Wednesday, December 11, 2013

आज एक अरसे के बाद सोहन को जी भर के चोदने का मौका मिला थावैसे तो हम जब भी , जहाँ भी मिलते  थे, चूमा चाटी  तो करते ही थे, पर आधी अधूरी चुदाई में वो मज़ा कहाँ

आज जब मैं उसके घर पहुँची तो घर में सोहन और उसकी आपा ही घर पर थे. लगता था की दोनों आपस में शुरू हुए ही थे की मैं आ टपकी 


"आज तो मज़ा आ गया, अरसे के बाद हम तीनों अकेले मिले हैं" रिचा आपा ने कहा.


"सच बताओ, रिचा, क्या वाक़ई खुश हो या मन में गालियां दे रही हो ? क्या मैं  दाल भात में मूसर चंद बन कर तो नहीं आ गयी ?" मैं बोली.


"लैला, मूसर चंद नहीं, तू तो गहरी कँती है सोहन के पतवार के लिये " ऋचा ने ऐसे बोला जैसे उस के दिल से आवाज आ रही हो  और उसके बाद सोहन के पतवार कभी मेरी नांव  में और कभी रिचा 
की नाव  में चप्पू चलाया. हम लोग रुके तब जब तीनों थक कर चूर हो गये और मैं वापस घर आने के लिए निकल आई.

रास्ते भर मैं सोहन के मजाक के बारे मैं सोचती रही  वो अक्सर करता रहता था कि  मैं अपने अब्बू की तन्हाई दूर करने की कोशिश क्यों नहीं करती. पहले तो मुझे यह बहुत अटपटा लगता था पर धीरेधीरे मैं भी कभी, कभी अपनी  चूत मैं उंगली करते वक़्त यह तस्वीर आँखों के सामने रखती थी. अब्बू का लंड मैं ने एक दो बार देखा था और इस मैं कोई शक नहीं था की वह इस उम्र मैं भी मेरी चूत की गर्मी को ठंडा करने की ताकत रखता था 



जैसे ही मैनें अपनी चाबी से साइड का दरवाज़ा खोला मुझे लगा घर में कोई है, ऊपर की मंज़िल से कुछ आवाज़ें सी आ रही थीं ऊपर की मंज़िल में तो अब्बा रहते थे और आज सुबह जब मैं घर से गयी थी तो अब्बू ने मुझे बताया था कि वह दोपहर की फ्लाइट से वो और उनकी की दोस्त सहला दिल्ली चले जायेंगे.

अब्बू ने अम्मी की मौत के बाद दूसरी  शादी नहीं की थी. पचास साल के अब्बू अभी तक मेरे साथ ही रहते. अब्बू की कंपनी की कई लडकियां घर आया करती थीं. अब्बू मेरे साथ भी काफ़ी खुले

थे - बातों में भी और रहने में भी. अब्बू मुझ से कुछ भी छुपाते नहीं थे के उन को मिलने लड़ियाँ आती है और रात को रुक भी जाती हैं यह सब कुछ बिलकुल नार्मल लगता था 



मैं भी सोचती थी के अब्बू की भी ऐसे ही जिस्मानी ज़रूरतें है जैसी मैं महसूस करती थी. बात ही बात में एक दो बार उन्हों ने मुझे समझा दिया था की आज़ादी का इःतेमाल करते हुए अपनी हिफाजत  का ध्यान रखना लड़की का ही काम है, अपने पाट्नर्र पर  नहीं इस से मैं समझ गयी कि "आइ हॅव टू टेक के र ऑफ माइसेल्फ"

तभी मेरी जान पहचान सोहन और ऋचा से हुयी पहले तो मैं समझ नहीं पायी यह किस तरह की बात कर रहे हैं मगर कुछ समय बाद रिचा ने मुझे अपने खेल मैं शामिल कर लिया अब मैं, सोहन और ऋचा कहीं न कहीं मिलते और सोहन हम दोनों की मस्त चुदाई करता कभी कभी ऋचा और मैं एक दुसरे के साथ छूट चाट कर, उंगली करके या एक दुसरे की छूट मैं डिलडो डाल कर एक दुसरे को तृप्त करते 

अब अब्बू के साथ शुरुआत की कहानी 


मैं सोचने लगी अबू ने मेरे साथ झूठ क्यों बोला ? अगर उन के  प्रोग्राम मैं कोई बदलाव आया होता तो वह मुझे फ़ोन पर भी बता सकते थे 

मैं दबे पाँव ऊपर की मंज़िल की तरफ चढ़ने लगी अब्बू के कमरे के दरवाजे पर जा कर मैं बे देखा दरवाजा हल्का सा खुला हुआ था और अंदर अब्बू और उन के ख़ास दोस्त सरफाज़ अंकल पूरी तरह नंगे एक लड़की के ऊपर चढ़े हुए थे  और अब्बू का हलब्बी लंड लड़की की चूत घचा घच पेल रहा था और सफ़राज़ अंकल का लुनद उस लड़की ने अपने मुंह मैं लिया हुआ था 

तेज चुदाई की वजगह से किसी का भी ध्यान दरवाजे की तरफ नहीं था मैं उसी तरह दबे पाँव वापिस आयी और अपने बेड रूम मैं आ कर उन लोगों का कार्यक्रम खत्म  होने की प्रतीक्षा करने लगी करीब आधे घंटे बाद किसी के नीचे आने की आवाज़ हुयी शायद कोई किचन की तरफ जा रहा था मैं अपने कमरे से निकल कर लॉबी मैं आ गयी 

 मेरा सामना अब्बू से हुआ अबू इस वक़्त पूरी तरह नंगे थे और उन का लंड गधे के लंड की तरह झूल रहा था 

"अरे लैला तू कब आयी " अब्बू बस इतना हेई पूछ पाये अपने नंगे पण को ढांकने के लिए वह कुछ कर ही नहीं सकते थे इस लिए उन्होंने ऐसी कोई कोशिश नहीं की 

 जब आप और सरफ़राज़ अंकल ऊपर थे अब्बू " ओह माँ बोलने के बाद ही मुझे ध्यान आया मुझ से क्या गलती हो गयी थी  

"ओह तो तूने पूरा  एक्शन देख लिया "अबू की आवाज मैं कोई मलाल नहीं था 

"हाँ अबू" मैं इतना ही बोल पायी 

चल मैं थोड़ा अच्छा बच्चा बन कर आता हूँ कह कर वह पानी की बोतल उठाये ऊपर चले गए और मैं अपने कमरे मैं वापिस आ गयी मेरे पूरे बदन मैं चींटियाँ सी काट रही थी मुझे भी उसी लड़की की तरह चुदने का मन कर रहा था मैं ने अपने सब कपडे उतारे और एक गाउन पहन लिया अगर आज अब्बू को पता सकी तो उन को ज्यादा मेहनत  नहीं करनी पड़ेगी ऐसा सोच कर मैं ने ऐसा गाउन पहना जिस को बड़ी आसानी से मेरे बदन से अलग किया जा सकता था मैं अपनी चूत के होंठ सहला रही थी उस मैं से सोहन के वीर्य की एक दो बूँद अभी भी बह कर बाहर को आ जाती थी 

थोड़ी देर बाद फिर घर का दरवाजा खुला और बंद हुआ मुझे लगा अब वह लड़की और सरफ़राज़ अंकल चले गए होंगे इस लिए मैं अपने कमरे से निकल आयी 

मगर यह क्या सरफ़राज़ अंकल तो अभी भी घर पर ही थे और एक टी शर्ट और एक निक्कर पहने सोफे पर बैठे हुए थे अब्बू उन के लिए फ्रीज़ से बियर निकाल रहे थे 

मुझे आता देख कर सरफ़राज़ अंकल बोले "आ लैला तू भी आ जा" और एक बियर की बोतल मुझे पकड़ा दी मुझ पर इतनी गर्मी चढ़ी हुयी थी की मैं ने बिना सोचे समझे बियर  बोतल जाता गत अपने गले मैं 

" वाह लैला अब  तो तू बड़ी हो गयी है" अंकल बोले 

"हाँ अंकल मगर क्या करें आप लोग इस बात को नहीं  मानते ना"

"क्यों बेटी" ऐसे क्यों बोल रही है 

"लड़की जब बड़ी हो जाती है तो वह असली खीलोनों से खेलना चाहती हैं न"

"ओह मेरी प्यारी लैला" तेरी हर जरूरत को हमें पूरा करना ही है दोनों एक साथ ही बोल पड़े "क्या तू तैयार है मेरी बेटी" 

"क्या कोई सबूत देना होगा" मैं ने मजाक के लहज़े मैं पूछा 

"हाँ" तू ने तो हमारे हथियार देख ही लिए हैं अब जरा अपने प्रेम द्वार के दर्शन करवा दे बिल्लो रानी 

लो आ जाओ" मैं ने अपना गाउन उतारा और सोफे पर बैठे दोनों के सामने जा खड़ी हुयी 

अबू ने मेरी झांघें थोड़ी दूर करी और मेरी झाटों से ढकी चूत को देखने लगे 
फिर उन्होंने अपनी उंगली से थोड़ा झांट के बालों को इधर उधर किया और चूत के होंठ दिए 

चूत ने थोड़ा रस और फेंका और उस के साथ सोहन  के माल के एक बूँद अबू की उंगली पर जा लगी 

"ओह सरफ़राज़ मियाँ मेरी बिल्लो सच मैं बड़े खिलौनों से खेलने लगी है - यह किस का माल है बिल्लो रानी

"जब घर के लोग बाहर वालों की चूत मैं अपना पानी गिराते है तो घर की चूत को बाहर वालों से टहनी होने जाना पड़ता है 

"ओह सरफ़राज़ आज तुझे कसम है अल्लाह की तब तक इस घर से बाहर कदम मत रखना जब तक मेरी बिल्लो की चूत को पूरा ठंडा न कर दे 

"चूत क्या मैं तो लैला की गांड भी ठंडा करूंगा तू बोल तू क्या करेगा"

शुरुआत के लिए एक एक छेद ले लेते हैं यार

उह्ह्ह्ह चूत और गांड चुदाई एक साथ और वह भी मस्त मुसलमानी लौड़ों से आज तो बड़ा मजा आने वाला है  " मैं ने सोचा 








यार यह जंगल तेरी बिटिया की सुन्दर छूट पर शोभा नहीं दे रहा इस को साफ़ कर देना चाहिए न 





   




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