Wednesday, June 18, 2014

रूपा कविता

अंधेरे में एक साया एक घर के पास रुका और सावधानी से उसने यहाँ-वहाँ देखा। सामने के घर की छोटी सी दीवार को एक फ़ुर्तीले और कसरती जवान की तरह उछल कर फ़ांद गया और वहाँ लगी झाड़ियों में दुबक गया।

कमरे में कविता बिस्तर पर लेटी हुई कसमसा रही थी, उसे नींद नहीं आ रही थी। उसे अचानक लगा कि उसके घर में कोई कूदा है। वह दुविधा में रही, फिर उठ कर खिड़की के पास आ गई। उसे एक साया दिखा जो झाड़ियों के पास खड़ा था।

वो साया दबे पांव अन्दर की ओर बढ़ रहा था। उसे आश्चर्य हुआ कि मुख्य दरवाजा खुला हुआ था। वो तेजी से अन्दर आ गया और सीधे मौसी के कमरे की तरफ़ बढ़ गया। कविता का दिल धक-धक करने लगा, पर उसे ताज्जुब हुआ कि वो मौसी के कमरे में ना जाकर ऊपर सीढ़ियों पर चला गया।

उसने अंधेरे में तुरंत अपना मोबाईल निकाला और अपनी पड़ोसन शमा आण्टी को फोन किया,"आण्टी, हमारे घर में कोई चोर घुस आया है।"

" क्या... क्या ... कहाँ है वो अभी ?"

"वो ऊपर गया है"

"रूपा कहाँ है...।"

"शायद सो रही है..."

"ओह्ह्... तुम सो जाओ वो चोर नहीं है ?"

"तो आण्टी ???" "वो दिल का चोर है... तुम्हारी आन्टी भी ऊपर ही है... सो जाओ !" शमा की खनकती हंसी सुनाई दी ।

कविता ने फोन बन्द कर दिया। ओह्ह्... तो यह बात है... यह मौसी का यार है !!! अरे ये वही तो नहीं है जो सवेरे चाय पी रहा था। इसका मतलब यह रात भर मौसी के साथ रहेगा।

मौसा अक्सर बिजनेस यात्रा पर चले जाते थे। "तो क्या मौसी ... छी ... छी ... ऐसा नहीं हो सकता। मैं ऊपर जाकर देखूँ? हाँ यह ठीक रहेगा।" कविता ने धीरे से दरवाजा खोला और नंगे पांव सीढ़ियों की तरफ़ बढ़ गई। मौसी के कमरे की लाईट जल रही थी। मतलब वो अभी तक सोई नहीं थी। वो चुपचाप सीढियाँ चढ़ गई। सारी खिड़कियाँ बन्द थी। पर हां खिड़की के पास एक पत्थर की बेन्च थी, उसके ऊपर ही एक खुला रोशनदान था। कविता बेन्च पर चढ़ गई। जैसे ही अन्दर झांका तो जैसे उसके दिल की धड़कन रुक गई।

वो लड़का वही था... उसका नाम आशू था। वो बिल्कुल नंगा खड़ा था और उसका लण्ड लम्बा सा और मोटा सा था। उसका सीधा खड़ा और तन्नाया हुआ लण्ड बड़ा ही मनमोहक लग रहा था। मौसी बस एक पेटीकोट में थी, उनका ब्लाऊज उतर चुका था। उनकी दोनों चूचियां खूबसूरत थी, गोल गोल, भूरे भूरे निपल, आशू ने मौसी को प्यार से चूम लिया और बदले में मौसी में उसके फ़डकते हुये लण्ड को अपनी मुठ्ठी की गिरफ़्त में ले लिया। उसे प्यार से सहलाते हुये उसके लण्ड अपना हाथ आगे पीछे चलाने लगी। कविता का दिल कांप उठा। धड़कन बढ़ गई। उसके मन में वासना जाग उठी।

"आशू, मस्त लण्ड के मजे कुछ ओर ही होते हैं... हैं ना...?"

"रूपा, और मस्त चूत भी कमाल की होती है... जैसे आपकी है !"

"कल तो तू बड़ा कविता की चूत मारने की बात कर रहा था...?" "वो तो नई चूत है ना ... अभी तक चुदी नहीं होगी... आप आदेश दे तो उसे भी सेट करें?" "अभी तो मेरी चूत कुलबुला रही है... चल अपना लौड़ा अब चूत में घुसा डाल... कविता को तो पटा ही लेंगे...

अब बेचारी के पास चूत है तो लण्ड तो चाहिये ही ! है ना?" आशू हंस पड़ा और रूपा से लिपट गया। कुछ देर तक तो वो कुत्ते की तरह लण्ड चूत पर मारता रहा फिर चूत के द्वार पर अपने आप ही सेट हो गया और चूत के पट खोलता हुआ अन्दर घुस गया।

रूपा आशू से लिपट गई और एक टांग उठा कर आशू की कमर में डाल दी और लण्ड को अपनी चूत में सेट कर लिया। कविता का बदन पसीने से भीग गया, सांस फ़ूलने लगी। उसकी चूत भी रिसने लगी और गीली हो उठी। अपने चुदने की बात से उसे अपनी पहली चुदाई याद हो आई।

दोनों की कमर धीरे हिलने लगी और रूपा चुदने लगी। दोनों के मुख से वासना भरी सिसकारियाँ निकलने लगी। "हाय रे आशू, भगवान ने भी क्य मस्त चीज़ें बनाई हैं... धरती पर ही स्वर्ग का आनन्द ले लो !" "हां देखो ना आपके अधर रस से भरे, आंखों में जैसे शराब भरी हुई है, गुलाबी गाल को सेब की तरह काटने को मन करता है... चल बिस्तर लेट कर चुदाई करते हैं !"

 " नहीं रे अभी नहीं ... अभी थोड़ा सा गाण्ड को भी तो मस्ती दे यार !" और उसका लण्ड चूत से बाहर निकाल कर पीछे घूम गई और घोड़ी बन कर चूतड़ उभार दिये... जैसे ही आशू का लण्ड गाण्ड के छेद रखा... कविता सिहर गई। कविता का मन उनकी पूरी चुदाई देखने को हो रहा था, और अब तो ये हालत थी कि उसकी अपनी चूत भी फ़डफ़डा उठी थी। उसने अपनी चूत को अपने हाथ से हौले से दबा दी। उसकी चड्डी बाहर तक गीली हो गई थी और चिपचिपापन बाहर से ही लग रहा था। उसके सारे शरीर में एक वासना भरी कसक भर उठी थी।

रूपा की ग़ाण्ड के दोनों गोल गोल उभरे हुये चूतड़ किसी का भी लण्ड खड़ा कर सकते थे।आशू ने हल्का सा ही जोर लगाया और उसका लोहे जैसा डण्डा उसकी गाण्ड के छेद में उतर गया। दोनों ही एक साथ सिसक उठे। उन दोनों का रोज का ही गाण्ड मराने का और फिर चुदाने का दौर चलता था। सो रूपा की गाण्ड तो लण्ड ले ले कर मस्त हो चुकी थी। उसे दोनों ही छोर से चुदाने में मजा आता था। आशू ने रूपा के मस्त बोबे पकड़े और मसलने लगा। साथ ही साथ जोश में लण्ड अन्दर-बाहर करने लगा। दोनों मस्ती के माहौल में डूबे हुये थे ... हौले हौले सिसकी भरते हुये रूपा गांड मरवा रही थी।

कविता की आंखें मदहोशी में डूबने लगी थी। उसका सारा शरीर पसीने से भीग उठा था। उसकी आंखों के कटोरे नशे से भर गये थे, नयन बोझिल हो गये थे। उसका बदन जैसे आग में जलने लगा था। उसकी नस नस में वासना की कसक भर चुकी थी। ऐसे में उसे यदि कोई मिल जये तो उसको जी भर के चोद सकता था।

रूपा की गाण्ड चुद रही थी। आशू का लण्ड भी फ़ूलता जा रहा था। उसे भी स्वर्ग का आनन्द आ रहा था। दोनों ही दीन दुनिया से बेखर जन्नत में विचरण कर रहे थे।

कविता का मन सकता जा रहा था। उसकी चूत भी चुदाई करने जैसी हालत में आगे पीछे चलने लगी थी। जाने कब उसकी एक अंगुली उसने अपनी चूत में घुसा ली और चूत को शान्त करने की कोशिश करने लगी।

तभी आशू ने अपना लण्ड रूपा की गांड से बाहर निकाल लिया और रूपा झट से बिस्तर पर आ गई और उसने अपनी टांगें लेटे हुये ऊपर की ओर उठा ली। अपनी चूत को लण्ड को घुसेड़ने के लिये खोल दी। आशू भी उछल कर रूपा पर सवार हो गया। उसे अपने बदन के नीचे दबा लिया। उसका लण्ड उसके मुख्य द्वार में घुस गया और अन्दर उतरता चला गया। दोनों ही एक बार फिर से सिसक उठे। दोनों के होंठ मिल गये और फिर दोनों के चूतड़ एक दूसरे दबाते हुये लण्ड को घुसाने लगे। दोनों एक लय में, एक ताल में चलने लगे और चुदाई आरम्भ हो गई। दोनों की वासना भरी चीखें कमरे में गूंजने लगी।

उस कामुकता भरे वातावरण में कविता का मन डोल उठा और उसने चुदाने की सोच ली।पर अभी चुदाई चल ही चल ही रही थी... उसे देखने का लोभ वो छोड़ ना सकी। रुपा की चुदाई के बाद वो भी कमरे में घुस कर चुदवाना चाहती थी। कविता की चूत मारे गुदगुदी के बेहाल हो रही थी। बार बार अपनी अंगुली चूत में घुसा लेती थी। तभी रूपा की चीख निकल पड़ी और वो झड़ने लगी। आशू भी साण्ड की तरह अपना मुँह ऊपर करके जोर लगा कर झड़ने की तैयारी में ही था। कुछ ही क्षणों में उसने अपना चेहरा ऊपर करके हुन्कार भरी और लण्ड बाहर निकाल कर वीर्य उसकी उसके बदन पर बिखेरने लगा। कविता ने देखा कि मामला तो अब शान्त हो चुका है, बड़े बेमन से वो पत्थर की बेंच पर से उतरी और दबे पांवो से सीढ़ियाँ उतर गई। उसकी चूत की हालत यह थी कि उसकी चड्डी सामने से गीली हो चुकी थी। कमरे में घुसते ही उसने मोमबत्ती ली और बिस्तर पर लुढ़क गई। अपनी चूत को मोमबत्ती से शान्त किया, फिर वो निद्रा में लीन हो गई।

सुबह तक उसकी चड्डी सूख कर कड़क हो गई थी। उसकी चूत का पानी भी यहां वहां फ़ैल कर जांघ से चिपक गया था। उसने अपनी फ़्रॉक को नीचे खींचा और कमरे से बाहर निकल आई। उसने अपने खुले टॉप की तरफ़ भी ध्यान नहीं दिया। उसने बाहर आकर दोनों हाथों को उठाकर और आंखे बंद करके एक मदमस्त अंगड़ाई ली, पर आँखें खुलते ही उसने देखा कि आशू सामने खड़ा था। वो उसे आंखे फ़ाड़ फ़ाड़ कर यूं घूर रहा था जैसे उसने कोई अजूबा देख लिया हो। कविता ने उसे देखा और घबरा कर वापस अपने कमरे में आ गई। आशू भी मुस्कुरा पड़ा और कविता भी कमरे में मुस्कुरा उठी। वो तुरंत बाथरूम में जाकर नहा धो कर फ़्रेश हो गई। उसने रूपा के कमरे में जैसे ही कदम रखा तो उसे आशू वहाँ नहीं मिला। वो जा चुका था।

रात को खाना खाने के बाद रूपा अपने कमरे में आराम करने लगी, तभी कविता भी वहाँ पर आ गई। "मौसी, मैं भी आपके पास लेट जाऊं?" मौसी एक तरफ़ खिसक गई। कविता उनके पास लेट गई। "मौसी, एक बात पूछूँ... ये आशू क्या करता है...?" कविता ने धीरे से पूछा। रूपा ने उसकी तरफ़ करवट ली और कहा,"क्यूं क्या बात है ... है ना सुन्दर लड़का...?" "हां मौसी, सुन्दर तो है, पर मेरे से वो बात ही नहीं करता है..." कविता अपनी चूंचियां रूपा की बांह से दबाती हुई बोली। रुपा को कविता की बैचेनी का अहसास हो गया था। उसने अपनी बांह को उसकी चूंचियों पर और दबाते हुए कहा,

"अरे, वो तो तुम्हारी ही बात करता है ... कहो तो उससे दोस्ती करा दूँ...!" कविता को अपनी चूंची पर दबाव महसूस हुआ तो उसके मन में तरगें फ़ूट पड़ी।

"सच मौसी, मान जायेगा वो...आप कितनी अच्छी हैं...!" कविता ने अपनी चूची को उनकी बांह पर पूरा दबाते हुये उन्हें चूम लिया। "लगता है तेरा मन भटक रहा है... अब तेरी शादी करा देनी चाहिये !" मौसी ने मन की बात पढ़ ली थी। "मौसी, शादी तो करा देना... पर मन को तो हल्का कर दो... !" कविता की आवाज में कसक थी।

रूपा ने उसकी बैचेनी को देखते हुये अपने हाथों में कविता की दोनों चूंचियां भर ली। "मेरी कविता, अभी तो ये ले ... फिर समय आने दे... आशू भी मिल जायेगा...!" कविता सिसक उठी और रूपा से लिपट गई। रूपा ने भी मौके का पूरा फ़ायदा उठाया और अपनी एक चूंची उसके मुँह से रगड़ दी। कविता ने भी रूपा को पटाना उचित समझा और उसके ब्लाऊज को ऊपर खींच कर उसकी चूंची को अपने मुँह में भर लिया। रुपा भावना में बह चली। दोनों ही वासना में लिप्त हो कर एक दूसरे के बदन से खेलने लगी थी। अंधेरा बढ़ चला था।

तभी आशू ने हौले से कमरे के भीतर कदम रखा। कविता चौंक गई, वो भूल गई थी कि आशू के आने समय हो चुका है। रूपा तो कविता को बहला कर बस आशू के आने का ही इन्तज़ार कर रही थी। कविता तो लगभग नंगी ही थी, पर रुपा ने अभी भी पेटीकोट पहना हुआ तो था पर वो पूरा ही ऊपर उठा हुआ था। "कविता, देख आशू आया है..." " मौ... मौसी, मैं तो मर गई, कुछ दो ना... मुझे शरम लग रही है !" कविता हड़बड़ा गई। "शरमा मत ... ये तो मुझे रोज रात को चोदता है... चल आज तू चुदवा ले ..." रूपा ने उसे धीरज बंधाते हुये कहा।

" रूपा जी आपने तो अपना वादा पूरा कर दिया ... वाह ... कविता जी यदि कहेंगी तो ही कुछ करने का मजा आयेगा... "

"आशू जी, आप तो अपने कपड़े उतारो ... कविता आपका स्वागत करेगी... कविता कुछ तो कहो !"
 "जी मैं क्या कहूँ... मुझे तो बहुत लज्जा आ रही है..." कविता ने मुँह छुपा रखा था। आशू कविता के और नजदीक आ गया था। " आपके मुख के पास कुछ है... कविता जी... मुख खोलो तो..." आशू ने कहा।

कविता ने अपना मुख खोल दिया... और आशू ने अपना कोमल, नरम चमड़ी वाला कठोर लण्ड उसके होंठो से सहला दिया। कविता के शरीर में सनसनी फ़ैल गई। उसने धीरे से हाथ बढ़ा कर उसका लण्ड पकड़ लिया,"हाय राम... इतना बड़ा...?" कविता की भारी आंखे आशू की ओर उठ गई और उसे प्यार से निहारने लगी। वो एक दम नंगा उसके सामने खड़ा था।

रूपा कविता की ओर देख-देख कर मुस्करा रही थी। उसने प्यार से कविता के सर पर हाथ फ़ेरा और आशू के लण्ड को उसके सर को दबा कर कविता के मुँह में प्रवेश करा दिया। कविता ने सारी शरम छोड़ कर आशू के चूतड़ पकड़ लिये और अपने मुँह में उसे भींच लिया। रूपा ने आशू को चूम लिया और उसकी गाण्ड में अंगुली डालने लगी। आशू झुक कर कविता के सर को पकड़ कर अपना लण्ड उसके मुँह में अन्दर बाहर करने लगा।  आशू को रूपा की अंगुली अपनी गाण्ड में बहुत भली लग रही थी। आशू जैसे कविता का मुख चोद रहा था।

अब आशू ने कविता को लेटा दिया और उसकी चूंचियों को दबाने और मसलने लगा। उसके चुचूक जो बेहद कड़े हो चुके थे, उन्हें हौले हौले से सहलाने और अंगुलियों से खींचने लगा।
 "आह मौसी, ऐसा मजा तो कभी नहीं आया... आशू जी, अब नहीं रहा जाता ... प्लीज आ जाओ ना..." "अभी से कहाँ कविता जी... जवानी का मजा तो लो अभी ..." अब आशू के हाथ उसकी चूत की पंखुड़ियो के आस पास सहला रहे थे। बीच बीच में चूत के ऊपर कविता की यौवन-कलिका को भी सहला देता था। उसे हिला हिला कर कविता को असीम आनन्द दे रहा था। कविता की दोनों टांगें ऊपर उठने लगी थी। नतीजा यह हुआ कि उसकी गाण्ड का भूरा-भूरा कमल भी नजर आने लग गया था। आशू पंजों के बल बैठा था, सो रूपा भी आशू का आनन्द ले रही थी। कभी वो उसके लण्ड को मसल देती थी, कभी उसकी गोलियों को सहला देती थी, तो कभी उसकी गाण्ड में अपनी एक अंगुली घुसा  देती थी।

आशू भी थूक लगा कर कविता की गाण्ड में अंगुली घुसाने लगा था। उसकी गाण्ड के छेद को बड़ा कर रहा था, पर इस क्रिया में कविता मस्ती में बेहाल हुई जा रही थी। उसके मुख से सिसकारियाँ जोर से निकल रही थी, कभी कभी तो मस्ती में चीख भी उठती थी। आशू की अंगुलियाँ चूत में भी कमाल कर रही थी। रूपा का दिल भी मचल उठा और जान करके उसने आशू का कड़कता लण्ड कविता की गाण्ड में रख दिया और आशू को कुछ कहा। आशू मुस्कुरा उठा और उसने लण्ड का जोर गाण्ड के छेद पर लगा दिया। लण्ड कविता की गाण्ड में घुसता चला गया। कविता की गाण्ड तो कितनी बार उसके दोस्तो ने चोद रखी थी, सो लण्ड सरकता हुआ भीतर बैठने लगा। कविता ने भी अपनी गाण्ड थोड़ी ऊपर उठा दी। रूपा ने जल्दी से तकिया नीचे लगा दिया। रूपा ने आशू की गाण्ड में अपनी अंगुली फ़ंसाते हुये कहा,

"आशू चोद दे साली को, ये तो पहले से ही खुली हुई है... लगा धक्के साली की गाण्ड में..." "आह्ह्ह, आशू जी, जोर से चोद दो ना इसे ... बहुत दिन हो गये इसे चुदवाये ... आह्ह... लगा और जोर से..." कविता सीत्कार भरने लगी। कविता की गाण्ड चुदने लगी ... कविता को आनन्द आने लगा। अब रुपा कविता के पास आ गई और उसके स्तन मुँह में भर कर चूसने लगी, कभी कभी वो उसके मुख को भी जोर से चूस लेती थी। कुछ देर तक यही दौर चलता रहा, फिर आशू ने अपना लण्ड गाण्ड से निकाल कर चूत में घुसा दिया। कविता के मुख से आनन्द की जोर से आह निकल गई। तभी आशू ने रूपा की चूत में भी अपनी अंगुली प्रवेश करा दी। वो भी चिहुंक उठी।

अब आशू का लण्ड कविता की चूत में घुस चुका था। कविता को लगा कि हाय, स्वर्ग है तो बस चूत में ही है... रुपा भी अपनी चूतड़ आशू की तरफ़ उठाये थी और वो उसमें अपनी अंगुली फ़ंसाये हुये था। अब तो कविता की कमर और आशू की कमर बराबरी से चल रही थी। मस्त चुदाई का माहौल बना हुआ था। तीनों नशे में झूम रहे थे। कविता तो जबरदस्त चुदाई मांग रही थी,

"आशू, प्लीज ! मुझे जोर से चोदो ना...आशू ने रुपा को एक तरफ़ किया और अपनी पोजिशन को फिर से सेट की और उसके पांव खींच कर पलंग के किनारे कर दिया और खुद खड़े हो कर पोजीशन बना ली। अब उसका लण्ड उसकी चूत के बिल्कुल सामने था।

"तो कविता रानी, चूत फ़ाड़ चुदाई के लिये तैयार हो...?"

"हां जी... अब देर ना लगाओ ... मेरी तो अब फ़ाड़ दो आशू राजा !" "लगता है पहले से मस्त चुदी चुदाई हो...!"

"आशू जी। आप भी तो मस्त चोदते हो ना... पुराने खिलाड़ी हो ना।" तीनों ही हंस दिये। आशू ने अपना लण्ड पहले तो अपना लण्ड भीतर घुसा कर सेट कर लिया, फिर बोला,"हां जी... तैयार हो जाओ..." और कहते हुए उसने पूरा लण्ड निकाल कर पूरा ही जोर से धक्के के साथ घुसा डाला। कविता के मुख से खुशी की एक तेज चीख निकल गई। जल्दी ही दूसरा धक्का लगा जो जड़ तक चीर गया। फिर धक्के पर धक्के भीतर तक, चूत को फ़ाड़ देने वाले धक्के चलने लगे। कविता तेज धक्कों से प्रसन्न हो उठी। और उसे और तेज धक्कों के लिये प्रोत्साहित करने लगी। उसके मुख से आनन्द भरी चीखें वातावरण को और वासनामय बना रही थी। अब तो कविता के चूतड़ भी उछल उछल कर लण्ड भीतर तक लेकर चुदवा रहे थे। दोनों के दिल की धड़कनें तेज हो गई थी। पसीना छलक उठा था। रूपा दोनों का इस प्रकार का रूप देख कर विचलित हो रही थी और सोच रही थी कि आशू ने मेरी चुदाई तो कभी भी इस तरह से नहीं की थी। वो मन ही मन जल उठी। तभी एक तेज चीख ने रूपा का ध्यान भंग कर दिया। कविता झड़ रही थी। उसका यौवन रस निकल पड़ा था। कविता अपना यौवन रस अपनी चूत लण्ड पर दबा कर निकाल रही थी। आशू को लगा जैसे कि कविता की चूत ढीली पड़ गई थी, उसमें पानी भरा हुआ था और लण्ड अब फ़च फ़च की आवाज कर रहा था। तभी रूपा ने अपने आप को आशू के सामने पेश कर दिया...
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"उसका काम तो हो गया, आशू जी, मेरी ओर तो देखो, यहाँ तो आपको फिर से बेकरार एक चूत मिलेगी... उठो और मेरे से चिपक जाओ !" रूपा ने अपनी चूत  का गुलाबी छेद अपने दोनों हाथों से चौड़ा कर के आशू को दिखाते हुए कहा
यह दृश्य देख कर आशू ने अपना कड़कता लण्ड कविता की चूत से बाहर लिया  जो कि रस से नहाया हुआ था। कविता बिस्तर पर ही लोट लगा कर एक किनारे हो गई और रूपा को चुदने के लिये जगह दे दी। कुछ ही पलों में आशू का लण्ड रूपा की चूत में घुस चुका था। इस बार रुपा की बारी थी सिसकारी भरने की। पर आशू तो कविता को ही चोद कर झड़ने के करीब आ चुका था, सो रुपा को चोदते हुये कुछ देर में अपने आप को सम्हाल ना पाया और अपना वीर्य छोड़ने लगा। दोनों ही अब आशू से लिपट पड़ी और उसे अपने चुम्बनों से बेहाल कर  दिया। कविता तो आशू का लण्ड मुँह में भर कर बचा खुचा वीर्य भी चट गई। रूपा और कविता भी आपस में लिपट कर एक दूसरे को प्यार करने लगी......

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