फुसफुसाये जा रहा था और मेरी चूत में अपनी मोटी उंगली पेल कर अंदर-बाहर करने लगा। अपनी उंगली से चोद रहा था और मैं पागलों की तरह उत्तेजित हो कर चपाचप लंड चूसे जा रही थी। करीब 5 मिनट बाद मैं फिर से झड़ने लगी, “आह ोोह हाय मैं गयी सरदारजी,” मेरे मुंह से फुसफुसाहट निकलने लगी थी। यह मेरा चौथा स्खलन था। मगर असली खेल तो अभी बाकी था।
मुझे सीधे सीट पर लिटा कर मेरे पैरों को फैला दिया और अपना दानवी लंड जो मेरी थूक से लिथड़ा हुआ था, मेरी चूत के मुहाने पर रखा और घप्प से एक ही करारे धक्के से मेरी चूत को चीरता हुआ जड़ तक ठोक दिया।
“हाय मैं मर जाऊंगी सरदारजी, आआआआआ” मैं फुसफुसाई। मेरी चूत फटने फटने को हो गई। “चुप साली रंडी, चुपचाप मेरे लन्ड का मज़ा ले और मुझे चोदने दे।” बड़ी वहशियाना अंदाज में फुसफुसाया कमीना। मेरी क़मर पकड़ कर एक झटके में पूरा लंड पेल दिया। “ओह मां मेरी तो सांस ही अटक गई थी।” फिर धीरे धीरे थोड़ा आराम और फिर सब कुछ आसान होने लगा। अब मैं भी आनंद के सागर में गोते खाने लगी, “अह ओह सरदारजी, चोद, चोदिए सरदारजी ओह राज्ज्ज्आ,” मैं पगली की तरह फुसफुसाए जा रही थी। ओह और अब जो भीषण चुदाई आरंभ हुआ, करीब 45 मिनट तक, “मेरी लंड दी कुड़िए, लौड़े दी फुद्दी, मेरी रांड, आज मैं तुझे दिखावांगा सरदार का दम रंडी,” बोलता जा रहा था और चोदता जा रहा था।
कुछ बस के हिचकोले और कुछ सरदारजी का झटका, “आह ओह कितना मज़ा, अनिर्वचनीय आनंद, उफ्फ।” मैं पागल हो चुकी थी। 10 मिनट में छरछरा कर झड़ने लगी “ओह गई मैं” कहते हुए झड़ गई। यह मेरा पांचवां स्खलन था। मैं तक कर चूर निढाल हो चुकी थी। मगर सरदार तो मेरे जैसी कमसिन लड़की की चूत पाकर पागलों की तरह चोदने में मशगूल, झड़ने का नाम ही नहीं ले रहा था। करीब 45 मिनट की अंतहीन चुदाई के बाद जब उसने मुझे कस कर दबोचे अपना गरमागरम लावा सीधे मेरे गर्भाशय में भरने लगा, “ओह आह हाय” उफ्फ वह स्खलन, मैं तो पागल ही हो गई। सरदार का काफी लंबा स्खलन था और मैं उनके दीर्घ स्खलन से अचंभित और आनंदित आंखें मूंदकर उनके दानवी शरीर से चिपक कर अपने चूत की गहराइयों में उनके आधे कप के बराबर गरमागरम वीर्य का पान करते हुए निहाल हुई जा रही थी। यह हमारा सम्मिलित स्खलन था। यह मेरा छठवां स्खलन था। मैं थरथरा उठी।
“आ
ह ओह राजा, हाय मेरे चोदू सरदारजी, आपके लंड की दीवानी बन गई मेरे बूढ़े सरदारजी,” मैं फुसफुसाई, और सरदारजी मुस्कुरा उठे।
“हां मेरी रांड, मेरा लंड भी तेरी चूत का दीवाना हो गया है मेरी कुतिया” सरदार कभी मुझे चोद कर निवृत्त हुआ ही था कि मेरे कानों में फुसफुसाहट सुनाई पड़ी, “अब मेरा नंबर है”, मैं ने चौंककर आंखें खोली तो देखा वही गंदा कंडक्टर बड़े भद्दे ढंग से मुस्कुरा रहा था। इससे पहले कि मैं कुछ मैं कुछ बोल पाती, सरदारजी मद्धिम स्वर में बोले, “इसे भी चोद लेने दो कुड़िए, इसी ने पीछे सीट खाली करवा कर चोदने का इंतजाम किया है। इसे भी खुश कर, याद रखना तेरा वीडियो मेरे पास है।।” मैं क्या कहती, उस गन्दे कंडक्टर से चुदने की कल्पना मात्र से ही मुझे घिन आ रही थी। मगर मैं सरदारजी के हाथों ब्लैकमेल होती हुई उस बेहद गन्दे घटिया इंसान को अपना तन सौंपने को मजबूर थी।
मुझे उसी अवस्था में छोड़ कर सरदारजी उठे और अपने पजामे का नाड़ा बांधकर अपनी सीट पर जा बैठे। मैं खामोशी से उसी तरह लेटी रही और उस वहशी कंडक्टर ने बड़ी बेसब्री से अपने पैंट को ढीला कर नीचे सरकाया। ओह भगवान, पूरा लंबें लंबे झांटों से भरा बेहद घिनौना काला खतना किया हुआ करीब 8 इंच का लंड, वितृष्णा से मेरा मन भर गया, मगर मैं मजबूर थी। ज्यों ही वह मेरे ऊपर आया, उसके तन से उठती पसीने और गंदगी की मिली जुली बदबूदार महक मेरे नथुनों से टकराई। मैं ने बड़ी मुश्किल से उबकाई को रोका और अपने मन को कड़ा कर उसके गंदे बदबूदार शरीर के हवस की भूख मिटाने के लिए अपने तन को परोस दिया। उस हरामी ने बड़ी बेताबी से झट से अपना लंड मेरी चुद चुद कर ढीली लसलसी चूत में अपना लंड ठोक दिया और दनादन किसी मशीन की तरह चोदना चालू किया। इसी दौरान वह अपने घिनौने मुंह से मुझे चूमता चाटता रहा और अपने हाथ की उंगली को मेरी चूत से निकलने वाली लसलसे रस से लथेड़ कर मेरी गांड़ में घुसा घुसा कर गांड़ का छेद फिसलन भरा बनाता रहा फिर बिना किसी पूर्वाभास के अपना पूरा लंड निकाल कर चूत से नीचे मेरी गांड़ में भक्क से एक ही बार में पूरा लंड उतार दिया।
“आह नहीं, गांड़ में नहीं,” मैं तड़प उठी और फुसफुसाई।
“चुप बुर चोदी, तेरा गांड़ तो इतना मस्त है, इसे चोदे बिना कैसे छोड़ दें। चुपचाप गांड़ चुदा हरामजादी।” वह फुसफुसाया। वह बड़े घिनौने ढंग से गांड़ का बाजा बजा रहा था और बड़बड़ कर रहा था,”आह साली गांडमरानी रंडी, ले मेरा लौड़ा अपनी गांड़ में, आह क्या मस्त गांड़ है रे रंडी साली कुतिया।”
“हाय मैं मर गई, आह, ओह, अम्मा, इस्स्स।” मैं सच में आज इस बस में एकदम रंडी बन गई। करीब 20 मिनट तक चोदता रहा और मैं इस बीच इतने गन्दे घटिया इंसान से इतने घिनौने तरीके से चुदती हुई आश्चर्यजनक ढंग से फिर उत्तेजना में भर कर इस कमीने कंडक्टर के संग कामुकतापूर्ण खेल में आनंदमग्न बराबर की हिस्सेदार बन गई और मेरा बड़बड़ाना भी चलता रहा, “चोद साले मादरचोद कंडक्टर, कमीने, अपनी रंडी बना ले कुत्ते, हाय राजा, ओह मेरे गांड़ के रसिया, चोद ले हरामी बेटी चोद।”
करीब 20 मिनट की धक्कमपेल के बाद वह कमीना अपना वीर्य मेरी गांड़ में भरना शुरू किया और इसी समय मैं भी झड़ने लगी। “आ्आ्आह ओ्ओ्ओ्ओह, मैं गई रे बेटी चोद, आ्आ्आह।” मैं वहीं लस्त पस्त निढाल पड़ गई और वह जालिम कंडक्टर संतुष्टि की मुस्कान के साथ अपने गंदे होंठ चाटता हुआ मेरे ऊपर से उठा, अपना पैंट पहन कर मुस्कुराता हुआ वहां से हट कर सामने चला गया। मैं कुछ देर उसी तरह नुची चुदी थक कर चूर पड़ी रही फिर धीरे धीरे उठी, पैंटी पहनी और भारी कदमों से आकर अपनी सीट पर धम्म से बैठ गई। बस में मेरे तीनों बूढ़े, सरदारजी और कंडक्टर को छोड़ कर किसी को कानों-कान खबर नहीं थी कि सभी यात्रियों के रहते मैं कितनी बड़ी छिनाल बन चुकी थी।
मेरे तीनों बूढ़े अपराधियों की तरह मुझसे नज़र चुरा रहे थे, मगर मैं तो एक नये रोमांचक अनुभव से गुजर कर नये ही आनंद में मग्न थी। मेरे तीनों बूढ़े बिनब्याहे पतिदेव गण चुपचाप मेरे छिनाल बनने की घटना के मूक साक्षी, खामोश बैठे रहे, सरदारजी मुझे चोद कर खुश मुस्कुरा रहे थे, उधर हरामी कंडक्टर मेरी मस्त गोल गोल गांड़ का भोग लगा कर खुश मग्न मुस्कुरा रहा था। यह सब होते होते कब हम रांची पहुंचे पता ही नहीं चला। करीब 12 बजे हम रांची पहुंचे।
बस से उतरते समय हरामी कंडक्टर मेरे कान में फुसफुसाया, “बहुत मस्त गांड़ है तेरा रानी, फिर कभी मिलूंगा तो फिर तेरी गांड़ चोदुंगा, मन नहीं भरा।।” मैं गनगना उठी, गन्दा है मगर मस्त चुदक्कड़ है, “ठीक है ठीक है” कहती मैं आगे बढ़ी। सरदारजी भी मेरे कानों में बोलते गये, “बहुत मजा आया कुड़िए, अपना फोन नंबर दो, जब मुझे चोदने का मन होगा मैं फोन करूंगा, याद है ना तुम लोगों का वीडियो मेरे पास है” धमकी भरे शब्दों में कहकर रुके। मैं ने चुपचाप अपना नंबर दिया और अपने प्यारे बूढ़े आशिकों के साथ लुटी पिटी थके हारे कदमों के साथ एक साझी बिनब्याही पत्नी की तरह नानाजी के घर की ओर चल पड़ी।

आप लोगों ने पढ़ा कि जमशेदपुर से रांची तक अपने तीन रिश्तेदार बुजुर्गों के साथ सफर के दौरान यात्रियों से भरी बस में उनके नाक के नीचे किस तरह मेरे तीनों बुजुर्ग और दो अजनबी बूढ़ों ने अपने अपने अंदाज में मनमाने ढंग से मेरी जवानी का रसपान किया और अपनी अपनी हवस मिटाई। खास करके सरदारजी की वह अचंभित करने वाली यादगार चुदाई और उस गन्दे कंडक्टर की बदबूदार बदन से भी पिसती हुई मैं ने चुदाई का एक अलग ही लुत्फ उठाया, उसे भला मैं कैसे भूल सकती हूं। तीन घंटों में मैं कुल सात बार स्खलित हुई। ओह अद्भुत था वह सफर। पूरी रंडी बना दी गई थी। कुल मिलाकर यह सफर मेरे लिए बेहद रोमांचक और यादगार साबित हुआ।
नुची चुदी थकी मांदी थरथराते कदमों से उन तीनों बूढ़ों के साथ नानाजी के कार तक पहुंची, जिसे नानाजी ने फोन कर के बुलाया था, फिर कार से नामकुम स्थित नानाजी के फार्म-हाउस जैसे घर पहुंचे। उनका घर घनी आबादी से करीब आधा किलोमीटर की दूरी पर ताकरीबन दो एकड़ जमीन पर फैली सात फुट ऊंची दीवारों से घिरी और बाउंड्री वॉल से करीब दस फीट अंदर चारों ओर ऊंचे ऊंचे ताड़ और खजूर के पेड़ थे। दो तल्ला मकान करीब तीन हजार वर्ग फीट में फैला हुआ था। मकान के बाईं ओर कार का पोर्टिको था और पीछे की ओर तीन कमरों का एक मकान था जिसमें उनका घरेलू नौकर और ड्राईवर रहते थे।
बस से उतरने से लेकर नानाजी के घर पहुंचने तक तीनों बूढ़े मुझसे नज़रें चुराते रहे और उनके जुबान पर ताले पड़े रहे, यह उनका अपराध बोध था कि उनकी कामुकता मुझ पर भारी पड़ गई और वे चाहकर भी कुछ करने में असमर्थ थे। उनके सामने ही दो अजनबियों ने ं रंडियों की तरह मुझे रौंद डाला। मैं भी मजबूरन सरदारजी की ब्लैकमेलिंग की शिकार हुई वरना इस प्रकार के लोगों से निपटना मुझे अच्छी तरह से आता है। खैर जो हुआ सो हुआ, मुझे अब कोई मलाल नहीं था, आखिर मजबूरी में ही सही, मुझे दो और नये लौड़ों का स्वाद चखने का अवसर और ऐसी रोमांचक परिस्थिति में चुदाई से नये प्रकार के आनंद का अनुभव तो मिला।
“आईए मालिक, अंदर आईए” एक करीब 55 साल का मजबूत कद काठी का, करीब 5′ 11,” लंबा बुजुर्ग, आधा गंजा, बेतरतीब दाढ़ी, सांवला रंग, जो शायद वहां का नौकर था, कहते हुए बड़े से ड्राइंग रूम में ले आया, पीछे-पीछे नानाजी का ड्राइवर हमारा सामान ले आया और ड्राईंग रूम से सटे एक कमरे की ओर बढ़ते हुए मुझसे कहा, “आ जाओ बिटिया, आओ मैं तुम्हारे रहने का कमरा दिखाता हूं।”
इतनी देर के बाद नानाजी के मुंह से आवाज निकली, “नहीं करीम मियां, इस कमरे में नहीं, वो जो बड़ा वाला कमरा ऊपर में है, उसमें बिटिया को ठहरने की व्यवस्था करो, यह कमरा इनके (दादाजी और बड़े दादाजी) लिए है। हम सब फ्रेश हो जाते हैं फिर खाने के लिए डाइनिंग हॉल में आएंगे।”
“ठीक है मालिक आप लोग डाइनिंग हॉल में आएंगे तो मैं खाना लगा दूंगा” नौकर जिसका नाम हरी था, बोला।
फिर हम फ्रेश होने अपने अपने कमरों में चले गए। मैं ने बाथरूम में जाकर अच्छी तरह से ऊंगली डाल डाल कर अपनी चूत और गांड़ की सफाई की, जिन्हें चोद चोद कर इन बूढ़ों ने बुरा हाल कर दिया था। फिर मैं डाइनिंग हॉल में आई तो देखा कि अभी तक बड़े दादाजी और दादाजी के मुंह लटके हुए थे।
मैं माहौल हल्का करने के लिए बोली, “आप लोग अभी तक मुह लटकाए हुए क्यों हैं? अरे जो होना था हो चुका, आप लोग क्या कर सकते थे। मुझे देखो, मुझे इस बात का कोई खास अफसोस नहीं है तो फिर आप लोग इतने दुखी क्यों हैं। अब केवल इसकी चिंता कीजिए कि सरदारजी के मोबाइल से वह वीडियो कैसे डिलीट किया जाय। वैसे इसका समाधान भी मेरे पास है। अब आप लोग परेशान मत होइए।” मैं ने उन्हें तसल्ली दी।
“क्या करोगी तुम” प्रश्नवाचक निगाहों से मुझे देखने लगे।
“मैं ने सोच लिया है मुझे क्या करना है, आपलोग चिंता मत कीजिए”, कहती हुई मैं ने उन्हें आश्वस्त किया। मैं ने सोच लिया था कि अगर सीधी उंगली से घी नहीं निकला तो उंगली टेढ़ी कर के निकाल लूंगी।
अब वहां का बोझिल माहौल थोड़ा हल्का हुआ। नानाजी ने खाते खाते कहा था कि शाम को बाजार घूमने चलेंगे। फिर हम आराम करने अपने कमरों में चले गए। थकी हुई तो थी ही, शाम 5 बजे तक मैं घोड़े बेच कर सोती रही। शाम को जब मैं उठी तो देखा वे लोग ड्राइंग रूम में तैयार बैठे थे बाजार जाने के लिए।
“मैं घर में ही रहूंगी, आराम करना चाहती हूं, आप लोग बाजार घूम आइए।” मैं ने कहा। उन्होंने भी जोर नहीं दिया, “ठीक है बिटिया तुम आराम करो”, कह कर वे कार में ही निकल पड़े। इधर मैं घर में और घर के चारों ओर घूम रही थी, साथ में नानाजी का नौकर हरी था जो पूरे घर और बाहर के बारे में मेरी जिज्ञासा को शांत करता जा रहा था। बाहर घर के सामने और दाईं ओर फूल पौधों का बगीचा था। घर के अंदर सब कुछ व्यवस्थित ढंग से सजा हुआ था। ड्राइंग रूम में ठीक सामने की दीवार पर एक खूबसूरत उम्रदार स्त्री का फोटो एक सुंदर फ्रेम में मढ़ा टंगा था।
“यह कौन है?” मैं ने हरी चाचा से पूछा।
“बिटिया ई तुम्हरा नानी का फोटो है। दस साल पहिले इनका देहान्त हो गया था।” उन्होंने मुझे बताया। एक तरफ दीवार पर 48″ का एल ई डी टी वी लगा हुआ था। मैं ने एक कमरे में किताबों का बड़ा सा शेल्फ देखा, जिसमेें ढेर सारी पुस्तकें सजी थीं। शेल्फ के नीचे तीन ड्रावर थे जिनमें किताबों के अलावा कुछ डी वी डी थे। ड्रावर में अचानक मेरी नज़र एक बड़े अल्बम पर पड़ी जिसके कवर पर पूर्णतः नग्न युवती की तस्वीर थी। मैं उस अल्बम को निकाल कर ज्यों ही पन्ने पलटने लगी, अंदर की तस्वीरों को देखकर दंग रह गई। पूर्णतय: नग्न युवक युवतियों की विभिन्न उत्तेजक मुद्राओं में संभोगरत तस्वीरें भरी पड़ी थीं। कहीं कहीं तो एक अकेली युवती के तीन चार पुरुषों के साथ सामुहिक संभोग में लिप्त तस्वीरें भी थीं। देख कर तो मैं गनगना उठी, सारे शरीर में चींटियां दौड़ने लगी।
“अरे ई सब मत देख बिटिया” कहते हुए नौकर हरी ने झट से अल्बम मेरे हाथ से छीन कर ड्रावर में रख दिया, अल्बम छीनने के क्रम में उस अल्बम से बिना लेबल वाले कुछ डीवीडी नीचे गिर पड़े थे जिन्हें उठाकर उसी ड्रावर में रख दिया था फिर किचन में चला गया था। उनमें से एक डीवीडी बाहर ही छूट गया था जिसे मैं ने जिज्ञासावश उठाकर टीवी से लगे डीवीडी प्लेयर में चला दिया। यह एक अंग्रेजी फिल्म थी। एक सोफे पर दो अधेड़ हट्ठे कट्ठे मर्द बैठे दारू पी रहे थे। इतने में कमरे में एक 18 – 19 साल की खूबसूरत सेक्सी लड़की मिनी स्कर्ट और छोटी सी बिना बांह के लो कट ब्लाउज में आई और उन मर्दों के बीच बैठ गई। फिर उन मर्दों ने उस लड़की के साथ चुम्मा चाटी शुरू कर दिया और देखते ही देखते सभी निर्वस्त्र हो गये । ऐसा लग रहा था मानो दो दानवों के बीच एक कमसिन गुड़िया फंसी हो। फिर उनके बीच बेहद उत्तेजक कामक्रीड़ा की शुरुआत हुई जिसे देख मैं भौंचक रह गई, जिस तरह की तस्वीरें अल्बम में थीं उसी तरह की फिल्म टीवी स्क्रीन पर चल रही थी। बेहद उत्तेजक अंदाज में वासना का नंगा खेल चल रहा था। मैं समझ गई “अच्छा तो इसका मतलब नानाजी ऐसी फिल्में देख देख कर इतने कामुक हो गये हैं।”
फिल्म में अब एक अठारह उन्नीस साल की युवती को दो अधेड़ हट्ठे कट्ठे मर्द एक साथ भोग रहे थे और वह युवती मस्ती के आलम में डूूूबी सिसकारियां भर रही थी। यह देख कर मैं भी उत्तेजित हो उठी, मेरी चूत में पानी आ गया और अनायास ही मेरा हाथ मेरी पैंटी के ऊपर से ही चूत को सहलाने लगा। मैं भूल गयी कि इस वक्त मैं ड्राईंग रूम में हूं। मेरी आंखें अधमुंदी हो गयीं, एक हाथ से चूत के ऊपर फेर रही थी और दूसरे हाथ से मैं खुद ही अपनी चूची मसलने लगी थी। “ओह यस फक मी, फक मी हार्ड, आह डियर, ओह ओह, यस्स्स डीयर फकर्स,, फिल माई होल्स विद योर लवली कॉक्स, मेक मी योर बिच, आह यस्स्स ओ्ओ्ओ्ओह” एक रंडी की तरह उस युवती की कामुकता भरी आवाज आ रही थी, वे अधेड़ हट्ठे कट्ठे मर्द उस लड़की के चूत और गांड़ में अपने गधे सरीखे लंड डाल कर कुत्तों की तरह धकमपेल करते हुए बोले जा रहे थे, “ओह डियर, आह आवर बिच, टेक आवर कॉक, टेक इट डीप इन योर कंट, आह फकिंग बिच, आह आह आह आह” और इधर मैं अपनी पैंटी को नीचे सरका कर अपनी चूत में उंगली डाल कर अंदर-बाहर करती हुई अपनी चूचियों को मसले जा रही थी।
मेरे मुंह से भी वासनात्मक सिसकारियां निकलने लगीं थीं, ” आह ओह इस्स्स, उफ्फ” और तभी मैं ने दो मजबूत हाथों को अपनी चूचियों पर महसूस किया, चौंककर आंखें खोली तो देखा नौकर हरी सोफे के पीछे से मेरी चूचियों पर हाथ फेर रहा था। न जाने कब से वह यह नजारा देख रहा था और जब उत्तेजना से उसके सब्र का पैमाना छलक उठा तो बेकाबू हो कर यह हरकत कर बैठा। यह सब इतना आकस्मिक हुआ कि मैं घबरा गई और हड़बड़ा कर खड़ी हो गई। मेरी घबराहट देख कर वह झट से अपना हाथ हटा लिया और शर्मिंदा होता हुआ बोला, “माफ करना बिटिया, बहुत देर से तुम्हें इस हाल में देख रहा था और बर्दाश्त नहीं हुआ तो ऐसा कर बैठा।”
मैं पल भर अकचकाई खड़ी रही फिर स्थिति को संभाला, आखिर मैं भी तो कामोत्तेजना की ज्वाला में जल रही थी, “ओह कोई बात नहीं चाचा, मैं समझ सकती हूं। आपने तो वही किया जो इस स्थिति में कोई भी मर्द करता है।” मेरे कथन में मूक आमंत्रण भी था। मेरी आंखों में वासना की भूख स्पष्ट परिलक्षित हो रही थी जिसे उसकी अनुभवी आंखों ने पढ़ लिया था।
“इसका मतलब तुम्हें बुरा नहीं लगा ना?” उसने भी आशा भरी वासनापूर्ण आवाज में कहा।
“ओह नहीं चाचा, मुझे बिल्कुल बुरा बिल्कुल नहीं लगा” मैं तुरंत बोल उठी। मैं तो चाहती ही थी कि उनकी झिझक हट जाए और किसी तरह मेरे अंदर भड़क उठी वासना की ज्वाला को शांत कर दे।
“फिर तो ठीक है बिटिया, हम तोहरे संग कुछ और भी करना चाहते हैं, अगर तुम राजी हो तो।” वे बड़ी बेसब्री से बोले।
“ठीक है चाचा ठीक है, अब आपको जो भी करना है कर लीजिए।” मैं ने वासना की ज्वाला में धधकती कामुकतापूर्ण लहजे में अपने आप को एक तरह से उसके सामने परोस दिया।
इतना सुनना था कि वह घूम कर सोफे के सामने आ गये और मुझे अपनी मजबूत बांहों में भरकर मेरे चेहरे पर चुंबनों की झड़ी लगा दी। उनकी बेतरतीब दाढ़ी मेरे चेहरे पर चुभ रही थी मगर मुझे यह सब बेहद अच्छा लग रहा था। मेरे मुंह में अपना लंबा मोटा जीभ डाल दिया और कुत्ते की तरह मुंह के अंदर घुमाने लगा। मैं मस्ती में डूबती चली जा रही थी। मैं अपनी चूत के आस पास उनके कठोर लंड की दस्तक महसूस कर रही थी।
उधर टीवी स्क्रीन पर वासना का नंगा नाच चल रहा था और इधर आहिस्ता आहिस्ता वह मेरे ब्लाउज के बटन खोलने लगा। फिर ज्यों ही उसे अहसास हुआ कि मैं ने अंदर ब्रा नहीं पहनी है तो वह और बेसब्र हो कर आनन फानन में मुझे ब्लाउज से मुक्त कर दिया और आंखें फाड़कर मेरी नंगी चूचियों को ऐसे देखने लगा जैसे किसी भूखे कुत्ते के सामने स्वादिष्ट मांस का टुकड़ा पड़ा हो। उसने बड़ी बेताबी से मेरी चूचियों को मसलना चूसना चालू किया। अधखिली चूचकों को बारी बारी से मुंह में ले कर चूसने लगा, चुभलाने लगा।
मैं पागलों की तरह “आह, आह, इस्स्स इस्स्स” करने लगी। इस दौरान उन्होंने मुझे स्कर्ट और पैंटी से भी मुक्ति दे दी थी। अब उनका ध्यान मेरी पनियायी बुर पर गया। देखते ही देखते वह मेरी चूत पर टूट पड़ा और कुत्ते की तरह चाटना शुरू कर दिया। पहले ऊपर ऊपर जीभ फिराने लगा फिर चूत के अंदर अपनी जीभ घुसा घुसा कर चाटने लगा, एकदम नानाजी की तरह।
मैं कामुकता में भर कर अपनी कमर आगे पीछे करने लगी “आह चाचा, ओह चाचा, चाट चाट आ्आ्आह ओ्ओ्ओ्ओह इस्स्स आह मैं गई चाचा” कहते हुए आनंदातिरेक में डूबी मुख मैथुन का अभूतपूर्व सुख प्राप्त करती रही। मैं उत्तेजना के सैलाब में डूबती उतराती थरथरा उठी और मेरा स्खलन होने लगा। “आ्आ्आह ओ्ओ्ओ्ओह मैं मरी चाचा” मगर चाचा पर तो भूत सवार हो चुका था, और जोर जोर से चाटने चूसने लगा। मैं दुबारा उत्तेजना में भर कर छटपटाने लगी।
चाचाजी ने देखा लोहा गरम है, झटके से अपना कुरता पैजामा खोल फेंका और मादरजात नंगा हो गया। काला कसरती बदन हाथों में, छाती से लेकर नीचे पैरों तक और पूरे पीठ पर बालों से भरा, भयावह शरीर, किसी आदी मानव की याद दिला रहा था। उनका लंड तो बाप रे बाप, ऐसा लंड मैं पहली बार देख रही थी। लंबा 9″ का था सरदार जी की तरह, मोटा करीब चार इंच का रहा होगा। सामने का गुलाबी सुपाड़ा लंड की कुल मोटाई से थोड़ा और बड़ा करीब साढ़े चार इंच गोल, किसी गदा की तरह, मुझे रहीम टैक्सी ड्राइवर का स्मरण करा रहा था, सुपाड़ा सामने से नुकीला, उस पर तुर्रा यह कि बीच से हल्का टेढ़ा ऊपर की ओर उठा हुआ, वक्र। उनके बड़े बड़े अंडकोष थैली की तरह नीचे झूल रहे थे। मैं घबराकर कर बोली, “हाय राम यह क्या है” । मैं सचमुच उनके लंड की मुटाई और आकार प्रकार से घबरा गई थी। घबराहट के साथ साथ मेरी यह कोशिश भी थी कि मैं उन्हें यह जाहिर न होने दूं कि मैं अबतक छः छः मर्दों से चुद कर छिनाल बन चुकी हूं।
“ई हमरा लौड़ा है बिटिया” आपने गैंडे जैसे शरीर के सामने दोनों जांघों के बीच काले नाग की तरह फन उठाए फुंफकार मारता हुआ वीभत्स लंड हिलाता हुआ बड़ी ही अश्लीलता से बोला। “अब हम ई लौड़ा के तोहार बुर में डाल के चोदब बिटिया रानी”।
“नहीं चाचा जी नहीं, यह मेरी चूत में कैसे घुसेगा, मेरी चूत फट जाएगी। हाय नहीं मैं मर जाऊंगी चाचा जी।” उनका गैंडा जैसा मादरजात नंगा शरीर और विस्मयकारी भयावह लंड के दर्शन मात्र से मैं थर्रा उठी और घबरा कर बोली।
“तुमको हम कुछो न होने देंगे बिटिया। सब कुछ आराम से होगा। तू घूम कर सोफा के पकड़ ले, हम पीछे से तोहार बुर में लौड़ा पेलेंगे। बहुत मजा देंगे बिटिया।” कहते हुए मुझे घुमा कर झुका दिया। अब ऊखल में सिर दिया है तो मूसल से क्या डरना, सोचते हुए मैं ने यंत्रचालित गुड़िया की तरह सोफे पर हाथ रख कर अपने शरीर का भार दिया और धड़कते दिल से स्थिर हो कर दांत भींचे अपनी चूत पर होने वाले आक्रमण के लिए तैयार हो गई। चाचाजी ने पीछे से आकर मेरी कमर किसी कुत्ते की तरह पकड़ कर अपने लंड के सुपाड़े को मेरी चूत के मुहाने पर रख कर रगड़ना शुरू किया तो मैं गनगना उठी। कुछ ही पलों में मैं पगली हो गई और बेसाख्ता बोल उठी, “अब डाल भी दो चाचा जी”।
इस खुले आमंत्रण को भला वासना की गर्मी से तपते चाचा जी कैसे नकार सकते थे, वे तो चाहते ही थे कि मैं खुद अपने मुंह से निमंत्रण दूं और वो मुझे भंभोड़ डालें। उन्होंने मेरे चूत के छेद पर लंड का सुपाड़ा टिकाया, अपने बनमानुषि सख्त हाथों से मेरी कमर को कस कर पकड़ा और एक करारा धक्का मारा, “ले मेरी बिटिया रानी, आह हूं।”
“आह मर गई रे चाचा” मैं दर्द के मारे चीख पड़ी। “हाय मां मेरी चूत फटी रे फटी।” मैं छटपटाने लगी।
मगर चाचाजी के लौड़े को तो मानो स्वर्ग का द्वार मिल चुका था, मेरी चीख सुनकर वहशी जानवर की गुर्रा उठे, “चुप साली कुतिया, तुम्हरा बुर देख कर ही हम समझ गए हैं कि तू शरीर से कोमल लौंडिया दिखने वाली एक खेली खाई रंडी है। अब चुपचाप हमें अपना बुर चोदने दे बुर चोदी, बहुत दिनों बाद तोहरे जैसी लौंडिया मिली है चोदने को।” उनकी गुर्राहट सुन कर मेरी रूह फना हो गई।
“तो इसका मतलब अपने आप को मासूम दिखाने की मेरी सारी कोशिशों पर पानी फिर गया था। मैं भी कितनी बेवकूफ थी, कैसे भूल गयी थी कि पिछले चार पांच दिन में ही छ: अलग-अलग मर्दों से चुद चुद कर फूली हुई मेरी चूत चुगली कर जाएगी” मैं हक्की-बक्की रह गई। आरंभिक भीषण प्रहार की तीक्ष्ण वेदना से बेहाल, जबतक मैं अपने होश संभालती, अबतक वहशी जंगली जानवर बन चुके चाचा जी ने आधे घुसे अपने लंड को थोड़ा बाहर निकाल कर मेरी कमर को बनमानुष की तरह कस के पकड़ा और एक हौलनाक वार से पूरा का पुरा लौड़ा भच्च से जड़ तक भोंक दिया। मेरी चूत के मुंह से उनके लंड का नुकीला और विशाल सुपाड़ा बड़ी बेरहमी से प्रवेश करके फैलाता हुआ मेरे गर्भाशय में दस्तक दे दिया। उनके लंड का टेढ़ापन भी मेरे बच्चेदानी तक के मार्ग को अनुकूल और सुगम बनाने में अपना योगदान दे रहा था।
“आह मार डाला रे, आह्ह्ह्, ओह्ह्ह।” किसी बेरहम कसाई से हलाल होती मेमने की तरह मेरी दर्दनाक चीख से पूरा घर गूंज उठा। गनीमत थी कि घर में हमारे सिवा और कोई नहीं था वरना गजब हो जाता। किला फतह कर लेने के बाद करीब एक मिनट तक चाचा जी बिना हिले डुले रुके रहे, किसी अनुभवी शिकारी की तरह, क्योंकि उन्हें अच्छी तरह से पता था कि उनके लंड की पहली चुदाई किसी भी अच्छी खासी रंडी का दिल दहला सकती है।
“चो्ओ्ओ्ओप्प्प्प हर्र्र्र्र्रामजादी, चिल्ला मत कुतिया।” उनके मुख से बड़े ही वहशी अंदाज में गुर्राहट निकली। मैं ने महसूस किया कि दर्दनाक प्रथम प्रहार के पश्चात एक मिनट के विराम से मुझे काफी आराम मिलने लगा था। मेरा चीखना चिल्लाना और छटपटाना धीरे धीरे कम हो कर शांत हो गया। चाचाजी अब धीरे धीरे लंड को छोटे छोटे झटके दे दे कर अंदर-बाहर करने लगे। उनके लंड के चारों ओर मेरी चूत की दीवारें रबर की तरह फ़ैल कर विशाल लंड से चिपकी हुई उसके अंदर बाहर होने से पैदा होने वाले घर्षण से मुझे अलग ही आनंद से अवगत कराने लगी। कुछ पलों में ही मैं उनके अजीबो-गरीब लंड से चुदने में मेरी चूत पूर्णतः तैयार और सक्षम हो गई थी। मुझमें अजीब सी मस्ती छाने लगी थी। “आह, ओह, मां, इस्स्स,” मेरे मुंह से निकलती सिसकारियां चाचा जी को बता रही थीं कि अब यह लौंडिया चुदने को बेताब है और जैसे मर्जी वैसे अपनी हवस मिटा सकते हैं।
चाचाजी इसी पल का तो इंतजार कर रहे थे। उनके चोदने की रफ़्तार धीरे धीरे बढ़ने लगी। छोटे छोटे धक्कों की जगह अब लंबे लंबे धक्कों ने ले लिया। मैं मस्ती के आलम में खोती चली गयी। चाचाजी के लौड़े से चुदने का वह अभूतपूर्व आनंद मुझे सचमुच पागल करता जा रहा था। “आह, ओह राजा, हाय चाचा जी, ओह मां, चोद डालो मेरी चूत, आह मजा आ रहा है राजा आह ओह मेरे जान,” मैं बोली जा रही थी। उधर चाचा जी मेरी कमर पकड़ कर धक्का पर धक्का किसी कुत्ते की तरह मारे जा रहे थे और वे पूरे वहशी दरिंदे की तरह जोर जोर से बोले जा रहे थे, “हरामजादी कुतिया अबतक नखरे कर रही थी, बुर चोदी तेरी मां की चूत रंडी, छिनाल, चूतमरानी साली कुकुरचोदी, तेरे बाप की गांड़ मारुं, तेरी मां का भोसड़ा चोदूं, ले हमार लौड़ा हुम्म्म हुम्म, हं हं हं।”
” हां राजा, मैं तेरी बुर चोदी, मैं तेरी चूत मरानी, मैं तेरी रंडी, मैं तेरी कुत्ती, आह, चोद मादरचोद, चोद लौड़े के, मेरे बुर के चुदक्कड़ कुत्ते, कमीने, हरामी, अपनी मां के लौड़े, मुझे आज रंडी बना दे, अपनी कुतिया बना ले,” और न जाने कितनी बेहयाई का इजहार करती वासना के बहाव में बही जा रही थी। मैं ने शराफत का नकाब उतार फेंका और पूरी रंडी की तरह चुदाई का आनन्द लेने लगी।
15 मिनट बाद मैं अनिर्वचनीय आनंद से सराबोर झड़ने लगी, “हाय रे हरामी, मैं झड़ रही हूं रे मां, ओह चोदू न रा्आ्आ्आआ्ज्ज्जआ, इस्स्स” करती हुई छरछरा कर खल्लास हो गई। मगर चाचा जी तो पागलों की तरह मेरी चूचियों को मसलते हुए यंत्रवत किसी कुत्ते की तरह दनादन चोदने में मशगूल थे। चोदने की रफ़्तार बिल्कुल किसी कुत्ते की तरह ही थी। दो तीन मिनट में मैं फिर उत्तेजना के मारे वासना की आग में झुलसने लगी और फिर उस कामुक दरिंदे की वहशियाना हरकतों में डूब कर मदहोश हो गई। उधर टीवी स्क्रीन पर वासना का नंगा नाच और इधर सोफे पर हम दोनों के शरीर, एक दूसरे में समा कर एकाकार होने की जद्दोजहद में कामुकता की पराकाष्ठा को पार करता हुआ बेहद उत्तेजक और अश्लीलतापूर्ण, आपस में गुत्थमगुत्थी और धींगामुश्ती का खेल करीब आधे घंटे तक चलता रहा।
फिर चाचाजी ने तूफानी रफ्तार से चोदते हुए मेरी कमर को कस कर पकड़ लिया और यकायक स्थिर हो गये, इसी समय उनके लंड का गरमागरम वीर्य लावा की तरह फचाफच मेरे गर्भाशय को सींचने लगा और मैं भी उसी समय स्खलित होने लगी। ओह कितना सुख, आनंद की पराकाष्ठा, “हाय मैं गई्ई्ई्ई रज्ज्ज आआ्आ्आह” चाचा जी भी “आआ्आ्आह” करते हुए करीब एक मिनट तक अपना वीर्य मेरी कोख में उंडेलते रहे। उधर टीवी स्क्रीन पर भी दोनों मर्द लड़की की चूत और गांड़ से निकाल कर अपने अपने लंड का वीर्य उस लड़की के चेहरे पर, चूचियों पर और पेट पर फचफचा कर गिराने लगे। उधर वो खल्लास हुए और इधर हम भी स्खलित, निढाल हो गये थे।
चाचाजी तो किसी भैंस की तरह डकारते हुए नंगधड़ंग वहीं फर्श की दूरी पर लुढ़क गये। वे इतने सालों बाद मुझ जैसी लौंडिया को चोद कर निहाल हो गये थे, उनके मुख पर पूर्ण संतुष्टि की मुस्कान थी। मैं भी थकी मांदी उन्हीं के गैंडे जैसे शरीर से चिपक कर पूरी छिनाल की तरह नंगी ही टांग पर टांग चढ़ा कर लेटी रही। उनके आनंददायक चुदाई से तृप्त मैं पगली उनके बेतरतीब दढ़ियल चेहरे पर बेहताशा चुम्बनों की बौछार कर बैठी।
चाचाजी मुस्कुरा कर मुझे अपनी बाहों में कस कर भींचे पूछ बैठे, “ई बताओ बिटिया तुझे इसके पहले किसने चोदा है? सच बताना, शरमाओ मत। हम कौनो को नहीं बताएंगे।”
मैं थोड़ी झिझकी, फिर बोली, “सच बताऊं? बुरा तो नहीं मानेंगे ना?”
“अरे काहे का बुरा मानना। औरत मरद में तो ई सब होते ही रहता है। मगर तुम तो इतना कम उमर में पूरा औरत के जैसी मजा ले कर चुदवा रही थी। इसका मतलब पहले से तुझे चुदाई का मजा मिल चुका है। है ना?” वे बोले।
फिर मैंने एक एक करके शुरू से लेकर अब तक की सारी घटनाएं बताती चली गई। चाचाजी विस्मय से आंखें फाड़कर सुनते जा रहे थे। “तो इसका मतलब तेरे नानाजी, दादाजी और बड़े दादाजी नें चोद चोद कर इतनी कम उमर में ही रंडी बना दिया, साले नतनी और पोती को भी नहीं छोड़ा। अबतक तू हमको मिला कर सात लोगों से चुदवा चुकी हैं। खूब सीख गई है रे तू मेरी बुर चोदी। खूब मजा आया तुझे चोद कर बिटिया।” वे बोले।
“हां राजा, मुझे भी बड़ा मजा आया, ऐसी चुदाई, वाह चाचा जी, आपने तो मुझे अपनी ग़ुलाम बना लिया। आज से पहले ऐसा लंड नहीं मिला था चाचाजी। आप तो बहुत मस्त चदक्कड़ हो मेरे बलमा। आज से मैं आप की भी कुत्ती बन गई मेरे प्यारे बूढ़े कुत्ते। आई लव यू,” कहते हुए मैं फिर उसे बेसाख्ता चूम उठी। मेरी इस अदा पर चाचा जी तो निहाल हो उठे। उन्होंने भी मेरे चेहरे पर चुंबनों की झड़ी लगा दी।

पिछली कड़ी में आप लोगों ने पढ़ा कि हरिया चाचा, याने मेरे बॉयोलॉजिकल, वास्तविक पिता नेंं मेरे शरीर से अपनी कामाग्नि ठंढी की और मुझे अपने लिंग और संभोग क्षमता से बेहद खुशी प्रदान की। स्खलन के बाद पूर्ण संतुष्टि की मुस्कान के साथ मुझे अपनी बाहों में कस कर भींचे पूछ बैठे, “ई बताओ बिटिया तुझे इसके पहले किसने चोदा है? सच बताना, शरमाओ मत। हम कौनो को नहीं बताएंगे।”
मैं थोड़ी झिझकी, फिर बोली, “सच बताऊं? बुरा तो नहीं मानेंगे ना?”
“अरे काहे का बुरा मानना। औरत मरद में तो ई सब होते ही रहता है। मगर तुम तो इतना कम उमर में पूरा औरत के जैसी मजा ले कर चुदवा रही थी। इसका मतलब पहले से तुझे चुदाई का मजा मिल चुका है। है ना?” वे बोले।
फिर मैंने एक एक करके शुरू से लेकर अब तक की सारी घटनाएं बताती चली गई। चाचाजी विस्मय से आंखें फाड़कर सुनते जा रहे थे। “तो इसका मतलब तेरे नानाजी, दादाजी और बड़े दादाजी नें चोद चोद कर इतनी कम उमर में ही रंडी बना दिया, साले नतनी और पोती को भी नहीं छोड़ा। अबतक तू हमको मिला कर सात लोगों से चुदवा चुकी हैं। खूब सीख गई है रे तू मेरी बुर चोदी। खूब मजा आया तुझे चोद कर बिटिया।” वे बोले।
“हां राजा, मुझे भी बड़ा मजा आया, ऐसी चुदाई, वाह चाचा जी, आपने तो मुझे अपनी ग़ुलाम बना लिया। आज से पहले ऐसा लंड नहीं मिला था चाचाजी। आप तो बहुत मस्त चदक्कड़ हो मेरे बलमा। आज से मैं आप की भी कुत्ती बन गई मेरे प्यारे बूढ़े कुत्ते। आई लव यू,” कहते हुए मैं फिर उसे बेसाख्ता चूम उठी। मेरी इस अदा पर चाचा जी तो निहाल हो उठे। उन्होंने भी मेरे चेहरे पर चुंबनों की झड़ी लगा दी।
“अच्छा मैं तो अपनी कहानी बता चुकी हूं, अब आप अपनी बताईए, कितनों को चोद चुके हैं अबतक?” अब हम आपस में पूरी तरह खुल चुके थे। चाचाजी ने बताया, ” हम शादी नहीं किये हैं मगर अब तक 10 औरतों को चोद चुके हैं।”
“हाय राम 10 औरतों को? कहां कहां की औरतें थीं?” मैं ने पूछा।
“अरे अब हमरा मुंह ज्यादा मत खुलवा रे मेरी बुर चोदी बिटिया” वे बोल पड़े।
“नहीं ऐसा नहीं चलेगा। मैं सब कुछ बताई ना। आपको भी बताना होगा, आपके लौड़े की कसम है।” मैं बेहया नंगी उनके नंगे जिस्म से चिपकी ठुनकते हुए पूछी।
“तू सुन न पाएगी, जिद ना कर लड़की।” वे बोले।
संभोग सुख से तृप्त, नंग धड़ंग, बेहद बेशर्मी से उनके बनमानुषि नंगे बदन से चिपकी मचलते हुए जिद करने लगी “चाहे कुछ भी हो जाए मैं तो सुन कर रहूंगी।”
“ठीक है तो सुन। आज से 22 साल पहृले सबसे पहले एक लड़की को चोदा और ऊ भी इसी घर में। पता है ऊ लड़की कौन थी?” उन्होंने कहा।
“कौन थी? बताओ ना”, मैंने बेसब्री से पूछा।
“तोहरी मां।” वे बोले।
सुन कर भौंचक्की रह गई। “हाय राम मेरी मां को चोदे हैं चाचा जी?” मेरी आंखें फटी की फटी रह गई।
“हां रे हां, तुम्हारी मां उस समय 18 साल की थी और हम 38 साल के। हम तो बचपन से ई घर में काम कर रहे हैं ना। तोहरे नानाजी ऐसा अल्बम और फिल्म शुरू से ही देखते आ रहे हैं। एक दिन तोहरी मां के हाथ ऐसा ही एक कैसेट लगा। उस समय वीसीआर और कैसेट का जमाना था। वह कॉलेज से आकर वीसीआर में कैसेट डाल कर चालू की तो ऐसा ही फिल्म चलने लगा। उस समय घर में और कोई नहीं था हमरे सिवा। तोहरे नानाजी और नानी किसी रिश्तेदार के यहां गए हुए थे। ऐसा ही चुदाई का खेल टीवी पर चल रहा था और देखते देखते ऊ भी मस्ती में आ गयी। पहिले कुर्ता के ऊपर से ही चूची दबाना और सलवार के ऊपर से ही चूत रगड़ना चालू किया। हम जब वहां आए तब तक अपना पूरा कपड़ा उतार के चूची और चूत रगड़े जा रही थी। हम कब कमरे में आए उसको पता ही नहीं चला। ऐसा गजब का नजारा देख कर मेरा पूरा बदन गनगना उठा और लंड एकदम टनटना गया। घर में उस वक्त सिर्फ हम दोनों अकेले थे। शाम तक तेरे नानाजी और नानी घर लौटने वाले नहीं थे। हमसे और बर्दाश्त नहीं हुआ और हम उसके सामने आ गये। ऊ बिना कपड़ों के नंगी हड़बड़ा कर खड़ी हो गई और हमने जब उसकी गोल गोल चिकनी चूंचियों को और पनियायी चिकनी बुर को देखा तो पागल हो गया। हमने बिना कुछ कहे उसको वहीं धर के सोफा पर पटक दिया और उसकी चूचियों को मसलना और चूसना शुरू कर दिया।
वह नहीं नहीं करती रही, ” नहीं नहीं नहीं, मेरे साथ ऐसा मत करो ना। छोड़ो मुझे। छोड़ो हरामी।” मगर हमने उसको छोड़ने के बदले उसकी पनियायी चूत में अपनी उंगली भच्च से घुसा कर अन्दर बाहर करने लगा। वह मना करती रही, रोती रही मगर मैं लगातार चूची दबाता रहा और उंगली से चूत की चुदाई करता रहा। धीरे धीरे उसका मना करना और रोना बंद हो गया और मस्ती में आकर आह उह करने लगी। मैं समझ गया कि अब मैं आराम से चोद लूंगा। जब पजामा उतार कर अपना लंड निकाला तो वह मेरा लंड देख कर घबरा गई। फिर से ना ना करने लगी।
“नहीं हरी, हाय मर जाऊंगी, नहीं भैया, नहीं” बोलती रही, गिड़गिड़ाती रही मगर मुझ पर तो उसकी नंगी जवानी का नशा सवार हो गया था, ऐसी मस्त लौंडिया नंगी सामने हो तो कौन बेेवकूफ चोदे बिना छोड़ देगा भला। वह चिििल्ललाती रही, छटपटाती रही मगर अब मैं कहां मानने वाला था, दोनों पैर फैला कर अलग किया और उसकी जांघों के बीच आ कर चिकनी नयी नकोर चूत के मुहाने पर फनफनाया लंड रख कर रगड़ना शुरू कर दिया। अब उसका मना करना फिर धीरे धीरे बंद होता गया और सी सी कर सिसियाने लगी। “इस्स्स इस्स्स” करने लगी।
“बस फिर क्या था हमने एक जोरदार धक्का लगा कर आधा लंड उसकी चूत में उतार दिया।
वह चीख पड़ी, “हाय राम मर गई, छोड़ दो भैया, नहीं, मत करो ना, अम्मा ऊऊऊऊऊऊऊऊ”।
उसकी चूत फट गई थी, झिल्ली फट गई। खून निकल पड़ा मगर मैं रुका नहीं और एक जोरदार धक्का लगा कर पूरा लंड पेल दिया।
वह चिचिया रही थी, रो रही थी, “हाय मां मर गई, मेरी चूत फट गई, आह हरामी हट,” मगर हमें उसके रोने कलपने से क्या लेना देना था, दे दनादन जो चोदना चालू किया तो धीरे-धीरे उसका रोना गाना बंद हुआ और चुदाई की मस्ती में सिसियाने लगी।
“आह ओह हाय आह मजा आ रहा है राजा आह ओह चोद राजा” उसकी आवाज सुनकर मैं पूरा जंगली बन गया और जोर जोर से चोदने लगा, “अब मजा आ रहा है ना, आह ओह ओह, इसी के लिए इतना नाटक कर रही थी, ले मेरा लौड़ा, ले मेरी रानी, आह आह” बोलता हुआ मजेे में चोदता रहा। टाईट चूचियों को दबा दबा कर खूब चोदा। एक घंटे के अंदर उसी जगह उसको दो बार जमकर चोदा। इतना टाईट चूत को चोदने में जो मजा आया कि पूछो मत। वह भी खूब मजा ले ले कर चुदवाती रही। चुदवाने को तो चुदवा लिया उसने, मगर दो दिन तक ठीक से चल नहीं पा रही थी। तेरी नानी ने पूछा तो बोली पैर में चोट लगी है।
उस दिन के बाद तो हमको चोदने का फ्री लाइसेंस मिल गया था। उसको भी मेरा लौड़ा का चस्का लग गया था। तब से जब भी मौका मिलता हम चोदा चोदी कर लेते थे। कभी ड्राइंग रूम में, कभी उसी के रूम में, कभी बगीचे में, कभी पास वाले जंगल में। उसका गांड़ भी बहुत मस्त था। क्ई बार हम उसका गांड़ चोदे हैं, वाह कितना गोल गोल और टाइट गांड़ था उसका। वह भी गांड़ मरवा के बहुत खुश होती थी। जब माहवारी चलता था तो हम उसका गांड़ चोदते थे। वह मेरे लंड की दीवानी हो गई थी और मैं उसकी जवान चूत का रसिया हो गया था। फिर चार साल बाद उसकी शादी हो गई।
सुनते सुनते मैं गनगना उठी। “हाय राम आप तो बड़े छुपे रुस्तम निकले हरी चाचा। शादी के पहले ही मेरी मां की चूत और गांड़ का उद्घाटन कर डाले। खूब मज़ा लूटे मेरी मां से। शादी के बाद फिर मां को कभी चोदने का मौका मिला कि नहीं?” मैं उसके बदन से चिपकते हुए पूछी।
“चोदा ना, कई बार चोदा। जब भी यहां आती थी तो खूब चोदता था। एक बात बताऊं? बुरा मत मानना। ई बात हम इस लिए बता रहा हूं काहे कि तू अपने नाना और दादाजी लोग से चुद चुकी हो, नाता रिश्ता भूल कर।” वह बोल रहा था कि मैं उत्सुकता में बीच में ही बोल पड़ी, “बोलिए ना मैं भला बुरा क्यों मानुंगी। नाता रिश्ता गया मेरी चूत और गांड़ में।” मैं किसी छिनाल की तरह उनके लंड से खेलती हुई ठुनकी।
“ठीक है तो सुन, असल में तेरा बाप नाम का बाप है। शादी के 4 साल बाद भी तेरी मां को बच्चा नहीं हुआ तो तेरी मां ने अपना जांच कराया और पता चला कि तेरी मां के अंदर कोई दोष नहीं है। उसको समझ में आ गया कि उसके पति में ही कमी है। फिर जब वह ननिहाल आई तो हमको पता चला और हमने कहा कि हम तुझे मां बनाएंगे। फिर एक हफ्ते तक वह यहां रही और इस बीच में हमने उसको हर रोज धुआंधार चोदा, एक एक दिन में तीन तीन चार चार बार। फिर जब वह ससुराल गयी तो दूसरे महीने माहवारी नहीं हुआ। समझ गई कि गर्भ ठहर गया है। तीसरे महीने पक्का हो गया कि वह मां बनने वाली है। जानती हो 9 महीने बाद कौन पैदा हुआ?”
मैं समझ रही थी फिर भी अनजान बनते हुए पूछी, “कौन?”
“तू रे हरामजादी, तू। हम हैं तेरा बाप और तू मेरी बुर चोदी बेटी।” बड़ी ही बेशर्मी से बोले।
“हाय राम अपनी बेटी को चोदते हुए लाज नहीं आई, हरामी पापा। मुझे तो पता नहीं था, मगर आपको तो पता था, फिर भी छोड़े नहीं, चोद ही लिए।” मैं नकली गुस्से में बोली।
“अरे लंड ना चीन्हें बेटी। वैसे भी तू कौन सी सती सावित्री हैं। नानाजी, दादाजी, ड्राईवर, सरदारजी, कंडक्टर, सबका लौड़ा खा खा के रंडी तो बन ही गई हो। हम भी चोद लिए तो का ग़लत किया।” बेशरम पापा या हरी चाचा ने कहा।
“इसी लंड से मेरी मां की चूत चोदे और मुझे पैदा किया और अब उसी मां की चूत से निकली बेटी की चूत भी चोद डाला मादरचोद पापा। वाह चोदू पापा आपने तो अधर्म की अति कर डाली। इसी दिन के लिए मैं बेटी पैदा हुई थी क्या? खैर, अब जो होना था वो तो हो गया। जो भी होता है अच्छे के लिए होता है। ऐसा नहीं हुआ होता तो मुझे इतना मस्त लंड से चुदने का सौभाग्य कैसे मिलता। सच में, मैं तो तुम्हारे लंड की दीवानी हो गई हूं मेरे जंगली चोदू पापा।” कहकर उनके लंड को पकड़े पकड़े उनके चेहरे पर चुम्बनों की बौछार कर बैठी। वे मुस्कुरा उठे।
“अब आगे सुन बिटिया।” वे बोले, मगर मैं बीच में ही बोल उठी, “अब आगे बाद में, देखिए आप की कहानी सुनकर मैं फिर से गरम हो गई पापाजी, आपका लौड़ा भी तो बमक उठा है, एक बार फिर से चोद लीजिए ना प्लीज।” मैं चुदने को पसर गई। “ठीक है मेरी चूत मरानी, ले अभिए चोदते हैं,” कहते हुए मेरी टांगों को फैला कर उठाया और अपने कंधे पर रख कर सीधे अपना लौड़ा मेरी पनियायी बुर में उतार दिया। फिर जो घमासान चुदाई हुई कि पूछो ही मत। अब तो मैं सब कुछ जानते बूझते अपने सगे बाप के लंड से एक बेशरम छिनाल की तरह अपनी बुर चुदवा रही थी। इसका भी एक अलग ही रोमांच था। आधे घंटे तक चुदाई का धुआंधार खेल चलता रहा फिर हम दोनों बाप बेटी झड़ कर हांफते कांपते शान्त हो गये। अब जब थोड़ी देर बाद हमने होश संभाला तो मैं ने कहा, “हां अब बताईए आगे की कहानी”।
अब उसने आगे की कहानी शुरू की। “शादी के बाद तेरी मां की तो बिदाई हो गयी और मैं बुर चोदने को तड़प रहा था। कोई मिल ही नहीं रही थी जिसे चोद कर अपनी प्यास बुझाएं। मगर एक दिन हमारे किस्मत का ताला खुल गया। एक दिन हम नहा कर तौलिया लपेटे बाहर सूख रहा अंडरवियर लेने बाहर आया तो अचानक मेरा गमछा खुल कर गिर पड़ा, ठीक उसी समय तेरी नानी पिछवाड़े में कचरा फेंकने आ रही थी, उसने ने मेरा मूसल जैसा लंड देख लिया। मैं ने उसे नहीं देखा था पर उसने मेरा मस्त लौड़ा देख लिया था। उसी दिन दोपहर को खाना खाने के बाद मुझे कमर दर्द के बहाने से कमरे में बुलाया और कमरा बंद कर के कमर में तेल लगाने बोली। वह गोल मटोल 40 साल की सुंदर औरत थी। वह बिस्तर पर उल्टा लेट गई और हम उसके कमर में तेल लगाने लगे तो बोली, “और थोड़ा नीचे” हम और नीचे तेल लगाने लगे, फिर बोली, “और थोड़ा नीचे” हम ऐसा ही करते गये।, मैं जब कमर से नीचे तेल लगाने लगा तो तेल साड़ी में नहीं लगे सोचकर थोड़ा नीचे खिसकाने लगा तो पता चला कि उसने पेटीकोट तो क्या, कुछ भी नहीं पहना था और साड़ी इतना ढीला था कि मेरा हाथ फिसलकर सीधा उसकी गांड़ पर जा पहुंचा। मैं हड़बड़ा कर साथ हटाने लगा तो बोली, “हाथ मत हटाओ हरी के बच्चे, बहुत अच्छा लग रहा है।” अब हमारे समझ में सब कुछ आ गया। वह तो हमसे चुदने के लिए तैयार बैठी थी। तेरी नानी का बड़ा सा गांड़ वैसे भी बहुत मस्त था। मेरा लंड फनफना उठा। तेरी नानी ने देखा कि मेरा लंड फनफना उठा है तो एक हाथ से मेरा लंड पैजामे के ऊपर से ही पकड़ लिया और मुठियाने लगी। मैं भी तेरी नानी का गांड़ जोर जोर से दबाने लगा। वह आह उह करने लगी थी। हमने धीरे धीरे तेरी नानी का गांड़ के छेद में तेल से भीगा उंगली डाल कर अंदर-बाहर करना शुरू कर दिया। फिर गांड़ से नीचे बड़ी सी फूली हुई झांटों से भरी भैंस जैसी बुर पर उंगली रगड़ना शुरू किया। वह मस्ती में “उस्स इस्स्स आह उह” कर रही थी।
“अब देखता क्या है मादरचोद, अब भी बोलना पड़ेगा क्या। चोद डाल हरामखोर” तेरी नानी बोली। पूरा गांड़ और बूर तेल और चूत का रस से छपछपा गया था। हमको अब और का चाहिए था, इतना खुला निमंत्रण मिल रहा था सो झट से पैजामे को खोल फेंका और, झटके से तेरी नानी का साड़ी ब्लाउज खोल फेंका। गजब का बदन था तेरी नानी का। बड़ी बड़ी थल थल करती चूचियां, चर्बीदार पेट, मोटे मोटे चूतड़ और घने झांटों से भरा भैंस जैसा बड़ा सा फूला हुआ भोंसड़ा। हमने थलथलाती चूचियों को मसलना चूसना शुरू कर दिया। झांट से भरी फूली हुई बुर में उंगली डाल कर अंदर-बाहर करने लगा। जब वह सिसकारियां निकालने लगी “अब उंगली से ही चोदेगा क्या हरामी, अपना लंड दिखाने के लिए रखा है क्या, जिसे देख कर मैं ने तुझे यहां बुलाया है।” वह बड़ी बेताबी से बोली।
मैंने आव देखा न ताव अपना लंड एक ही झटके में उसकी भैंस जैसी बुर में उतार दिया। वह चीख पड़ी, “हाय मर गई रे मादरचोद, एक ही बार में ठोक दिया इतना मोटा लौड़ा, मेरी चूत फ़ाड़ देगा क्या हरामी, बाप रे बाप।” उतना बड़ा भोंसड़ा में भी बहुत टाईट घुसा था। अंदर तेरी नानी की चूत किसी भट्ठी की तरह गरम था। मैं अब ताव में आ चुका था, डर भय खतम, जंगली जानवर की तरह भंभोड़ लेने को तैयार “चुप्प बुर चोदी, अब हमरा लौड़ा ले हुम, चिल्ला मत कुतिया। अभी कह रही थी लौड़ा से चोद, ई है हमरा लौड़ा, अब लौड़ा पेला तो चिचियाने लगी साली रंडी।” कहते हुए उसकी कमर को पकड़ कर थोड़ा और उठाया, गांड़ ऊपर उठ गया, भैंस जैसा बुर एकदम बढ़िया से चोदने के लिए सामने हो गया, उसे कस कर पकड़ा और कुतिया की तरह ही पीछे से जो भकाभक चोदना चालू किया कि वह “आह फाड़ दिया रे मादरचोद, मार डाला हरामी कुत्ते, मेरी बुर का भुर्ता बना डाला कमीने, हाय मैं क्यों इस गधे को चोदने बुलाई, आआ्आ्आह।” चीखने चिल्लाने लगी। हम अब कहां रुकने वाले थे, धकाधक कुत्ते की तरह चोदे जा रहे थे। “साली रंडी, हमसे चूत मरवाने को मरी जा रही थी, ले ले मेरा लौड़ा अपनी चूत में, हम हु, मस्त चूत है रे रानी, खूब मज़ा आ रहा है, और ले मेरा लौड़ा अपना भोंसड़ा में, आज हम तुमको अपना लौड़ा से स्वर्ग दिखा देंगे।” कहता जा रहा था।
फिर जब धीरे धीरे दर्द कम हुआ तो वही बुर चोदी बोलने लगी, “आह राजा, ओह राजा, चोद साले और जोर से चोद सैंया, हाय मेरे राजा, ओ्ओ्ओ्ओह मेरे चोदू बलमा ््आ््आ्््आ््आ्आ।” पीछे से धक्का भी लगाने लगी। बहुत मजा आ रहा था। लगभग आधा घंटा लगातार चोदता रहा और इस बीच वह दो बार झड़ चुकी थी। फिर जब हम अपना माल उसकी बुर में गिराने लगे तो तीसरी बार छरछरा कर झड़ी, “हाय््य्य्य स्स्स झड़ी रे मैं झड़ी” कहते हुए थरथरा कर बिस्तर पर ही गिर पड़ी और मैं उसके ऊपर ही गिर कर चिपक गया और जबतक पूरा खलास नहीं हुआ वैसा ही चिपक कर पड़ा रहा। तेरी नानी की चूत मेरे लंड से गिरते एक एक बूंद रस को चूसती रही। मजा आ गया तेरी नानी को चोद कर। तेरी नानी पसीने से लथपथ हांफती कांपती हुई बोली, “बड़ा मजा आया हरिया। लक्ष्मी के पापा तो खाली कुत्ते जैसे चोद कर अपने लंड में फंसा लेता है और बहुत रुलाता है। मगर तू मस्त चुदक्कड़ है। अब से मैं तेरी औरत हुई और तू मेरा मरद।” फिर नंगी भैंस मुझसे लिपट कर चूमने लगी। हम बोले, “हां रानी, अब से हम तेरा मरद हुआ और तू हमारी लंड रानी औरत।” उस दिन हमने उसको और एक बार चोदा। उस दिन के बाद हमको जब मौका मिलता चोद लेते थे। कभी बाथरूम में, कभी किचन में साड़ी उठा कर खड़े खड़े, कभी स्टोर रूम में, कभी बगीचे की झाड़ी के अंदर और कभी सामने वाले जंगल में। फिर वह बीमार हुई और आज से 10 साल पहले मर गई।
उसके मरने के बाद हम फिर चोदने के लिए तड़पने लगा।। मगर हमारा किस्मत अच्छा था कि हमको ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ा और एक मस्त औरत जल्दी ही मिल गई चोदने के लिए। वह थी हमारी कामवाली बाई, काली कलूटी, मोटी ताज़ी, मगर एकदम सेक्सी, जिसकी उमर उस समय करीब 35 साल रही होगी।उसका पति हमेशा बीमार रहता था। उसको कई दिनों से चोदने के फिराक में था और एक दिन सुनहरा मौका मिल गया। उसका बीमार और कमजोर मर्द उसको चुदाई का पूरा सुख क्या दे पाता होगा। उस दिन पहली बार जब उसको चोदा, हमारे सिवा घर में और कोई नहीं था। वह घुटने के बल झुकी हुई फर्श का पोछा लगा रही थी। हम ने देखा कि उसकी बड़ी-बड़ी चूचियां ब्लाऊज़ से आधी बाहर की ओर झांक रही थी और बाहर निकलने को तरस रही थी। बड़ी बड़ी गांड़ पीछे से बड़े ही मस्त ढंग से उठी हुई हिल रही थी। हमने जब उसको उस हालत में देखा तो मेरा लौड़ा फनफना उठा। मौका अच्छा था। हमने सोच लिया कि आज इसको चोद कर रहेंगे। चुपचाप अपना कपड़ा उतार कर नंगा हो गया और पीछे से जाकर उसका साड़ी उठा दिया। साड़ी के अंदर वह कुछ नहीं पहनी थी। पूरा काला काला चूत और गांड़ खुल के मेरे सामने था। वह हकबका गयी और उठने वाली थी कि हमने उसको वहीं पटक दिया। उसने जब हमको बिना कपड़ों के नंगा देखा और मेरा टनटनाया लौड़ा देखा तो घबराकर बोली “नहीं हरिया नहीं, हमको छोड़ दो, खराब मत करो।” वह रोने लगी।
“चुप साली हरामजादी, बहुत दिन बाद तो तुमको चोदने का मौका मिला है। देख कितना मस्त बदन है तेरा। क्या मस्त चूची है, क्या मस्त गांड़ है, क्या मस्त चूत है। देख मेरा लौड़ा तुमको चोदने के लिए कैसे उछल रहा है। तू आज खुश हो जाएगी। तू अपने बीमार कमजोर मरद को भूल जाएगी।” हम बोले।
“नहीं हरिया, इतना मोटा और लम्बा लंड से मैं मर जाऊंगी, हमको छोड़ दो ना” फिर रोने लगी।
“साली तू ऐसे नहीं मानेगी।” हमनें कहा और जबरदस्ती उसका सारा कपड़ा उतार के नंगी कर दिया। उसका मस्त गठा हुआ शरीर, बड़े बड़े चूचियां, गोल गोल बड़ी बड़ी काली चिकनी गांड़, झांटों से भरी काली दपदप करती चूत, देख कर मैं तो पागल हो उठा। वह और जोर से रोने लगी। हमने गुस्से से उसको वहीं पटक दिया और दोनों पैर फैला कर अपना लौड़ा एक ही झटके में उसकी चूत में ठोक दिया।
“आ्आ्आह ओ्ओ्ओ्ओह मर गई ई रे्ए्ए्” चीख पड़ी। हमनें जोर से उसका मुंह बंद किया और डांटा, “चोप्प्प हर्र्र्र्र्रामजादी कुत्ती। थोड़ा शांत रहो फिर देख कितना मज़ा आता है।” मेरा लौड़ा पूरा जड़ तक उसकी चूत में फंसाकर उसके दोनों पैर फैला कर उठाया और वहीं जमीन पर धकाधक चोदने लगा,”आह रानी क्या मस्त चूत है रे हरामजादी,”।
थोड़ा देर तो वह दर्द के मारे रोती कलपती छटपटाती रही, “हे राम, हे बप्पा, हे माई, मार दिया रे, फाड़ दिया रे, हाय हाय आ्आ्आह”। मगर थोड़ा ही देर में ऊ भी मस्ती में भर के सिसियाने लगी। “आह ओह हरिया, हाय राजा, बहुत मजा आ रहा है राजा, आह चोद हरामी”। करीब आधे घंटे चोद चोद के हम अपना माल झाड़ दिया और वह तो मेरा लौड़ा से चुद कर खुशी से पागल हो गई। हम दोनों वहीं लस्त पस्त पड़ गये। “खूब मज़ा दिया राजा, अब तुम्हीं मेरे बलमा हो। अब से जब मर्जी, जैसा मर्जी, हमको चोदना राजा।”
“हां रानी आज से हम तेरा मरद और तू हमरी औरत हुई।” थोड़ा ही देर में फिर मेरा लौड़ा खड़ा हो गया और उसी समय फिर से उसको कुतिया बना के खूब जम के चोदा। इतना मजा बहुत दिन बाद मिला था। उसके के बाद तो रोज ही उसको चोदने लगे। चार महीने बाद पता चला कि उसको गर्भ ठहर गया।
ऊ बोली कि “ई हमारे प्यार की निशानी है।” शादी के 10 साल बाद ऊ गर्भवती हुई थी, बहुत खुश थी, उसका मरद भी बहुत खुश था, उसको का पता था कि ई बच्चा मेरे लौड़े का फल है। 6 महीने बाद ऊ बोली कि “अब मत चोदो नहीं तो बच्चा खराब हो जाएगा। बच्चा होने के बाद फिर चोदते रहना।”
हम परेशान हो गए। चोदने का चस्का जो लग गया था। कुछ दिन बाद जब बर्दाश्त से बाहर हो गया तो हमने एक सब्जी बेचने वाली औरत को चोदने का प्लान बनाया। वह रोज सवेरे 9 बजे सब्जी ले कर आती थी। 8:30 बजे तुम्हारे नानाजी नाश्ता करके बाहर निकल जाते थे और सीधे 12 बजे घर आते थे। सब्जी बेचने वाली औरत करीब 45 साल की सांवली मोटी और नाटी करीब साढ़े चार फुट की थी। गोल मटोल चेहरा, बड़े बड़े थलथल करते चूचे, बड़े बड़े गोल गोल चूतड़। उस दिन हम सिर्फ लुंगी पहन कर रेडी थे। जब वह गेट पर आई तो हमने उसको गेट के अंदर बुलाया। वह अन्दर आ कर सब्जी की टोकरी नीचे रखकर बैठ गई। उस समय हमारे अलावा घर में और कोई नहीं था, गेट के बाहर रास्ते पर कोई नहीं था। हम सब्जी चुनने के बहाने ऐसे बैठे कि सामने से लुंगी थोड़ा हट गया और मेरा टनटनाया लंड दिखने लगा। हम अनजान बने आराम से सब्जी हाथ में उठा उठा कर देखने लगे। उस औरत की नजर जैसे ही हमारे लंड पर पड़ी, देखती ही रह गई। जैसे ही उसने हमारा चेहरा देखा झट से दूसरी ओर देखने लगी, फिर भी तिरछी नजर से बार बार देखती रही। उसके चेहरे से पता चल गया कि मेरा लौड़ा उसको ललचा रहा है। उसकी सांसें तेज तेज चलने लगी थी।
हमने बोला, “हमको सब्जी ताजा नहीं लग रहा है, हम ई सब्जी नहीं लेंगे”।
ऊ सब्जी वाली अनजान बनते हुए थोड़ा झुक गई जिसके कारण उसकी किलो किलो भर की चूचियां ब्लाउज से बाहर आधा निकल गई, साड़ी थोड़ा सा ऊपर चढ़ाई और थोड़ा पैर फैला कर कर बोली, “ठीक से देखिए ना, अच्छा तो है।”
हमने देखा इतना बड़ा बड़ा मस्त चूची ब्लाउज से आधा बाहर निकल आया था और साड़ी के अंदर उसकी चूत साफ़ साफ़ दिख रही थी। अंदर उसने कुछ नहीं पहना था। वह अनजान बनने का नाटक करती हुई अपना बुर और चूची दिखा रही थी। वह ललचाई नज़रों से तिरछी नजर से मेरा लौड़ा भी देख रही थी और हम उसका चूची और बुर देख रहे थे। हम समझ गए कि मामला फिट हो गया। हम बोले, “हां ठीक तो दिख रहा है मगर खाने में कैसा लगेगा, कैसे पता लगेगा?”
“तो खा के देख लीजिए ना”, वह हमें खुला निमंत्रण दे रही थी।
अब तक मेरा धीरज जवाब दे चुका था। “ठीक है तो चलो टेस्ट करके देखते हैं” हमने उसको घर के अंदर आने को कहा और उसके अंदर आते ही तुरंत दरवाजा बंद कर दिया और उस सब्जी वाली औरत पर झपट पड़ा। फटाफट उसका साड़ी ब्लाउज खोल दिया और उसका नंगा बदन देख कर पागल हो गया। बड़ी बड़ी चूचियां, भारी भारी गांड़, फूला हुआ बूर, झांटों से भरा हुआ। झट से अपना कपड़ा खोल कर वहीं जमीन पर उसको दबोच लिया और उसकी बड़ी-बड़ी चूचियों को दबाना और मसलना शुरू कर दिया। मेरा लौड़ा का पूरा साईज देख कर तो उसका होश ही उड़ गया।
“हाय राम, आपका लौड़ा तो बहुत बड़ा है। मेरा बुर फाड़ दीजियेगा। मर जाऊंगी मैं। मत खाइए (चोदिए) हमको।” घबराकर बोली।
“अरे चखने तो दे, तू खुद बोलेगी पूरा खा (चोद) लीजिए हमको।” हम बोले और उसकी फूली हुई बुर किसी कुत्ते की तरह चपड़ चपड़ चाटने लगा। उसकी चूत से पेशाब का गंदा महक आ रहा था मगर हमको उस महक से और ज्यादा जोश चढ़ गया। जोश में आ कर और जोर जोर से सड़प सड़प चाट चाट कर उसको पागल कर दिया।
“आआ्आ्आह राजा, इस्स्स, हाय हाय ओ्ओ्ओ्ओह, अब चोद डालो जी, और मत तड़पाओ राजा” वह गरमा के पागल की तरह बोलने लगी। लोहा गरम था, हमने फटाक से उसके पैर फैला कर उठा लिया, दोनों पैर को अपने कंधे पर चढ़ा लिया और अपना लौड़ा उसकी चूत पर टिका कर एक जोर का धक्का लगा दिया। मेरा लौड़ा उसकी चूत को चीरता हुआ पूरा जड़ तक घुस गया।
“आ्आ्आह मां मर गई, ओ्ओ्ओ्ओह मेरी बुर फट गई रे बप्पा,” रोने चीखने लगी।
“चुप साली रंडी, एकदम चुप। देख पूरा लंड घुस गया है, थोड़ी देर में ही तू बोलेगी और चोद और चोद।” मैं बोला। इसके बाद उसकी चूतड़ को नीचे से पकड़ कर जम कर चुदाई चालू कर दिया। उसकी चूचियों को चूसने लगा। अब वह भी मस्त हो गई थी और मजे से चूतड़ उछाल उछाल कर हमारे हर धक्के का जवाब देने लगी। “आह राजा, ओह चोदू, इस्स्स इस्स्स उह्ह्ह उह्ह्ह, चोद डालो जी, फाड़ दो मेरी बुर, खा जाओ हमको” बोलती जा रही थी। हम भी दुगुने जोश में भर के भकाभक चोदने लगे। चुदक्कड़ औरत की तरह वह भी इस्स्स इस्स्स करके चुदवाती रही। रुक रुक कर एक घंटे तक चोदता रहा और फिर खलास हो कर वहीं जमीन पर लुढ़क गया। सब्जी वाली तो कितनी बार खलास हूई पता नहीं मगर जब हम उसे चोद कर छोड़ा तो वह एक दम थक कर चूर हो गई थी, पसीने से लथपथ हो गई थी और कुतिया की तरह हांफ रही थी। जब थोड़ी सांस में सांस आई तो “राज्ज्ज्जआ्आ्आ, हम अब तेरी हो गई बलमा, बहुत मस्त चुदक्कड़ हो जी।” बड़ी खुशी से झूम कर बोली।
हम भी बोले, “अब तू रोज सबेरे जब सब्जी लाएगी, हम पहले तुझको चोदेंगे फिर सब्जी खरीदेंगे। तू बड़ी मस्त माल है रानी।” फिर क्या था, सब्जी वाली को रोज़ चोदने लगा। उस सब्जी वाली का नाम पार्वती था मगर हम उसको पारो बोलते थे। हम उसको जैसा मर्जी वैसा चोदता था। चोद चोद के बुर का तो भोंसड़ा बना दिया, गांड़ चोद चोद के और बड़ा कर दिया, चूची एक एक किलो से डेढ़ डेढ़ किलो का बना दिया। वह हमारी गुलाम बन गई थी।
एक दिन हम पारो को चोद रहे थे उसी समय तेरे नानाजी का ड्राइवर करीम आ गया। हम दरवाजा अंदर से बंद नहीं किए थे, वह सीधा अंदर आ कर हम दोनों को नंगे चुदाई करते हुए देख लिया।
“अरे साला हरामी हरिया, अकेले अकेले माल चोद रहे हो? हमारा जरा भी ख्याल नहीं आया मादरचोद? मुझको भी चोदने दे नहीं तो मालिक को बता दूंगा।”
हम घबड़ा गये और बोले, “अरे करीम भाई, मालिक को काहे बताओगे, तुम भी चोद लेना, पहले हम को चोद लेने दे।”
्यह सुनकर पारो बोली, “नहीं नहीं, दो दो लोगों हम नहीं चोदावेंगे।”
“साली हरामजादी, हमको चोदने नहीं देगी तो मालिक को बता दूंगा। सोच लो”। करीम बोला।
“हे भगवान ये हम कहां फंस गए। ठीक है ठीक है, चोद लीजिएगा, मगर मालिक को मत बताइएगा।” घबड़ाई हुई पारो बोली।
“ठीक है हरिया तेरे बाद मैं चोदुंगा। मैं चोदने के लिए तैयार हो रहा हूं।” कहते हुए फटाफट अपना कपड़ा खोल कर रेडी हो गया। उसका लंड भी कम नहीं था। सामने का चमड़ा कटा हुआ था, इसलिए बड़ा सा फूला हुआ सुपाड़ा पूरा दिख रहा था, लंड पूरा 9 इंच लम्बा और तीन इंच मोटा था।
हम जैसे ही चोद कर उठे, तुरंत करीम पारो पर सवार हो गया और चुदी हुई बुर में एक ही बार में भक्क से अपना लंड ठोक दिया। पारो चीख पड़ी क्योंकि उसका सुपाड़ा बहुत बड़ा था। करीम को उसकी चीख चिल्लाहट से क्या मतलब था, वह तो भूखा भेड़िए की तरह टूट पड़ा और दनादन चोदने लगा।
“हाय मार डाला रे, आ्आ्आह ओ्ओ्ओ्ओह, मैया रे, बप्पा रे,” कहते हुए रो रही थी, चीख रही थी, छटपटा रही थी मगर करीम हरामी कई दिन से चूत का भूखा, कुत्ते की तरह चोदे जा रहा था। वह भी हट्टा-कट्टा पठान था, रगड़ रगड़ के चोद रहा था।
“साली रंडी, अभी हरिया चोद रहा था तो खूब मज़ा आ रहा था और अभी हम चोदने लगे तो लगी मैया बप्पा करने।” बोलते हुए आधा घंटा तक भकाभक चोदा। पारो शुरू में तो कुछ देर रोती रही फिर उसको मजा मिलने लगा और अब बड़बड़ाने लगी थी, “आह राजा ््ज््ज्््ज््ज्ज््ज््ज्््ज््ज्जा आ्आ्आह ओ्ओ्ओ्ओह ओ्ओ्ओ्ओह, चोद डाल, मार डाल, रंडी बना लें, कुत्ती बना ले, खूब मज़ा आ रहा है रे हरामी, बुर चोद।”
हम उनकेे चुदाई को देख कर और उनका बकबकाना सुन कर हंस रहे थे। उनका चुदाई देख कर खूब मज़ा आया। जब दोनों खलास हो गये तो पारो बोली, “तुम दोनों बहुत बड़े चुदक्कड़ हो जी। बहुत मजा दिया तुम दोनों ने। अब तुम दोनो ही हमको चोदना, आज से तुम दोनो ही हमारे मरद हो।” उसका बुर फ़ूल कर पावरोटी हो गया था मगर वह बहुत खुश थी।
फिर तो हम-दोनों का चांदी हो गया। खूब मज़ा किए हम दोनो मिल कर।
इतना सुनते सुनते मैं फिर उत्तेजित हो गई और पापा के ऊपर चढ़ कर बोली, “बस करो पापा, बाकी बाद में बता देना, अभी तो फिर एक बार चुदने का मन हो गया है। आप वैसे ही लेटे रहिए, मैं ऊपर से आपके लंड पर बैठ कर चुदवा लूंगी।” कहते हुए मैं उसके खड़े लंड पर भच्च से बैठ गई और ऊपर नीचे उछल उछल कर चुदने लगी। फिर पूरी तरह खल्लास हो कर उन्हीं के ऊपर पड़ गई।
“बहुत बड़ी रंडी हो गई है रे तू। बहुत सीख गई है। ख़ूब मजा करेंगे हम।” वे बोले और मझे चूम लिए। “हां पापा यह सब आप लोगों की कृपा है जिसके कारण आज मैं ऐसी हो गई हूं।” मैं बोली। हमने घड़ी देखा तो 8 बज चुका था। हम थके हुए थे मगर उठे और कपड़े पहन कर तैयार हो गए और नानाजी, दादा जी और बड़े दादाजी का इंतजार करने लगे।

पिछली कड़ी में अपने पढ़ा कि नानाजी का नौकर हरि, न सिर्फ उनका नौकर था बल्कि मेरा जैविक पिता भी था। मेरी मां और हरि के शारीरिक संबंधों का नतीजा थी मैं। नौकर हरि अर्थात मेरे वास्तविक पिता ने जानते बूझते, कि मैं उनकी अपनी सगी बेटी हूं, मुझे अपनी हवस का शिकार बनाया। मैं खुद पर भी चकित थी कि इतनी बड़ी बात पता लगने के बावजूद मेरे अंदर कोई खास अपराधबोध नहीं था, बल्कि इसके उलट मुझे एक नये रोमांच का अहसास हो रहा था। अपने बाप के विशाल व अद्भुत लंड से आरंभिक पीड़ा के पश्चात संभोग का जो आनंद मैं ने प्राप्त किया वह अवर्णनीय था। मेरे बाप द्वारा बेशर्मी भरी कामलीला के बाद इस रहस्योद्घाटन के दौरान, कि मैं उनकी सगी बेटी हूं, उनके चेहरे पर लेशमात्र भी अपराधबोध नहीं था और न ही लज्जा, बल्कि इसके विपरीत एक खेले खाए वासना के पुजारी औरतखोर की तरह चोद कर तृप्त मुस्कान खेल रही थी। फिर उनकी जिंदगी में अबतक किस तरह एक एक करके नारियां उनकी कामुकतापूर्ण रासलीला में स्वेच्छा अथवा जोर जबरदस्ती से भगीदार होती गईं, इसका खुलासा उन्होंने मेरे सामने करना शुरू किया। मेरी मां, नानी, कामवाली बाई और सब्जी वाली औरत, इन सबसे किस तरह उनका शारीरिक संबंध स्थापित हुआ, इसका वर्णन उन्होंने किया और साथ ही ड्राईवर करीम किस तरह उनके इस खेल में शामिल हुआ इसका भी खुलासा किया। जितनी देर उन्होंने उपरोक्त चार स्त्रियों के साथ की गयी विभिन्न मुद्राओं में की गई उत्तेजक कामलीला का विस्तृत वर्णन किया, उस दौरान धधक उठती उत्तेजना के आवेग में हर घटनाओं के बीच विराम ले ले कर हम कलयुगी बाप बेटी ने रिश्तों की मर्यादा को शर्मशार करते हुए तीन बार और वासना के समुद्र में डुबकी लगा लगा कर नंगा खेल खेला।
अब आगे की घटनाओं का वर्णन सुनिए।
रात करीब 8:30 बजे नानाजी, दादाजी और बड़े दादाजी बाजार से वापस आए। उस समय तक मैंने और मेरे बाप ने अपना अपना हुलिया ठीक कर चुके थे। दोनों ही अपने अपने हवस की प्यास अच्छी तरह बुझा चुके थे। हालांकि इस दौरान की धमाचौकड़ी, गुत्थमगुत्थी और धींगामुश्ती में हम बुरी तरह थक गये थे मगर नहा धो कर काफी हद तक सामान्य दिख रहे थे।
“कैसी हो बिटिया? ठीक से आराम की ना?” नानाजी ने पूछा।
“हां नानाजी, खूब बढ़िया से आराम की” अपने चोदू बाप को आंख मारते हुए मुस्कुरा कर बोली।
पापा भी मुस्कुराहट छिपाते हुए किचन के अंदर गये। इतने में मेरा मोबाइल बज उठा। यह मम्मी का कॉल था। वह पूछ रही थी कि हम ठीक ठाक पहुंचे कि नहीं। मैं ने बताया कि हम ठीक ठाक पहुंच गए हैं। मेरे और मम्मी के बीच हो रही इस वार्तालाप को सभी सुन रहे थे और सबके चेहरे काले पड़ गये थे, मगर मैं सहज भाव से बातें कर रही थी। अब मैं क्या बताती कि बस में उनकी बेटी के साथ पांच पांच बूढ़ों ने क्या क्या कुकर्म किया, और अभी अभी तीन घंटों के अंदर उनके आशिक हरिया ने (मेरे बाप ने) उनकी बेटी के साथ नाजायज संबंध बनाते हुए तीन तीन बार वासना का नंगा खेल खेलकर मनमाने ढंग से अपनी हवस मिटाई और मुझे छिनाल बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ा। यह अलग बात है कि मैं भी इस खेल में स्वेच्छा और पूर्ण समर्पण के साथ बराबर की हिस्सेदार रही और हर एक पल का लुत्फ लेती हुई अपने ही बाप के अद्भुत लंड और उनकी चुदाई की दीवानी हो गई।
अभी मैं मम्मी से बात कर ही रही थी कि और किसी का कॉल आने लगा। मैं ने मम्मी को बाय किया और देखा कि यह सरदारजी का कॉल था। मैं धक् से रह गई। समय देखा तो रात के 9 बज रहे थे।
“हैलो” मैं ने कॉल उठाया।
“हैल्लो मेरी छमिया, क्या हाल है?” उधर से सरदारजी की आवाज आई।
“क्या हुआ बोलिए सरदारजी, कैसे याद किया?” मैं खीझ कर बोली।
“बस तेरी मदमस्त चूत की याद आ रही थी इसलिए याद किया मेरी जान, अभी आ सकती हो तो मेरे घर में आ जाओ, तेरी बहुत याद आ रही है रानी।” बड़े घटिया तरीके से बात कर रहा था।
मुझे गुस्सा तो बहुत आ रहा था मगर गुस्से को बमुश्किल काबू में कर के बोली, “नही, मैं अभी इतनी रात में नहीं आ सकती सरदारजी”
“क्या कहा, मुझे ना कहती है कुतिया। तेरा वीडियो अपलोड करूं क्या?” सरदार जी फुंफकार उठे।
मेरा भेजा घूम गया। बड़ी मुश्किल से अपने गुस्से को काबू में कर के बोली, “ठीक है सरदारजी आती हूं, मगर जल्दी छोड़ दीजियेगा,”
“अरे मेरी रानी, एक घंटे में छोड़ दूंगा।”
“फिर ठीक है, अपने घर का पता बताईए।” मैं बोली।
“तू लालपुर चौक आ जा, मैं वहीं मिलूंगा।”
“ठीक है, आ रही हूं,” कहकर मैंने फोन काट दिया। फिर मैंने उन बूढ़े आशिकों से कहा “मैं एक घंटे में उस सरदारजी को निपटा कर आती हूं” फिर मैंने हरी पापा को आवाज दी, “चाचा जी चलिए जरा सरदारजी को निपटा कर आते हैं।”
फिर मैं अपने बाप को साथ ले कर नानाजी के कार से ही निकल पड़ी। तीनों बूढ़े असहाय भाव से मुझे देखते रह गए। करीम ड्राईवर ही कार ड्राइव कर रहा था। मैं पीछे की सीट पर पापा के साथ बैठी थी। मैं ने उनको समझा दिया कि सरदारजी के घर के बाहर मेरा इंतजार करें। जैसे ही कार स्टार्ट हुआ, पापा ने मुझे कमर से पकड़ कर अपनी ओर खींच कर सटा लिया। बांया हाथ मेरी कमर पर था और दाहिने हाथ से मेरी चूचियों पर हाथ साफ करने लगा। फिर जैसे ही मुझे चूमने को था, मैं ने उन्हें आंख दिखाई।
रीयर व्यू आइने में करीम चाचा ने हमारी हरकतों को देख लिया और बोला, “यह क्या हो रहा है हरिया? साले अकेले अकेले?”
पापा हड़बड़ा गये। “अरे कुछ नहीं भाई”।
“क्या कुछ नहीं साले। मुझे उल्लू समझा है? हमने सब कुछ देख लिया है। लगता है तूने अकेले अकेले इस पर हाथ साफ कर लिया है। मुझे भूल गए क्या साले हरामी? याद है ना, आजतक हम मिल बांट कर खाए हैं। हां तो कम्मो बिटिया, हम पर भी थोड़ी मेहरबानी कर देना, नहीं तो मालिक को सब बता दूंगा।” वह बोला।
मैं घबराकर बोली, “नहीं करीम चाचा, प्लीज घर में किसी को कुछ मत बताइएगा। मैं आपकी ख्वाहिश पूरी करने को तैयार हूं।”
मुझे पापा पर गुस्सा आ रहा था, “न जगह देखा न माहौल देखा, बस शुरू हो गये।” मैं ने पापा को डांटा। पापा खिसिया कर मुझ पर से हाथ हटा लिए। करीम चाचा को इस बात का ज़रा भी आभास नहीं था कि हरी मेरा सगा बाप है। पता नहीं इस प्रकार के अनैतिक रिश्ते के बारे में जानकर उनकी प्रतिक्रिया क्या होती।
खैर मैंने बात को दूसरी ओर मोड़ दिया और कहा, “देखिए फिलहाल तो हम उस सरदारजी से निपट लें, उसके बाद आपको जो करना है कर लीजिएगा।”
“ठीक है, तो अभी सरदारजी से निपटने के लिए तुम्हारा प्लान क्या है?” पापा ने पूछा।
” उसकी टेंशन आप लोग मत लीजिए। आप लोग केवल बाहर मेरा इंतजार कीजियेगा। मुझे उससे वह वीडियो हासिल करना है बस। जरूरत पड़ी तो बुला लूंगी। जैसे ही मेरा काम हो जाएगा, मैं आ जाऊंगी। फिर हम वापस लौट चलेंगे,” मैं ने पूरे आत्मविश्वास से कहा।
करीब 15 मिनट में हम लालपुर चौक पहुंचे। चौक के पास एक पेट्रोल पंप के पास ही सरदारजी खड़े थे। मैं ने करीम चाचा को थोड़ा किनारे कर के कार खड़ी करने को कहा और कार से उतर कर सरदारजी के पास गयी। जैसे ही उसने मुझे देखा, उसकी बांछें खिल गईं। वे झक्क सफेद रेशमी चूड़ीदार पाजामा और कुर्ता में थे। लाल पगड़ी में खूब फब रहे थे।
“गुड ईवनिंग सरदारजी” मैं पास पहुंच कर बोली।
“गुड, तुम बिल्कुल समय पर आ गई हो। चलो यहीं सामने मेरा घर है।” वे प्रसन्नता से बोले।
मैं ने सामने एक आलिशान बंगला देखा, जिसका गेट खुला था। गेट पर कोई पहरेदार नहीं था। मैं सरदारजी के पीछे पीछे गेट के अंदर आई तो सरदारजी ने गेट बंद कर सिटकनी लगा दिया लेकिन ताला नहीं लगाया। उस सुनसान आलिशान बंगले में लाईट जल रही थी जिसका मुख्य द्वार बंद था किन्तु सिर्फ उढ़का हुआ था। सामने बरामदा था जिसे पार कर के मुख्य द्वार तक आए। ढकेलने से ही दरवाजा खुल गया और हम ड्राइंग रूम में आये। ड्राइंग रूम में पहले से एक काला कलूटा भीमकाय हब्शी बैठा हुआ था। करीब 50 – 55 की उम्र का। लाल लाल होंठ बाहर की ओर निकले हुए थे, गोल चेहरा, सर पर अधपके घुंघराले बाल, नशे से बोझिल आंखों को बड़ा बड़ा करके मुझे वहशी अंदाज में देखने लगा। टेबल पर विदेशी दारू की आधी खाली बोतल और दो ग्लास आधी खाली थी और सामने एक प्लेट पर काजू और बादाम रखा हुआ था। इसका मतलब ये लोग पहले से पी रहे थे।
” Come gurpreet, oh so this the girl. So young? She will die if I will fuck her. (आओ गुरप्रीत, ओह तो यह है लौंडिया। इतनी कम उमर की? इसको चोदेंगे तो यह तो मर ही जाएगी।)” उस दैत्य ने अंग्रेजी में कहा, शायद उसे हिंदी बोलना नहीं आता था।
“डोंट वरी सर, इसे कुछ नहीं होगा। मैं जानता हूं। आप आराम से जैसे मर्जी चोद सकते हैं।” सरदार बोला। उसका boss हिंदी समझता था।
उनकी बातें सुन कर पहले तो घबराई, मगर फिर संभल कर बोली, “यह क्या सरदारजी, आप तो रंडी की तरह किसी के सामने भी मुझे परोसे दे रहे हैं।”
“चुपचाप मेरे boss को खुश कर दे, नखरे न कर। सर चलिए इसे बेडरूम में ले कर चलते हैं।” सरदार बोला।
“नहीं, आप ये ग़लत कर रहे हैं। आपके पास मेरा वीडियो है तो इसका मतलब आप किसी से भी मुझे चुदवा लीजिएगा?” मैं ने विरोध किया।
“चुप साली रंडी, चुपचाप चल बेडरूम में।” गाली देता हुआ मेरा हाथ पकड़ा और बड़े से बेडरूम में ले आया।
मैं सोच रही थी कि अगर सरदार अकेला होता तो आराम से उसका मोबाइल छीन लेती और वीडियो डिलीट कर देती, मगर यहां तो दो दो पहलवान मौजूद थे। मैं ने फिलहाल चुपचाप उसकी बात ली, फिर भी मैं उपयुक्त मौके की ताक में थी। मैं थोड़ी घबराई हुई थी, उस लंबे चौड़े भैंस जैसे पहलवान टाईप हब्शी को कैसे झेल पाऊंगी। जब वह खड़ा हुआ तो देखा, उसका कद करीब करीब छः फुट नौ इंच के करीब रहा होगा। हमारे पीछे पीछे वह हब्शी भी झूमता हुआ अंदर आया और सरदार को बोला, ” Now you stay outside till i am fucking her. (अब तुम बाहर रुको जब तक मैं इसे चोद रहा हूं।) Come baby, lets have fun. (आओ बेबी हम मजा करें)।”
सरदार आज्ञाकारी नौकर की तरह चुपचाप बाहर निकल गया। उसका boss मेरे पास आया और मुझे अपनी मजबूत बाहों में भर कर चूमने लगा। मैं 5 फुट 8 इंच कद की होती हुई भी उसके सामने बच्ची लग रही थी। मैं ने कोई विरोध नहीं किया और उसकी बांहों में बंधी उससे सहयोग करने लगी। वह मेरे कपड़े उतारने लगा। मेरे तन से पूरा कपड़ा उतार कर नंगी कर दिया और आंखें फाड़कर मेरी मदमस्त जवानी का दीदार करने लगा। (oh so beautiful and sexy) ” ओह इतनी सुन्दर और सेक्सी।” मैं चाहती थी कि जल्दी इसे निपटा कर फारिग हो जाऊं और सरदार की खबर लूं। मैं खुद ही बेशरम हो कर उस हब्शी के पैंट शर्ट को उतारने लगी। ज्यों ही उसका पैंट खुला मैं उसकी चड्डी देख कर दंग रह गयी। चड्डी सामने से फूल कर विशाल लंड की चुगली कर रहा था। डरते हुए जैसे ही उसकी चड्डी नीचे की, भयानक काला और मोटा करीब चार इंच और लंबा करीब दस इंच का लौड़ा उछल कर मेरे सामने आ गया। मैं घबराकर एक कदम पीछे हट गई।
इससे पहले कि मैं उस हौलनाक दृश्य के सदमे से उबर पाती, हब्शी ने ने मुझे गोद में उठा लिया और बेड पर लिटा कर पागलों की तरह मुझ पर टूट पड़ा। बड़ी बेरहमी से मुझे चूमना चाटना, मेरी चूचियों को मसलना और चूसना शुरू कर दिया। डर और घबराहट के बावजूद उसकी उत्तेजक हरकतों से मैं भी उत्तेजित हो गई और, “ओह आह इस्स्स इस्स्स” करने लगी। मेरी चूत पनिया उठी थी।
अब उसका ध्यान मेरी चुद चुद कर फूली हुई पनियाई चूत की ओर गया। उसकी खुशी मैं स्पष्ट देख रही थी। वह भी समझ गया कि मै बिल्कुल तैयार माल हूं। मुझे चोदने में उसे कोई समस्या नहीं होगी। वह पहले अपने लंबे और मोटे जीभ से मेरी चूत चाटना शुरू किया। मैं बेहद चुदासी के आलम में पूरा पैर फैला कर छटपटाती हूई अपनी कमर नीचे से उछालने लगी और उत्तेजना के मारे मेरी सिसकारियां निकलने लगीं। बिना यह सोचे कि उसके विशाल लंड से चुदने से मेरी चूत का क्या हाल होगा मैं बड़बड़ाने लगी, “अब चोद भी लीजिए सर, और मत तड़पाईए।” इस्स्स इस्स्स करने लगी।
“Yes my bitch, now I’m going to fuck your nice cunt, get ready” (हां मेरी कुतिया, अब मैं तेरी सुंदर चूत को चोदने जा रहा हूं, तैयार हो जाओ।) उस हब्शी ने जब मेरा यह हाल देखा तो मेरे दोनों पैरों को फैला कर उठाया और अपने कंधे पर रख लिया और अपना गधे सरीखे विशाल लौड़े का सुपाड़ा मेरी चूत के मुहाने पर रख कर रगड़ना शुरू किया और बोला।
“हां अब चोद भी डालिए सर”, मैं बेताबी से बोली।
उस ने मेरी कमर को कस के पकड़ा और धीरे धीरे मेरी चूत में डालने लगा। “yes take it” (हां ले ले) उसका विशाल सुपाड़ा जब मेरी चूत को फैलाता हुआ अन्दर जाने लगा तो ऐसा लग रहा था कि मेरी चूत फट जायेगी।
मैं चीख पड़ी। “ओ्ओ्ओ्ओह धीरे धीरे सरजी, मेरी चूत फट रही है, अम्म्म्म्म्माआआआआ”। उसने धीरे धीरे दबाव बढ़ाते हुए पूरा 10” मेरी चूत में भोंक दिया। सरसराते हुए उसका लंड जब घुस रहा था तो ऐसा लग रहा था कि मेरी चूत अपनी सीमा से बाहर फैलता जा रहा हो और फटने के कागार पर पहुंच गया हो। उसका भीमकाय लंड मेरी चूत की दीवारों को बुरी तरह रगड़ता जा रहा था और मुझे ऐसा लग रहा था मानो उसका घुसना अंतहीन हो। मेरे गर्भाशय के अंदर तक घुसता चला जा रहा था। घुसाने के बाद फिर धीरे धीरे बाहर करने लगा, उसी तरह चूत की दीवारों को रगड़ता हुआ। तीन चार बार धीरे धीरे अंदर बाहर करने के बाद दर्द कहां गायब हुआ पताही नहीं चला। चूत की दीवारों पर उसके मोटे और लम्बे लंड का घर्षण इतना आनंद दायक था कि बयां करना मुश्किल था। अब मैं जोश में आ गयी थी और अपनी चूतड़ उछालने लगी थी। धीरे धीरे चोदने की रफ़्तार बढ़ाता गया।
मैं आनन्द विभोर हो रही थी, “हां सरजी, आ्आ्आह ओ्ओ्ओ्ओह, बहुत मजा आ रहा है राजा”।
“Yes dear, oh my bitch, nice pussy, tight pussy, ah fucking hole, oh my whore” (हां डियर, ओह मेरी कुतिया, टाईट चूत, चुदाई की छेद, ओह मेरी रंडी) बोलते हुए चोदे जा रहा था। ऐसा लग रहा था मानो कोई भैंस किसी बछिया को चोद रहा हो। मैं खुद चकित थी कि इस दानव जैसे व्यक्ति के दानवी लन्ड से चुदती हुई कैसे इतनी आनंदविभोर हो रही थी? जब उन्होंने देखा कि मैं भी मस्ती में डूब कर चदाई का पूरा लुत्फ ले रही हूं, तब उन्होंने चुदाई का आसन बदला, मेरे पैरों को अपनी कमर पर लपेट लिया और मुझे अपनी गोद में उठा लिया, मेरी गांड़ के नीचे अपने दोनों मजबूत हाथों का सहारा दिया और खड़े खड़े चोदने लगा। मैं उसकी गर्दन पर अपनी बाहों को लपेटे हवा में झूलती हुई बड़े आराम से चुद रही थी। मेरी चूत में उनका फनफनाता भीमकाय लंड नीचे से सर्र सर्र किसी इंजन के पिस्टन की तरह फच्चाफच अंदर बाहर हो रहा था। मैं उनके बदन से किसी छिपकली की तरह चिपकी हुई चुदाई के इस अद्भुत आनंदमय अनुभव से गुजर रही थी इसी बीच उस हब्शी ने सरदार को आवाज लगाई। सरदार तुरंत दरवाजा खोल कर अंदर आया और अंदर की गरमागरम कामलीला देख कर मुस्कुरा उठा।
“यस सर” किसी आज्ञाकारी कुत्ते की तरह बोला।
“Bring one more peg” (एक पैग और लाओ) उन्होंने कहा।
“नहीं, एक नहीं, बोतल में बची सारी ले आओ और ग्लास भी” मैं मस्ती के आलम में चुदती हुई बोली। मैं चुदने के आनंद में डूबी जरूर थी मगर अपना उद्देश्य नहीं भूली थी।
” Ok, bring the bottle and glass as this sweety said” (ठीक है बोतल और ग्लास ले आओ जैसे ये स्वीटी बोली) उन्होंने कहा।
सरदार ने तुरंत वैसा ही किया, बोतल, पानी और ग्लास बेड के साईड वाले टेबल पर रखा और बाहर चला गया।
हब्शी उसी अवस्था में मुझे लिए दिए एक पैग चढ़ाया तो मैं ने दूसरे पैग के लिए उकसाया, “एक पैग और लीजिए ना”।
उसने दूसरा पैग भी चढ़ा लिया। दो पैग ले लेने के बाद वह और आक्रामक ढंग से पूरी रफ्तार के साथ चुदाई में मशगूल हो गया। मैं ने महसूस किया कि अब वह कुछ ही देर में खल्लास होने वाला है क्योंकि उसका लंड थोड़ा और फूल गया था और चुदाई के चर्मोत्कर्ष का भाव उसके चेहरे पर स्पष्ट देख रही थी। मैं भी चरम आनंद से कुछ ही पल दूर थी। फिर क्या था, उन्होंने मुझे अपने से इतने कस के चिपका लिया मानो मेरी जान ही निकल जाएगी और मेरी कोख में ज्वालामुखी का लावा उगलना शुरू कर दिया। “yessssss im cumming my bitch ooooooh sweet darling” (हां मैं झड़ रहा हूं मेरी कुतिया ओह प्यारी) उसके मुंह से बोल उबल पड़े। “आआ्आ्आह मैं भी गयी राज्ज्ज्जाओ्ओ्ओ्ओह्ह्ह्हह” अद्भुत था वह स्खलन। मैं भी स्खलन के उस आनंदमय पलों में अपनी चूत से उनके लंड को दबोच कर उससे निकलते वीर्य के हर कतरे को तबतक चूसती रही जब तक वह पूरी तरह खल्लास हो कर किसी भैंसे की तरह डकारते हुए लुढ़क नहीं गया।
“Oh sweet little fucking bitch, nice body, nice cunt. Entirely enjoyed fucking you.” (ओह प्यारी छोटी सी चुदक्कड़ कुतिया, सुन्दर तन, सुन्दर चूत। तुम्हे चोद कर पूरा मजा आया।” वह बोल पड़ा।
“मुझे भी बड़ा मजा आया राजा। आज से पहले किसी ने मुझे ऐसा नहीं चोदा था। आई लव यू टू।” मैं भी बोली।
मैं भी पूरी तरह तृप्त हो कर कुछ देर के लिए निढाल हो गई थी मगर फिर मैंने अपना होश संभाला और मनुहार करके प्यार से उस हब्शी को तीन पैग और पिला दिया। जब वह पूरी तरह नशे में टुन्न हो गया तो मैं उठी और कपड़े पहन कर कमरे से बाहर आई। सामने सरदार सोफे पर बैठा बेकरारी से इंतजार करता मिला।
बड़ी बेशर्मी से मुस्कुराते हुए बोला, “अरे तूने इतनी जल्दी कपड़े क्यों पहन लिया लौंडिया, साहब को खुश कर दिया ना? अब चल मुझे खुश कर दे। चल फिर से उतार कपड़े, या मैं खुद उतारूं।”
“नहीं, पहले आप मेरा वीडियो डिलीट कीजिए” मैं बोली।
“ठीक है मैं डिलीट कर दूंगा, मगर तुझे चोदने के बाद।” वह धूर्तता पूर्वक मुस्कुराते हुए बोला।
“ठीक है, मगर आप पहले वादा कीजिए।” मैं बोली।
“चल मैंने वादा किया, अब तू जल्दी अपने कपड़े उतार और मुझे चोदने दे।” उसने बड़ी बेताबी से कहा।
मैं मजबूरी में फिर से कपड़े उतार कर नंगी हो गई, मगर इस बार चुदने के लिए नहीं बल्कि सरदार के कब्जे से मोबाइल हथियाने के लिए। मेरे नग्न जिस्म को भूखी नजरों से देखते हुए बोला, “अहा मेरी जान, तू सच में बड़ी धांसू माल है। मां कसम, आज तुझे चोद चोद कर सारी कसर निकालूंगा।”
“सरदारजी, पहले अपने कपड़े तो उतारिए। देखिए तो आपका पैजामा फटने को हो रहा है।” मैं उसके लंड की तरफ इशारा करते हुए बेशर्मी से बोलीं।
“हा हा हा हा, हां री कुतिया, तुझे चोदने के लिए मेरा लौड़ा अब से फनफना रहा है। अभी उतारता हूं,” कहते हुए कपड़े खोलने लगा। जैसे ही वह नंगा हुआ, उसका गधा सरीखा लौड़ा उछल उठा और बंदूक की तरह तन गया।
“देख मेरा लौड़ा तेरी चूत में घुसने को कितना बेकरार है,” कहता हुआ नंग धड़ंग वह मेरी ओर बढ़ा और जैसे ही मुझे बांहों में लेने को हुआ, मैं फुर्ती से झुकाई दे कर उसके कुर्ते की ओर झपटी और पलक झपकते उसका मोबाइल मेरे कब्जे में था।
“अब बोल कमीने।” मैं फुंफकार उठी। सरदार फिर भी बाज नहीं आया। “साली कुतिया, चुपचाप मोबाइल मेरे हवाले कर वरना मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।” गुर्रा कर बोलते हुए मेरी ओर बढ़ा ही था कि मेरा एक भरपूर किक उसके पेट पर पड़ा। प्रहार इतना जबरदस्त था कि वह आह करता हुआ पेट पकड़कर दोहरा हो गया। अत्यधिक पीड़ा से उसका चेहरा विकृत हो गया। शैतानी, ढिठाई, धूर्तता की जगह उसके चेहरे पर आश्चर्य और अविश्वास का भाव था। मेरी आंखों में उसने जाने क्या देखा कि सहम सा गया। मैं ने क्रोध के आवेश में एक जबरदस्त मुक्का उसके जबड़े पर जड़ दिया। फिर तो उसे सम्भलने का मौका ही नहीं दिया और जी भर के लात घूंसों की बरसात कर बेदम कर दिया। मैं ने उसे अच्छी तरह से ठुकाई करके अपने मन की भंड़ास निकाली। “भड़वे साले हरामी, हराम का माल समझ रखा है। ब्लैकमेल करके दलाली करने का इतना ही शौक है तो जा के अपनी मां बहन और बेटी की दलाली कर मादरचोद। ले मैं वीडियो डिलीट कर रही हूं, दम है तो उठ और रोक कर दिखा।” वह कराहता हुआ फर्श पर पड़े असहाय भाव से मुझे वीडियो डिलीट करते देखता रहा।
फिर मैं मैं उसकी ओर मुखातिब हो कर खूंखार नजरों से घूरती हुई पूछी, “और कहीं वीडियो सेव किया है तो वह भी जल्दी बता दे वरना इससे भी बुरा हाल करूंगी।”
“और कहीं नहीं है मेरी मां, मुझे माफ़ कर दे,” वह बड़ी बेचारगी से बोला।
मैं ने उसके चेहरे को पढ़ा और आश्वस्त हुई कि वह झूठ नहीं बोल रहा है फिर भी कोई गुंजाइश नहीं छोड़ना चाहती थी। मैंने देखा कि यह सब करते हुए करीब 45 मिनट लगा। मैं दौड़ कर बाहर निकली और करीम चाचा और पापा को अंदर बुलाया। उन्होंने आकर अंदर का जो नजारा देखा तो देखते रह गए। बाहर अंधेरे में उन्होंने मुझे ठीक से देखा नहीं मगर अंदर रोशनी में मुझ मादरजात नंगी साक्षात चंडी रूप को आंखें फाड़कर अपलक देखते रह गए। मेरे पापा मेरे नग्न शरीर का भोग लगा चुकने के बावजूद इस नए रूप को एक टक निहार रहे थे। करीम चाचा की भूखी नज़रें तो मेरे नग्न जिस्म से ही चिपक गईं थीं। आंखें फाड़कर कभी मेरे नग्न दपदपाते कामुक शरीर को और कभी मेरे कहर बरसाते चेहरे को और कभी उधर पिट पिट कर बेहाल फर्श पर पड़े कराह रहे नंग भुजंग सरदार को देख रहे थे।
“अब आपलोग देखते मत रहिए, घर की पूरी तलाशी लीजिए, कंप्यूटर, लैपटॉप, सीडी, सब कुछ। पूरी कहानी मैं बाद में बताऊंगी।” मैं बोली। सरदार कराहता हुआ बोला, “अरे मैं बोल रहा हूं, और कहीं कुछ नहीं है।”
मैं ने गौर से उसके चेहरे को देखा और समझ लिया कि वह सच कह रहा है, फिर भी उसे धमकाते हुए कहा, “अभी तो मैं छोड़ रही हूं, साले हरामी, अगर फिर कभी ऐसी हरकत की तो कसम से मैं तुम्हें ज़िंदा नहीं छोड़ूंगी।” मेरी धमकी से वह गिड़गिड़ा कर माफ़ी मांगते हुए बोला, “और कहीं नहीं है मेरी मां। अब और आगे से फिर कभी ऐसी हरकत नहीं करूंगा। मुझे बख्श दो, मैं तेरे पांव पकड़ता हूं।”
“ठीक है, ठीक है, जा माफ किया।” कहते हुए उसके बेडरूम में गयी और हब्शी के मोबाइल से उसका नंबर लिया, वह बेसुध सोया पड़ा था। फिर सरदार का नंगा फोटो खींच कर उसे कहा, “देख कमीने, तेरा नंगा फोटो मेरे पास है। फिर कभी मुझ से पंगा मत लेना।” फिर मैंने पापा और करीम चाचा से कहा, “अब चलिए हमारा काम हो चुका है,” कहते हुए दरवाजे की ओर कदम बढ़ाई कि पापा ने टोका, “अरे पहले कपड़े तो पहन ले, ऐसी ही नंगी चलने का इरादा है क्या?”
अब मुझे होश आया कि मैं अबतक इनके सामने नंगी ही थी। शर्म और खीझ के मारे मैं ने सरदार को एक और लात जमा दिया, “इस हरामी की वजह से मैं होशो-हवास खो बैठी थी” फिर कपड़े पहन कर उनके साथ बाहर निकल पड़ी। कार से हम करीब 15 मिनट में घर पहुंचे। रास्ते में मैं ने उन्हें संक्षेप में सारी घटना बताती रही।
करीम चाचा ने मुझे याद दिलाया कि मैं ने आते वक्त क्या वादा किया था, “बिटिया, तूने मुझ पर मेहरबानी करने का वादा किया था, याद है ना?”
“हां बाबा हां, मुझे सब याद है, भूली नहीं हूं मैं। मगर आज नहीं, आज मैं बहुत थकी हुई हूं। कल जो मर्जी कर लीजिएगा।” मैं बोली। एक घंटे पन्द्रह मिनट के बाद फिर से हम नानाजी के घर के अंदर थे। घर में सब बड़ी बेकरारी से हमारा इंतजार कर रहे थे। जैसे ही हम घर के अंदर घुसे, सबने सवालों की झड़ी लगा दी। मैं ने पूरी घटना का संक्षिप्त विवरण दिया और अपनी कामयाबी के बारे में बताया। सुन कर सबने राहत की सांस ली। फिर हमने साथ में खाना खाया और अपने अपने कमरों में सोने चले गए। मैं दिनभर में सात लोगों से चुद चुद कर सबसे ज्यादा थकी हुई थी और ऊपर से सरदार की मरम्मत करने में अतिरिक्त ऊर्जा खर्च कर बैठी, अतः बिस्तर पर पड़ते ही गहरी निद्रा के आगोश में चली गई

सवेरे करीब 6 बजे मेरी नींद खुली। बाहर से (नौकर हरिया) मेरे पापा की आवाज सुनाई दी, “बिटिया उठ जाओ, सवेरा हो गया है”।
मैं अलसाई सी उठी, “हां चाचा, उठ गई।” कल दिन भर की भाग दौड़ और चुदाई की थकान से पूरा बदन टूट रहा था। हब्शी की चुदाई से तो मेरी चूत फूल कर कुतिया की तरह बाहर निकल गई थी। जोश जोश में कल सरदार की ठुकाई के समय मुझे पता ही नहीं चला, मगर आज सवेरे महसूस हो रहा था कि हब्शी के लंड से मेरी चूत की क्या दुर्दशा हुई थी। उस बनमानुष ने मेरी चूचियों का भी बड़ी बेरहमी से मर्दन किया था अतः मेरी चूचियां भी सूज कर लाल हो गई थीं और मीठी मीठी टीस उठ रही थी। सवेरे से लेकर रात तक में सात मर्दों से चुद चुकी थी, कुल मिलाकर 9 बार, (अपने बाप की तीन चुदाई को मिला कर)। धीरे धीरे मैं पूरी रंडी बनती जा रही थी। मैं आहिस्ता आहिस्ता वासना की गुलाम बनती जा रही थी। मुझे इसका अहसास था किन्तु अब मुझे इसमें मजा आने लगा था। मेरे साथ जो कुछ घट रहा था इसका मुझे कोई मलाल नहीं था। आज का सवेरा फिर एक नये दिन की शुरुआत थी, जिसके गर्भ में क्या था यह सिर्फ मेरा भगवान ही जानता था। मैं आज के दिन को अन्य दिनों की तरह भगवान को समर्पित करते हुए नहा धो कर फ्रेश होकर बाहर आई। नहाने धोने से कल की थकान में थोड़ी कमी हुई मगर लगता था नींद अब तक पूरी नहीं हुई।
“मालिक, नाश्ता लगा दूं?” हरी चाचा मेरे नानाजी से पूछ रहे थे।
“लगा दो भाई, मैं इन दोनों को भी बुलाता हूं। अरे रघु, केशू को लेकर नाश्ता करने आ जाओ भाई।” मेरी ओर मुखातिब हो कर बोले, “बिटिया तू ठीक से सोई कि नहीं?”
“मैं ने ठीक से आराम कर लिया नानाजी।” मैं बोली।
“अभी नाश्ता करके हमलोग मार्केटिंग के लिए जाएंगे, तुम भी साथ चलोगी क्या?।” नानाजी ने पूछा।
“नहीं मैं नहीं जाऊंगी। यहां आसपास घूमना पसंद करूंगी।” मैं ने कहा।
“ठीक है जैसी तुम्हारी मर्जी” नानाजी ने कहा।
नाश्ता करते वक्त नानाजी ने बताया ” आज तेरे दादाजी का जन्मदिन है, सो हम आज शाम को यहां पार्टी करेंगे।”
“ओह, हैप्पी बर्थ डे दादाजी” कहते हुए मैं चहक उठी और दादाजी के गले लग कर चूम उठी। बाकी लोग ईर्ष्या पूर्ण नजरों से दादाजी को देख रहे थे।
“वाह दादाजी, आज हम सब दादाजी का बर्थ डे धूमधाम से मनाएंगे” मैं ने उत्साह से कहा।
करीम चाचा ने कहा कि उनकी तबीयत ठीक नहीं है इसलिए वे उनके साथ बाजार नहीं जा पाएंगे।
“ठीक है करीम कोई बात नहीं, तुम आराम करो, मैं कार चला लूंगा। हम दो तीन घंटे में वापस आएंगे” कहते हुए नानाजी दादाजी और बड़े दादाजी के साथ बाजार निकल पड़े।
ज्यों ही वे बाजार की ओर निकले, करीम चाचा मेरी ओर मुखातिब हुए और बोले, ” तो बिटिया रानी, अब क्या इरादा है?”
“क्या मतलब?” मैं चकित हो कर बोली। अभी अभी तो उन्होंने नानाजी को कहा था कि तबियत खराब है।
“क्या मतलब क्या? तू खूब समझ रही है मैं क्या कह रहा हूं। अनजान मत बन। मुझे भी थोड़ा मजा लेने दे बिटिया। चल बेडरूम में।” बड़े अश्लील ढंग से मुस्कुराते हुए बोला।
मेरे पापा असहाय भाव से हमें देखते रहे।
“तू भी चल ना रघु साथ में, बड़ा मजा आएगा। आजतक तो दोनों मिलकर खूब मज़ा लूटे हैं। आज भी साथ साथ मज़ा लूटेंगे। क्या बोलती हो बिटिया?” करीम चाचा ने पापा और मेरी ओर बेहद कामुक भाव से देखते हुए कहा।
पापा ने मेरी ओर असहाय भाव से देखा, लेकिन शायद वे तो खुद भी यही चाहते थे, तुरंत बोल पड़े, “ठीक है, ठीक है, चलो मैं भी चलता हूं।”
इधर मैं सोच रही थी कि मैं ने भी क्या किस्मत पाई है, एक बार जो वासना के दलदल में उतरी तो मुझसे मिलने वाला हर मर्द मुझे भोगने के लिए लालायित ही मिलता गया। उसी कड़ी में अभी अभी वैसा ही योग मेरे सामने था जिससे न ही मैं बच निकल सकती थी न ही बचना चाहती थी, उल्टे मैं रोमांचित हो रही थी उन दो दो मर्दों की सामुहिक भोग्या बनने की कल्पना मात्र से। अपने पापा के लंड का स्वाद तो चख ही चुकी थी, अब करीम चाचा का नया अजनबी लंड मेरी चूत का इंतजार कर रहा था और मैं भी तो रोमांचित हो रही थी, एक तो करीम चाचा का अजनबी लौड़ा और उस पर अपने पापा के साथ सामुहिक मैथुन।
“कितने चालाक हो करीम चाचा, तबीयत खराब होने का बहाना करके मेरे साथ मौज करने का मौका निकाल ही लिया। चलिए चलिए जो करना है कर लीजिए। बिना किए आप मानिएगा थोड़ी।” बोलती हुई उनके साथ बेडरूम में चली गई।
जैसे ही मैंने कमरे में प्रवेश किया, बड़ी बेताबी से मुझे सामने से बांहों में जकड़ कर करीम चाचा ने चूमना शुरू कर दिया। करीम चाचा भी मेरे पापा की तरह ही हट्ठे कट्ठे 55 साल के पहलवान से कम नहीं थे। तोंद थोड़ा निकला हुआ था मगर थे मजबूत कद काठी के। कद करीब 5 फुट 11 इंच होगा। इधर पापा ने कमरे का दरवाजा बंद कर दिया और खुद भी पीछे से मुझे दबोच लिया और मेरी चूचियों को दबाने लगे। कितने हरामी थे मेरे पापा। खुद तो रिश्ते को शर्मशार करके मेरे साथ मुंह काला किया और अब पराए मर्द के सामने परोस कर पुनः मेरे साथ सामुहिक संभोग के लिए तत्पर थे। रिश्ते नाते की मुझे भी कौन सी परवाह थी, मैं तो खुद भी उनकी कामुकता भरी चेष्टाओं से वासना की अग्नि में झुलसने लगी थी और बड़ी बेकरारी से मेरे साथ होने वाली कामक्रीड़ा का आनंद लेने को लालायित हो उठी थी। मैं अब वासना के खेल का पूर्ण आनंद लेने के लिए हमारे बीच के नाते रिश्ते के तारों को छिन्न-भिन्न करके अपने अंदर की सारी भावनाओं को समूल नष्ट कर देने का मन बना चुकी थी और इसके लिए जरूरी था कि हमारे बीच किसी प्रकार का कोई राज़, राज़ न रहे और हम सब एक दूसरे के लिए खुली किताब बन जाएं। मुझे ही इसकी पहल करनी थी।
“हाय पापा, इतनी बेसब्री और बेरहमी से अपनी बेटी की चूचियों को मत मसलिए ना। मैं कहीं भागी जा रही हूं क्या? पूरी की पूरी आप लोगों की ही तो हूं।” मैं ने जानबूझ कर करीम चाचा के सामने हमारे रिश्ते का पर्दाफाश कर दिया।
करीम चाचा अविश्वसनीय नज़रों से आंखें फाड़कर कभी मुझे देखते कभी नौकर हरिया को।
“साले कमीने, तूने अपनी बेटी को भी नहीं छोड़ा।” वे बेसाख्ता बोल उठे।
मेरे पापा करीम चाचा के सामने इस तरह आकस्मिक हुए रहस्योद्घाटन से तनिक लज्जित और किंकर्तव्यविमूढ़ हो गये, मगर मैं ने मामला संभाल लिया और बोली, “क्या फर्क पड़ता है चाचा, नाना, दादा, पापा, चाचा, भाई या पति सब बाद में, पहले तो सब मर्द ही हैं ना, कभी न कभी किसी न किसी स्त्री को चोदेंगे ही। मैं बेटी, नतनी, पोती, भतीजी, बहन या पत्नी बाद में हूं, पहले एक स्त्री हूं, जिसकी आज नहीं तो कल किसी न किसी मर्द से चुदाई तो होनी ही है।” फिर पापा की ओर कनखियों से देखती हुई बोली, “वैसे भी किसी ने मुझसे कहा था, लंड ना चीन्हे बेटी। लीजिए, अब मैं कहती हूं, चूत ना चीन्हे रिश्ते नाते। पिछले पांच दिनों में नानाजी, दादाजी, बड़े दादाजी और पापा के अलावा चार अजनबी बूढ़ों ने मुझे मनमर्जी ढंग से चोद चोद कर रंडी बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ा है क्या? खुद भी बेशरम हो कर मजा लिए और मुझे भी चुदाई का मज़ा लेना सिखा दिया। सच पूछिए तो मैं इन लोगों की शुक्रगुजार हूं और अहसानमंद भी। अब और ज्यादा दिमाग मत चलाइए, चलिए शुरू हो जाईए, जो आग आप लोगों ने लगाई है पहले उसे बुझा तो दीजिए।” मैं बिना लाग-लपेट के बेशर्मी से बोल उठी।
मेरी बातों ने पापा की शर्मिंदगी को खत्म तो किया ही, साथ ही साथ उस गरमागरम माहौल की आग में घी का काम भी किया।
“वाह बिटिया वाह, अब आएगा मज़ा।” हवस के पुजारी करीम चाचा की आंखों में वासना की भूख चमक उठी। बिल्कुल वहशी जानवर की तरह मुझ पर टूट पड़े और आनन फानन में मेरे शरीर को कपड़ों से मुक्त कर दिया और मेरी नंगी दपदपाती काया को अपलक लार टपकाती नजरों से निहारते हुए अपनी किस्मत पर रश्क करने लगे।
“अब दीदे फाड़ कर क्या देख रहे हैं, पहले कोई नंगी स्त्री नहीं देखी है क्या? अपने कपड़े भी तो उतारिए, कि मैं उतार दूं?” मैं किसी खेली खाई छिनाल की तरह बोल उठी। मैं वास्तव में वासना की ज्वाला में जल रही थी।
करीम चाचा मानों तंद्रा से जाग उठे और पलक झपकते मादरजात नंगे हो गए। पूरे शरीर पर बाल भरे हुए थे, किसी रीछ की तरह। सर पर अधपके घुंघराले बाल और लंबोतरे चेहरे पर बेतरतीब लंबी दाढ़ी। दोनों जांघों के बीच सामने झूलता कोयले की तरह काला 9 इंच लंबा लंड, मगर भयानक मोटा, चार इंच के करीब। लंड के सामने का चमड़ा कटा हुआ, सुपाड़ा चिकना और टेनिस बॉल की तरह गोल। एक बार तो मैं अवाक रह गई, उनके लंड के दर्शन से। मेरी तंद्रा भंग हुई जब किसी भूखे भेड़िए की तरह करीम चाचा मुझ पर टूट पड़े। मुझे अपनी मजबूत बांहों में दबोच कर बिस्तर पर गिरा दिया और बेहताशा चुम्बनों की बौछार करने लगे। इधर मेरे पापा भी मादरजात नंगे हो कर मेरे नंगे जिस्म में पीछे से चिपक गये।
“हाय राम इतनी बेसब्री किस बात की, आराम से कीजिए ना” मैं बोली।
“अब क्या आराम से, इतनी मस्त माल पहली बार मिली है मुझे। अब तो बर्दाश्त नहीं हो रहा है बिटिया।” कह कर करीम चाचा मेरे मुंह में अपनी जीभ घुसा कर चुभलाने लगे और मेरी चूचियों को बेरहमी से मसलने लगे। मेरी सिसकारियां उनके मुंह से बंद थीं। मेरे पीछे मेरे पापा मेरी गांड़ को चाट रहे थे। मेरी गांड़ को दोनों हाथों से फैला कर मेरे गुदा मार्ग में जीभ डाल कर चाट रहे थे। मेरी उत्तेजना अपने चरम पर थी। मैं पागलों की तरह चाचाजी की बांहों में कसमसा रही थी। अब करीम चाचा ने एक हाथ की उंगली मेरी चूत में भच्च से पेल दिया। इस आकस्मिक हमले से मैं चिहुंक उठी। इधर मेरी चूत में करीम चाचा की उंगली घुसी और दूसरे ही पल मेरी गांड़ में मेरे पापा ने उंगली घुसा दी। इस दोतरफे हमले से मैं छटपटा उठी।
“आह हरामियों, ओ्ओ्ओ्ओह उफ्फ, इस्स्स्स।” मैं सिसक उठी। मैं दो दो पहलवानों के बीच परकटी पंछी की तरह फड़फड़ा कर रह गई। मैं दाहिने करवट पर लेटी थी, सामने करीम चाचा बांए करवट ले कर और पीछे मेरे पापा दाहिने करवट लेकर मेरे नग्न शरीर से खेल रहे थे। मैं पागल होती जा रही थी। मेरी सिसकारियां सुन कर दोनों ने समझ लिया कि लोहा गरम है और प्रहार करने का उचित अवसर यही है। करीम चाचा ने मेरा बायां पैर उठा कर अपने कमर पर चढ़ा लिया और अपना मूसल जैसा लौड़े का सुपाड़ा मेरी गीली चूत के मुहाने पर रखा और एक करारा धक्का दिया। मैं पीड़ा के मारे चीख उठी, क्योंकि उनका सुपाड़ा इतनी देर में मेरे अनुमान से कहीं अधिक बड़ा हो चुका था। मेरी चूत को सीमा से बाहर फैला कर उनका मोटा लौड़ा करीब चार इंच घुस चुका था। मेरी आंखें फटी की फटी रह गई। सांस थम सा गया था।
“हाय मम्मी मर गई। फट गई रे बप्पा मेरी चूत।” मैं चीखी।
“चुप हरामजादी। एकदम चुप्प्प साली कुतिया, इतना लौड़ा खाने के बाद भी मरने की बात करती है। अभी देख तुझे कितना मज़ा आएगा। हिलना मत।” कहते हुए उस वहशी दरिंदे ने एक और जबर्दस्त प्रहार कर दिया और मेरी चूत को चीरता हुआ उनका लौड़ा पूरा जड़ तक अन्दर पैबस्त हो गया।
“आ्आ्आ्आ्आह” किसी हलाल होती मेमने की तरह मेरी दर्दनाक कराह निकल गई। अभी मैं इस दर्दनाक प्रहार की व्यथा से उभरी भी नहीं थी कि पीछे से मेरे पापा ने अपने लौड़े से मेरी गांड़ में हमला बोल दिया। एक भयानक धक्के से मेरे गुदा द्वार को फैलाता हुआ आधा लंड भीतर ठोंक दिया।
“हाय राम मार डाला रे आ्आ्आह ओ्ओ्ओ्ओह।” मैं कराह उठी।
अब पापा गुर्राए, “चुपचाप रह और मेरा लौड़ा अपनी गांड़ में पूरा घुसाने दे कुतिया।” कहते कहते एक और हौलनाक धक्का मारकर पूरा लौड़ा जड़ तक पेल दिया। मेरी घुटी घुटी आह निकल पड़ी। ऐसा लगा मानो मेरी गांड़ फट गई और उनका 9″ लंबा लंड मेरी अंतड़ियों को चीर डाला हो।
मैं दांत भींच कर दोनों लौड़ों को बमुश्किल अपने अंदर समाहित कर स्थिर हो गई। उन्होंने भी मेरी स्थिति को समझा और कुछ पल उसी स्थिति में स्थिर रहे।
परंतु आश्चर्यजनक रूप से कुछ ही पलों में दर्द छूमंतर हो गया और मैं खुद ही चुदासी रंडी की तरह बोल पड़ी, “आह ओह अब ठीक है, अब चोदिए जी।”
उन वहशी भेड़ियों को तो मुंहमांगी मुराद मिल गई। पहले धीरे धीरे अपने लंड को आगे पीछे करने लगे फिर ठापों की रफ़्तार बढ़ाने लगे। मैं उनके बीच पिसती हुई दोनों लौड़ों से चुदती आनंद के समुद्र में गोते लगाने लगी। दोनों के धक्के एक साथ लग रहे थे और मुझे हिलने की भी आवश्यकता नहीं थी। ऐसा लग रहा था मानो दोनों के लंड आपस में मिलने की कोशिश में मेरे गर्भाशय और अंतड़ियों के बीच की दीवार को फ़ाड़ डालने की जद्दोजहद में लगे हों।
“आह मेरी रानी, ओह मेरी बिटिया, ले मेरा लौड़ा, ओह रे कुतिया, ओह मेरी जान, मेरी रंडी चूतमरानी बुर चोदी,” करीम चाचा बोले जा रहे थे और चोदे जा रहे थे।
“ओह मेरी लंड रानी, तेरी गांड़ पहले क्यों नहीं चोदा। क्या मस्त गांड़ है बेटी, आह बहुत मजा आ रहा है मेरी गांड़ मरानी हरामजादी रंडी। आह ओह ले लौड़ा, हुम हुम हुं हुं।” गंदे गंदे अल्फाज़ उनके मुंह से उबल रहे थे।
मैं भी कहां कम थी। दो दो पहलवानों के बीच पिसती हुई दो दो लौड़े से चुदती मस्ती के सागर में डूबती उतराती बड़बड़ाने लगी थी, “चोद हरामजादों, बेटीचोदों, नानी को चोदा नानी चोद, मां को चोदा मादरचोद, अब बेटी को भी चोद ले, अपनी रानी बना लें, रंडी बना ले, कुतिया बना ले चुदक्कड़ों, कुत्तों, आह आह ओह ओह ओह ओ्ओ्ओ्ओह आ्आ्आ्आ्आह।”
वे दोनों बड़े ही अच्छे साझेदारों की तरह इतनी अच्छी तरह तालमेल बैठा कर चोद रहे थे कि मैं सातवें आसमान पर पहुंच गई। कभी करीम चाचा और पापा अगल बगल से चोदते, कभी चाचा नीचे और पापा ऊपर तो कभी पापा नीचे और करीम चाचा ऊपर, मगर मैं हर हाल में उनके बीच पिसती हुई मजे लेती रही। पूरे बेड को मानो हमलोगों ने कुश्ती का अखाड़ा बना दिया हो। इस दौरान मैं एक बार उत्तेजना के चरमोत्कर्ष में बेहद हाहाकारी स्खलन से गुजरने लगी, “आ्आ्आह ओ्ओ्ओ्ओह अम्म्म्म्म्माआआआआ मैं गई््ई्््ई््ई्््््ई्््ई््ई् ” मेरे निढाल होते शरीर को संभाल कर दोनों खड़े हो गए और मुझे हवा में उठा लिया और आगे पीछे से लगातार चोदते रहे। लगातार होती चुदाई से मैं दुबारा उत्तेजित हो उठी और पूर्ण रूप से अपने आप को उनके सुपुर्द कर दिया कि अब जैसे चाहो चोद लो। वे दोनों जंगली जानवरों की तरह मुझे भंभोड़ रहे थे, झिंझोड़ रहे थे, निचोड़ रहे थे, मेरे शरीर का सारा कस बल निकाल रहे थे। मैं उनकी चुदाई क्षमता की कायल होते हुए मदहोशी में चुदती हुई अपूर्व सुख के सागर में डूब गई थी।
अंततः करीब 40 मिनट बाद पसीने से लथपथ, “आ्आ्आह ओ्ओ्ओ्ओह ले्ल्ल्ले मेरा लौड़ा रस” उन्होंने मुझे कस के मुझे दबोच कर अपना मदन रस मेरी चूत और गांड़ में पिचकारी की तरह छर्र छर्र उंडेलने लगे और उसी समय मैं भी दुबारा झड़ने लगी।
“हाय राज्ज्जा ओह लंड्ड्डराज्ज्जा आह्ह्ह्ह्ह्ह इस्स्स्स्स्स्स मैं गई,” चरम सुख के वे अकथनीय पल, मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकती हूं। अद्भुत, स्वर्गीय, अनिर्वचनीय। फिर हम तीनों खल्लास हो कर नंग धड़ंग निढाल बिस्तर पर लुढ़क गए। पूर्ण संतुष्टी की मुस्कान उन बूढ़ों के होंठों पर खेल रही थी। देर पहले शेर की तरह सर उठाए उनके विशाल लंड बड़ी मासूमियत से चूहों की तरह दुबक गए थे। मैं ने आज जो सुख पाया उसके लिए उन दोनों की शुक्रगुजार थी। हम निढाल जरूर थे मगर एक दूसरे के नंगे जिस्म से अब भी चिपके हुए थे। मुझे उन पर बहुत प्यार आ रहा था। मैं उनको बारी बारी से चूम उठी।
“सचमुच मेरे राजाओ, खूब मज़ा दिया आप लोगों ने। आई लव यू बोथ।” मैं बोल उठी। करीम चाचा तो निहाल हो उठे।
मेरे गालों को सहलाते हुए बोले, “तू सच में हरिया के लंड की मस्त उपज है रानी। आज तक इतना मजा नहीं आया जितना आज आया। क्या मस्त बदन है तेरा। चोद के दिल खुश हो गया। तू सच में मस्त माल है। हरिया तू सही में किस्मत वाले हो, इतनी जबरदस्त खूबसूरत सेक्सी बेटी मिली है तुझे।”
पापा गर्व से बोले, “अरे आखिर बेटी किसकी है।”
“अब बेटी वेटी कुछ नहीं, मुझे सिर्फ कामिनी बोलिए। बड़े आए बेटी बोलने वाले। एक लौंडिया आपके लंड से पैदा हुई, आपसे चुदवाने के लिए, बस यही याद रखिए।” मैं बड़ी बेशर्मी से बोली।
“हां हां, तू बस एक खूबसूरत लौंडिया हो, जिसका नाम कामिनी है और हम इस लौंडिया के चुदक्कड़। अब ठीक है?” पापा बोले।
“हां अब ठीक है मेरे चोदू बलमा।” मैं उन दोनों के लंड को सहलाते हुए बोली। “अच्छा कल आपने चार औरतों को चोदने की कहानी सुनाई, बाकी औरतों के बारे में भी तो बताईए।” मैं पूछी।
“करीम, आगे की कहानी तू बता दे भाई” पापा बोले।
“ठीक है तो सुनो। सब्जी बेचने वाली औरत से हम दोनों साझेदार हो गये थे। एक दिन तेरे बाप को सब्जी वाली के साथ चुदाई करते हुए मैं ने रंगे हाथ पकड़ लिया। दोनों फर्श पर ही चुदाई में बिजी थे। बिल्कुल नंगे। उस दिन मैं मालिक को जल्दी छोड़ कर आ गया था। दरवाजा सिर्फ उढ़का हुआ था। दरवाजा ज्योंही खुला मैं अंदर का सीन देख कर दंग रह गया। यह हरिया सब्जी वाली को कुतिया बना कर चोद रहा था।”
“यह क्या हो रहा है?” मैं जोर से बोला। नंगी सब्जी वाली की बड़ी बड़ी चूचियों को देख कर मेरा लौड़ा टनटना उठा था। उसकी फूली हुई भैंस जैसी चूत को देख कर मेरे मुंह में पानी आ गया था। मैं उसे चोदने के लिए पागल हो गया था। मैं उसे धमकाते हुए बोला, “देख मैं ने तुम दोनों को चुदाई करते हुए रंगे हाथ पकड़ा है। मुझे भी चोदने दे नहीं तो मालिक को बता दूंगा।” मैं ने धमकी दी तो सब्जी वाली गिड़गिड़ाने लगी।
“मालिक को मत बताइएगा बाबूजी, आप चाहो तो हमें चोद लीजिएगा।” सब्जी वाली औरत बोली।
“ठीक है तो हरिया, तू पहले चोद ले फिर मैं इसे चोदुंगा।” ब्लैकमेल कर के सब्जी वाली को मुझसे चुदने के लिए मना लिया।
जब तक हरिया उस औरत को चोदता रहा, मैं कपड़े उतार कर चोदने के लिए तैयार हो गया। हरिया चोद कर उस औरत को छोड़ा, मैं फनफनाता लौड़ा उठाए उसकी ओर बढ़ा, लेकिन उस औरत ने ज्यों ही मेरा लौड़ा देखा, डर के मारे रोने लगी, “बाप रे इतना मोटा लंड, हम तो मर ही जाएंगेे। मेरी बुर फट जायेगी। हमें मत चोदिए ना।” वह रोती हुई बोली।
“चुप साली रंडी, चुपचाप चोदने दे।” कहते हुए झपट कर उसे पकड़ लिया और उसके थल थल करती चूचियों को मसलते हुए उसके दोनों पैरों को फैला कर अपना लौड़ा उसकी झांटों से भरी हुई भैंस जैसी फूली बुर के मुहाने पर रखा और घप्प से एक जोरदार धक्का मारकर आधा लंड घुसा दिया। “ले रंडी हुम्म्म्म”
वह दर्द के मारे बिलबिला कर जोर से चिल्ला उठी, “आ्आ्आह ओ्ओ्ओ्ओह फाड़ दिया रे फाड़ दिया मेरा बूर। मार दिया मा्आ्आ्आ।”
मैं ने गुस्से से उसको दो झापड़ रसीद कर दिया और गुर्रा कर बोला, “चोप्प साली बुर चोदी रंडी, चुपचाप चोदने दे।” कहते हुए एक और जोर का धक्का मारकर पूरा लौड़ा उसकी बुर में उतार दिया। वह रो रही थी, छटपटा रही थी मगर मैं ने उसे छोड़ा नहीं, इतने सालों बाद तो चोदने के लिए एक औरत मिली थी, कैसे छोड़ देता। फिर तो दे दनादन चोदने लगा और कुछ ही देर में उसका रोना चिल्लाना बन्द हो गया और खूब उछल उछल कर चुदवाने लगी, “आह ओह राजा चोद साले हरामी फाड़ दो मेरी बुर, आह आह।”
“अब आ रहा है ना मज़ा साली हरामजादी कुतिया बुर चोदी, इसी के लिए इतना नाटक कर रही थी चूत मरानी” मैं बोला। आधे घंटे की घमासान चुदाई के बाद जब मैं अपना आठ साल से जमा लौड़ा रस उसकी चूत में छोड़ने लगा तो वो कुतिया भी पागल की तरह मुझसे चिपट गई और उसका भी काम तमाम होने लगा। “हाय राजा हम तो गये आ्आ्आह ओ्ओ्ओ्ओह मां ््आ इस्स्स्स मस्त चुदक्कड़ हो जी। हमको मां बना दो राज्ज्ज्जा आ्आ्आह।”
“हां रे कुतिया आज तुझे पेट से कर देता हूं हर्र्र्र्र्रामजादी रं्रं्रं्ड्ड्ड्डी आह ओह आह।” जब तक मेरे लंड का रस अपने बूर से पूरा नहीं चूस लिया, हम से चिपटी रही। उसके बाद तो हम दोनों ने मिलकर उस दिन के बाद ऐसा चोदा कि दो महीने बाद पता चला कि सच में वह पेट से हो गई और हमको बोली, “हम इस बच्चे को जन्म देंगे। आप दोनों ही इस बच्चे के बाप हो। हमरे मरद से तो बीस साल में भी बच्चा नहीं हुआ। अब बच्चा पैदा होने के बाद ही आप लोगों को चोदने देंगे नहीं तो बच्चा खराब हो जाएगा।”
हम घबड़ा गये कि तब तक हम कैसे दिन काटेंगे। हमको चोदने का चस्का लग गया था। बिना चोदे हमें चैन कैसे मिलेगा। फिर भी मन मसोस कर मैं बोला, “ठीक है, आज से हम तुझे नहीं चोदेंगे। मगर तब तक हम कैसे दिन काटेंगे?”
“अरे हम इसका गांड़ तो चोद ही सकते हैं ना। कम से कम पांच छः महीने तो आराम से गांड़ मार सकते हैं।” तेरे पापा बोले।
“नहीं बाबा आप लोगों का लंड बहुत बड़ा है। मेरा गांड़ फाड़ दोगे।” घबराकर वह बोली।
“ठीक है तो चलो अभी देख लेते हैं। अगर तकलीफ होगा तो नहीं चोदेंगे।” मैं बोला।
वह झिझकते हुए राजी हो गई। हमें तो मुंहमांगी मुराद मिल गई। फटाफट कपड़े खोल कर उसे कुतिया बना दिया और पहले हरिया अपने लंड में तेल लगा कर उसकी मोटी मोटी गोल गोल गांड़ को फैलाया और गांड़ के सुराख के पास लंड का सुपाड़ा टिका कर धीरे धीरे दबाव बढ़ाने लगा। हरिया के लंड का सुपाड़ा सामने से नुकीला होने के कारण अपने आप रास्ता बनाता हुआ अन्दर घुसता चला गया। लेकिन कुछ दूर घुसने के बाद वह चिल्ला उठी क्योंकि लंड पीछे की तरफ तो मोटा था। अब एक बार लंड को छेद मिल गया तो तेरा बाप कैसे छोड़ देता। “हाय राम मार डाला रे आ्आ्आह ओ्ओ्ओ्ओह फाड़ दिया, छोड़ हरामी” वह चिचिया उठी। हरिया कहां मानने वाला था, एक जोरदार धक्का लगाया और पूरा लंड अन्दर पेल दिया। “मां अम्मा मार दिया मादरचोद, आह” चिल्ला उठी। हरिया कुछ नहीं बोला बस चुपचाप चोदने में लग गया।
दो मिनट बाद ही पारो मस्त हो गई और बोलने लगी, “आह ओह राजा, चोद हरामी चोद मादरचोद हमारा गांड़ चोद बाबू।,” हम समझ गए मामला फिट हो गया। फिर क्या था पहले हरिया चोदा फिर हम चोदे। “बहुत मस्त है रे रानी तेरा गांड़। हम पहले काहे तेरी गांड़ पर ध्यान नहीं दिये।” मैं बोला।उस दिन के बाद हम छः महीने तक उसके गांड़ से काम चलाए। उसकी मोटी मोटी गोल गोल गांड़ को चोद चोद कर हमने और ज्यादा फैला दिया था। जब उसके मां बनने के लिए दो महीने बाकी थे और पेट गुब्बारे जैसा फूल गया था तब हमने उसको चोदना छोड़ा। आखिरी महीने में तो उसका पेट इतना बड़ा हो गया था कि बड़ी मुश्किल से चल फिर सकती थी। फिर उसको 46 साल की उम्र में जुड़वां बच्चे हुए। एक लड़की और एक लड़का। दोनों का वजन लगभग ढाई ढाई किलो था। लड़की का नाम करीम से करिश्मा और लड़के का नाम हरिया से हरीश रखा। बच्चे पैदा होने के बाद तो उसकी चूचियों का साइज़ और बढ़ गया और झूल गया था। चूत तो भोंसड़ा बन गया था। हम तीनों के बीच प्यार तो हो गया था मगर चुदाई में अब वह मजा नहीं रहा।
उसे भी समझ आ गया था कि हमारे बीच अब चुदाई में वह रस नहीं रहा। फिर भी कभी कभी चुदाई हो ही जाता था। हम दोनों अब दूसरी औरतों को चोदने के फिराक में लग गए।

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