Wednesday, December 11, 2013

ल करवा दिया था। उसकी डिलिवरी होने वाली थी। जीजू भी यहीं घर पर आ गये थे। यूं तो वे इसी शहर में रहते थे, और एक सरकारी विभाग में कार्य करते थे। झीलें उन्हें विशेष रूप से पसन्द हैं। उन्हें दीदी के साथ झील के किनारे घूमना अच्छा लगता है। वो मुझे भी अपने साथ अक्सर घुमाने ले जाते थे। घूमते समय जीजू कई बार दीदी के चूतड़ के गोले दबा देते थे। यह देख कर मेरे दिल में एक मीठी सी सिरहन दौड़ जाती थी। मुझे लगता था कि काश कोई मेरे चूतड़ों को भी जोर से दबा डाले। जीजू कभी कभी मुझसे भी दो धारी बातें कर लेते हैं ... उन्हें टोकने पर उनका जवाब होता था- भई, साली तो आधी घरवाली होती है ... साली से मजाक नहीं करेंगे तो फिर किस से करेंगे ... ? बस एक मीठी सी टीस दिल में घर कर जाती थी। आज भी शाम को मम्मी के होस्पिटल जाते ही जीजू झील के किनारे घूमने के लिये निकल पड़े थे, मुझे भी उन्होंने साथ ले लिया था। जीजू मेरा बहुत ख्याल रखते हैं। अपनी मोटर-बाईक वो एक रेस्तरां के सामने खड़ी कर देते थे, फिर वो लगभग दो किलोमीटर पैदल घूमते थे। आज भी उन्होंने घूमते समय उन्होने मेरी मनपसन्द की चीज़ें मुझे खिलाई। रास्ते भर वो हंसी मजाक करते रहे। मैं रास्ते में उनका हाथ पकड़ कर इठला कर चलती रही। जीजू की चुलबुली बातों का चुलबुला उत्तर देती रही। वो भी हंसी मजाक में कभी कभी मेरे चूतड़ों पर हाथ मार देते थे, कभी मेरी पीठ पर हल्के से मुक्का मार देते थे। दो तीन दिन में जीजू मेरे बहुत करीब आ गये थे।हम दोनों अक्सर साथ साथ ही रहना पसन्द करने लगे थे। मैंने जवानी की दहलीज पर कदम रखा ही था ... मेरे दिल में भी जवां सपने आने लगे थे। मेरी रातो में सपने रंगीनियों से भरे हुये होते थे। आजकल जीजू मेरे दिलो-दिमाग में छाये रहते थे। रातों में भी उन्हीं के सपने आया करते थे। मुझे लगने लगा कि मैं जीजू से प्यार करने लगी हूँ। मेरा झुकाव उनकी ओर बढ़ता ही गया। जीजू का भी लगाव मुझसे बढ़ गया था। अब हम दोनों अक्सर एक दूसरे का हाथ दबा कर शायद प्यार का इज़हार करते थे।एक दिन तो शाम को झील के किनारे एकान्त में जीजू ने मुझसे चुम्मे की फ़रमाईश कर दी। मैं तो जैसे ये सुन कर सन्न रह गई। पर जल्दी ही मैंने अपने आप पर काबू पा लिया। मुझे लगा कि अभी नहीं तो फिर बात नहीं बन पायेगी। मैने शर्माते हुये जीजू के गाल पर एक चुम्मा ले लिया। "बस, ले लिया चुम्मा ...?" वो हंसते हुये बोले। "अब यशोदा, मेरी बारी है..." जीजू को शरारत सूझ रही थी। जीजू ने सावधानी से इधर उधर देखा और इत्मिनान से पहले तो मेरे गालों के पास अपने होंठ लाये फिर झट से मेरे होंठो को चूम लिया। मेरा दिल धक से रह गया। मैं बुरी तरह से झेंप गई थी। शर्म से गाल लाल हो गये थे। तभी मैं कुछ समझती उन्होंने अपने दोनों हाथों से मेरा चेहरा थाम लिया और मेरे लबों की ओर झुक गये। मेरे होंठ कांप उठे। मैं कुछ ना कर पाई। कुछ ही पलों में भंवरा कली का रस चूसने लगा था। इस मधुर क्षण को मैंने जी भर कर भोगा। मैंने कोई आपत्ति नहीं की ... उन्हें खुली छूट दे दी। मुझे लगा को मुझे मेरी मंजिल मिल गई है। मेरा दिल जीजू के प्यार में रंगने लगा था, मुझे लगने लगा था कि जीजू के बिना अब मैं नहीं रह पाऊंगी। हमारा प्यार दिनों-दिन फ़लने फ़ूलने लगा। दीदी ने एक प्यारी सी लड़की को जन्म दिया। घर में लक्ष्मी आई थी। सभी खुश थे। दीदी के बहाने मैं दिन भर जीजू के साथ रहती थी। कुछ दिनों बाद जीजू फिर से अपने घर में शिफ़्ट हो गये। अब मुझे उनके घर में जाकर प्रेमलीला का रास रचाने में बहुत सुविधा हो गई थी। वहाँ मुझे अकेले में टोकने वाला कोई ना था। हम दोनों मनमानी करते थे।  एक बार जब मैं जीजू के घर गई तो जीजू चाय बना रहे थे। हम दोनों ने चाय पी और हमारी प्रेम लीला चल पड़ी। पर आज तो वो हदों को पार करने लगे। चुम्मा लेते हुये उन्होंने मेरे चूतड़ का एक गोला दबा दिया। मुझे आनन्द तो बहुत आया पर शर्म के मारे कुछ नहीं कहा। थोड़ी ही देर बाद जीजू ने मेरे छोटे छोटे उभरते हुये नीम्बूओं को मसल दिया। मैं चिहुंक उठी..."ये क्या करते हो जीजू... दर्द होता है...! " मैंने नखरे दिखाते हुये कहा।"अरे तो क्या ? ... देखो कितने रसीले हैं ... और मसल दूँ !" जीजू ने फिर से मेरी छोटी छोटी सी चूचियाँ मसल दी।"जीजू ... नहीं करो ना ... सचमुच दुखते हैं..." मैंने उनका हाथ अपनी छाती पर दबाते हुये कहा। उन पर वासना का नशा चढ़ने लगा था। उन्होंने मुझे लपेट लिया और बेतहाशा चूमने लगे। उनका लण्ड कड़क हो गया था। मेरा सारा शरीर जैसे झनझना उठा। मेरी नस नस जैसे तड़कने लगी थी। मैं अपने आप को उनसे छुड़ाने का स्वांग करने लगी... क्या करूँ ! करना पड़ता है ना... लोकलाज़ भी तो कोई चीज़ है ना ! अह्ह्ह्ह वास्तव में नहीं... वास्तव में तो मैं चाह रही थी कि वो मेरा अंग अंग मसल डालें ... मेरे ऊपर चढ़ जायें और मुझे चोद दें ... पर हाय रे ... इतनी हिम्मत कहां से लाऊँ ... कि जीजू को ये सब कह सकूँ।
मैं हंस हंस कर अपने आपको भाग भाग कर बचाती रही ... और वे मुझ पर झपटते रहे। कभी मेरे चूतड़ दबा देते थे तो कभी मेरे छाती के उभारों को दबा देते थे। अन्त में उन्होंने मुझ पर काबू पा लिया और मुझे दबोच लिया। मैं चिड़िया जैसी फ़ड़फ़ाड़ाती रही... मेरा टीशर्ट ऊपर उठा दिया, उनके कठोर हाथ मेरे नंगे उभारों पर फ़िसलने लगे। उन्होंने मेरे जीन्स की जिप एक झटके में खोल दी। आह्ह्ह्ह्... ये क्या ... जीजू का कड़क लण्ड मेरी उतरी हुई जीन्स के बीचोंबीच स्पर्श करने लगा। मेरी मां... क्या सच में मैं चुदने वाली हूँ ...! मेरे ईश्वर ... घुसा दे इसे मेरी चूत में ... । मैं लण्ड का स्पर्श पाकर जैसे बहक उठी थी। मेरी चूत सच में लप-लप करने लगी थी ... दो बून्द रस मेरी योनिद्वार से चू पड़ा। मेरे और जीजू के बीच ये कपड़े की दीवार मुझे बहुत तड़पा रही थी। जीजू की तड़प भी असहनीय थी। वो मेरी उलझनें स्वयं ही दूर करने की कोशिश करने में लगे थे। उसने अपनी बनियान जल्दी से उतार फ़ेंकी, मेरी टी शर्ट भी वो ऊपर खींचने लगे ..."नहीं करो जीजू ... बस ना ...!" पर उन्होंने एक नहीं सुनी और मेरी टीशर्ट खींच कर उतार ही दी। मेरे मसले हुये निम्बू बाहर निकल आये... मसले जाने से निपल भी कड़े हो गये थे। चूचियाँ गुलाबी सी हो गई थी। उनका अगला वार दिल को घायल करने वाला था। मेरी एक चूची देखते ही देखते उनके मुख श्री में प्रवेश कर गई। मैं जैसे निहाल हो गई। "आह्ह्ह रे जीजू, मार डालोगे क्या ... अब बस करो ना ... " मेरी उत्तेजना तेज हो गई थी। चूत का दाना भी कसक उठा था। चूत में मीठी गुदगुदी तेज हो उठी थी। उसका कड़ा लण्ड बार बार इधर उधर घुसने की कोशिश कर रहा था। जीजू से नहीं गया गया तो उन्होंने उठ कर मेरी जीन्स नीचे खींच दी। मुझे बिलकुल नंगी कर दिया। मेरी चूत पर पंखे की ठण्डी मधुर हवा महसूस होने लगी थी। जीजू ने भी अपनी पैन्ट उतार दी और अपना बेहतरीन लम्बा सा सिलेन्डर नुमा लण्ड मेरे सामने कर दिया। मैंने शरम से अपनी आंखें बन्द कर ली। मैं इन्तज़ार कर रही थी कि अब कब मेरी योनि का उद्धार हो ? मेरे दिल में शूल गड़े जा रहे थे ... हाय ये लण्ड कहां है ? कहां चला गया ?तभी मेरे होंठों पर मुझे कुछ मुलायम सा चिकना का स्पर्श हुआ... मेरा मुख स्वतः ही खुलता चला गया और उनका गोरा लण्ड मेरे मुख में समां गया। अरे ... ये क्या हुआ ?...... उनका प्यारा लण्ड मेरे मुख श्री में !!! इतना मुलायम सा... मैंने उसे अपने मुख में कस लिया और उसे चूसने लगी। जीजू भी अपना लण्ड चोदने जैसी प्रक्रिया की भांति मुख में अन्दर बाहर करने लगे। उनका एक हाथ मेरी चूत और दाने को सहलाने लगा था। मैं वासना में पागल सी हुई जा रही थी। तभी जीजू बोले,"यशोदा ... कैसा लग रहा है ...? मुझे तो बहुत मजा रहा है।""जीजू, आप तो मेरे मालिक हो ... बस अब मुझे लूट लो ... मेरी नीचे की दीवार फ़ाड़ डालो !" मैं जैसे दीवानी हो गई थी। "ये लो मेरी जान ... " जीजू ने अपना शरीर ऊपर उठाया और मेरी चूत के लबों पर अपना लण्ड रख दिया। मेरे पूरे शरीर में एक सिरहन सी दौड़ गई। मेरी चूत उसका लण्ड लेने को एकदम तैयार थी। "तैयार हो जान ... ?" जीजू के चेहरे पर पसीना आने लगा था।"अरे, तेरी तो ... घुसेड़ो ना ..." उत्तेजना के मारे मेरे मुख से निकल पड़ा।जीजू ने अपने चाकू से जैसे वार कर दिया हो, तेज मीठी गुदगुदी के साथ चाकू मेरी चूत को चीरता हुआ भीतर बैठ गया।"जीजू, जोर से मारो ना ... साली को फ़ाड़ डालो...! " मेरे चूत में एक मीठी सी, प्यारी सी कसक उभर आई।"क्या बात है ... रास्ता तो साफ़ है ... पहले भी चक्कू के वार झेले हैं क्या ?" "आपकी कसम जीजू, पहली बार किसी मर्द का लिया है ... अब रास्ता तो पता नहीं !" जीजू मेरे लबों पर अंगुली रख दी। "बस चुप ... तू तो बस मेरी है जान ... ये लण्ड भी तेरा है..." "जीजू, मेरे साथ शादी कर लो ना ... छोड़ो ना दीदी को..." मेरा मन जैसे तड़प उठा।"अरे दीदी अपनी जगह है, साली अपनी जगह, फिर तुम आधी घर वाली तो हो ही, तो चुदवाने का हक तो तुम्हें है ही ... चल अब मस्त हो जा ... चुदवा ले !" जीजू ने लण्ड घुसेड़ते हुये कहा। मैं कसक के मारे मस्त हो उठी थी।तभी उसका एक जबरदस्त धक्का चूत पर पड़ा। मेरी चीख सी निकल गई।  "जीजू जरा धीरे से मारो ... लग जायेगी !" पहली बार मेरी चूत ने लण्ड लिया था। जीजू मुस्कराए और मन्थर गति से लण्ड को अन्दर बाहर करने लगे। मेरी चूत में गुदगुदी भरी मिठास तेज होती जा रही थी। मेरी सांसें तेज हो गई थी। जीजू का यह स्वरूप मैंने आज पहली बार देखा था। बेहद मृदु स्वभाव के, मेरा खुशी का पूरा ख्याल रखने वाले, प्यार से चोदने वाले, सच बताऊँ तो मेरे दिल को उन्होंने घायल कर दिया था। मैं तो उनकी दीवानी होती जा रही थी। आज हमें एक तन होने का मौका मिला था... मन तो कर रहा था कि रोज ही जीजू मुझे चोद चोद कर निहाल करते रहें, मेरे तन की आग को शांत करते रहें। मुझे नहीं मालूम था कि लण्ड का रोग लग जाने के बाद मेरी चूत चुदाने के लिये इतनी मचलेगी। कहते हैं ना- ये तो छूत का रोग है। लण्ड के छूने से ही ये रोग चूत का रोग बन जाता है।जीजू की कमर तेजी से मेरी चूत पर चल रही थी। मैं भी अपनी चूत उठा उठा कर दबा कर लण्ड ले रही थी। मुझे लगने लगा कि जीजू की चोदने की रफ़्तार धीमी हो गई है। "क्या जीजू, पेसेन्जर ट्रेन की तरह चल रहे हो ... सुपर फ़ास्ट की तरह चोदो ना !" मैंने व्यंग का तीर मारा। मैं उग्र रूप से चुदासी हो चुकी थी। "अरे मैंने सोचा तुम्हें लग जायेगी, लगता है अब चूत को बढ़िया पिटाई चाहिये !" जीजू हंस पड़ा। उसकी रफ़्तार अब तेज हो गई। अब मुझे लग़ा कि जम कर चुदाई हो रही है, चुदाई क्या बल्कि पिटाई हो रही है। मैंने जीजू को अपने से जकड़ लिया। चूत पर थप-थप की आवाजें आने लगी थी। "उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़ जीजू, बहुत मजा आ रहा है, क्या मस्त लण्ड है ... और जोर से मेरे जीजू !" "ये ले ... मेरी जान ... तेरी चूत तो आज फ़ाड़ कर रख दूंगा।" "सच मेरे राजा ... फिर तो लगा जमा कर... मां मेरी ... उईईईईईईइ" मैं अब पागलों की तरह अपनी चूत उछाल कर चुदवा रही थी। मेरे शरीर का जैसे सारा रस चूत की तरफ़ दौड़ने लगा था। मेरे चेहरे पर कठोरता आ गई थी। चेहरा बनने बिगड़ने लगा था। फिर मैं अपने आपको नहीं संभाल पाई और जीजू को जकड़ते हुये अपना काम-रस चूत से उगल दिया। जीजू इस काम में माहिर थे। उन्होंने भी अपना कड़कता लण्ड बाहर निकाल लिया और एक दो बार मुठ मार कर अपना वीर्य पिचकारी के रूप में बाहर छोड़ दिया। ढेर सारा वीर्य निकला ... मेरी छाती उन्होंने वीर्य से भिगो कर रख दी। मुझे बहुत संतुष्टि मिल रही थी। मैं आंखें बन्द कर के इस सुहानी चुदाई के आनन्द के अनुभव को महसूस कर रही थी। अपनी उखड़ी सांसों को नियंत्रित करने में लगी थी। पर जाने कब जीजू का लण्ड फिर से खड़ा हो गया और उन्होंने मुझे पलटी मार कर उल्टा कर दिया। मेरे छोटे-छोटे कसे हुए चूतड़ों के बीच उन्होंने अपना लण्ड फ़ंसा दिया। मैं कुछ समझती, उसके पहले उनका मोटा लण्ड मेरी गाण्ड में उतर चुका था। मेरे मुख से चीख निकल गई। गाण्ड मराने का मुझे पता ही नहीं था। जीजू के मुख से भी हल्की चीख निकल आई। पर दूसरे ही धक्के में उनका लण्ड मेरी गाण्ड में पूरा बैठ चुका था। मैं उनकी इस निर्दयता पर फिर से चीख उठी। दर्द के मारे बुरा हाल था। हाय ... कही मेरी गाण्ड फ़ट तो नहीं गई है। अब तो उनके धक्के तेज होने लगे ... मैं दर्द के मारे चीखने लगी। "अरे बेदर्दी ... फ़ट गई मेरी तो ... जरा एक बार देख तो ले !" मेरी आंखों में आंसू आ गये थे। बहुत दर्द हो रहा था। मैं अपनी टांगों को बार बार फ़ैला कर अपने आप को व्यवस्थित कर रही थी, पर दर्द कम नहीं हो रहा था। "नहीं जवान लड़की की गाण्ड ऐसे नही फ़टती है, बस दर्द ही होता है... अब इसे भी तो अपने लायक बनानी है ना... देख इसे भी चोद चोद कर मस्त कर दूंगा !" जीजू हांफ़ने लगे थे। "हाय रे ... भेन चुद गई मेरी तो ..." मैं तड़प कर बोल उठी। "ऐ चुप ... ये क्या रण्डी की तरह बोलने लगी...।" "सच में जीजू ... अब बस कर ना !" मैं रुआंसी हो कर विनती करने लगी। "बस जरा पानी निकल जाने दे ..." वो मेरी गाण्ड चोदते हुये बोले। उनकी गाण्ड चुदाई जारी रही। मैं चुदती रही और दर्द से बिलबिलाती रही। तभी मेरी टाईट और कसी हुई गाण्ड के कारण उनका माल बाहर निकल कर गाण्ड में भरने लगा। वो झड़ने लगे ... उन्होंने अपना लण्ड अब बाहर निकाल लिया। उनका लण्ड जहां तहां से कट फ़ट गया था। चमड़ी छिल गई थी।  "देखो लग गई ना ... जल्दी से धो कर दवाई लगा लो... जरा मेरी गाण्ड भी देख लो ना !" मैंने जीजू को सहानुभूति दर्शाई। "नहीं रे ... तेरी गाण्ड तो ठीक है बिलकुल ... बस छेद में थोड़ी लाली है या सूजन है... " "अन्दर जलन सी लग रही है..." मैं कुछ कुछ बेचैन सी हो गई थी। रात के आठ बज रहे थे... जीजू मुझे ले कर घर आ गये। मैंने तुरन्त भांप लिया कि दीदी की शंकित नजरें हमारा एक्स-रे कर रही थी ... पर मुझे उससे क्या... चुद तो मैं चुकी थी ... मैं भी तो आधी घर वाली हूँ ना ... भले ही वो जलती रहे। हमारा रास्ता तो अब खुल चुका था ... बस अब तो मात्र मौके की तलाश थी, मौका मिला और चुदवा लिया...। मेरे और जीजू का प्यार बहुत दिनो तक चलता रहा। पर अन्त तो इसका होना ही था ना... एक दिन दीदी को पता चल ही गया ... और दीदी ने कोशिश करके जीजू का स्थानान्तरण जयपुर करवा लिया। हमारे एक प्यारे से रिश्ते का अन्त हो गया ...  पर तब तक ... मैंने अपने लायक एक दोस्त ढूंढ लिया था ... कौन मरता है उस जीजू के लिये। अब तो सुधीर और मेरी प्यार की कहानी आगे बढ़ने लगी ... और फिर प्यार के अन्तरंग माहौल में हम दोनों उतरने लगे ... मेरी फिर से चुदाई चालू हो गई... मेरे जिस्म को फिर से एक तन मिल गया था भोगने के लिये... 

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