मेरी भाभी जिनका नाम रैना है, गजब की खूबसूरत हैं, खूब गोरी रंगत जैसे सफ़ेद मक्खन में एक चुटकी सिंदूर मिला दिया गया हो। करीब पाँच फुट छः इंच की लम्बाई, सुडौल छरहरा जिस्म, बड़ी-२ कजरारी आँखें, गोल चेहरा, थोड़े मोटे मगर रसभरे होंठ, बिल्कुल दिव्या भारती की तरह दिखने में ! सीने पर जब दो बड़े-2 यौवन कलश लेकर चलती तो लगता था उसके कमर के नीचे भी दो अमृत-घट थिरक रहे हैं।
मैं अक्सर उन्हें ललचाई नजरों से देखता रहता था पर चूंकि पारिवारिक संस्कार मुझ पर हावी थे इसलिए मैं कुछ करने की हिम्मत नहीं जुटा पाता था। भाभी की तरफ से भी कभी कोई वैसा इशारा नहीं मिला था। हालाँकि हमारे बीच हल्का-फुल्का मजाक जरूर चलता था पर कभी शालीनता की सीमा नहीं लाँघता था।
अक्सर रात को भैया-भाभी के कमरे से उनके प्यार की फुसफुसाहट और कभी कभी आह...उह... की आवाज भी आती रहती थी। जिसे सुन कर मेरा दिल जोर जोर से धड़कने लगता था और मैं सोचने लगता था कि मेरी बारी कब आएगी। बस मैं आत्म-हस्त-बल के द्वारा खुद को शांत कर लेता था।
कई महीने यूँ ही गुजर गए।
फिर एक दिन मेरे भाग्य का सितारा भी चमका।
भाभी की छोटी बहन नैना जो उनसे सिर्फ दो साल छोटी है और दिखने में वो भी भाभी से बीस ही है उन्नीस नहीं। बल्कि स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से नैना कुछ ज्यादा ही गदराई हुई है। नैना का बी.ए. फ़ाइनल इयर का एक्जाम था और सेंटर भी मुजफ्फरपुर ही था। भाभी के पापा ने जो सपरिवार कानपुर में रहते थे, फोन किया कि नैना सवतंत्रता सेनानी एक्सप्रेस से आ रही है, रिसीव कर लेना।
दरअसल वो लोग भी मुजफ्फरपुर के ही रहने वाले हैं सिर्फ नौकरी के कारण कानपुर में रह रहे हैं। नैना भी मुजफ्फरपुर के कालेज में ही पढ़ती थी, पर कालेज में क्लास कम ही किया करती थी। भैया भी ट्रेनिंग के सिलसिले में पन्द्रह दिनों के लिए पटना गए हुए थे।
तो मैंने भाभी से कहा- मैं तो स्टेशन पर ही रहूँगा। तीन बजे तक तो मेरी ड्यूटी ही है और गाड़ी का समय भी साढ़े-तीन या चार बजे तक है तो मैं नैना को लेकर घर आ जाऊँगा। जब ड्यूटी समाप्त करके मैं बाहर निकला और गाड़ी का पता किया तो पता चला कि गाड़ी सात बजे तक आएगी। मैं यूँही अपने सहकर्मियों से बातचीत करके समय बिताने लगा। साढ़े छः बजे के आसपास जोरों की बारिश होने लगी। मैंने घर पर भाभी को फोन करके गाड़ी लेट होने की सूचना दे दी।
सवा सात के करीब गाड़ी आई। फिरोजी रंग के सलवार-सूट में तो वो गजब ढा रही थी। मैंने उसे विश किया तो उसने भी मुस्कुराकर जवाब दिया। एक बड़ा सा एयर-बैग था उसके पास। बारिश अभी भी हो रही थी पर बहुत धीमे-धीमे, बिल्कुल फुहारे की तरह। मैंने अपनी बाइक निकाली और उसे पीछे बैठा लिया। बैग को उसने बीच में अपनी जाँघों पर रख लिया था। बैग इतना बड़ा था कि उसे बैठने में असुविधा हो रही थी। उसका लगभग आधा तशरीफ़* बैक-लाईट के ऊपर आ गया था। दोस्तों आप तशरीफ़ का मतलब नहीं समझे ना। जब आपके घर कोई गेस्ट आते हैं तो क्या आप सोफे की ओर इशारा करके उनसे नहीं कहते हैं- यहाँ तशरीफ़ रखिये।
अब तो समझ गए ना?
स्टेशन से बाहर निकलते-निकलते उसे लगा कि वो इस तरह नहीं जा पायेगी। तो उसने मुझे रोका और बैग को फिर से एडजस्ट करने लगी।
मैंने उसे कहा- तुम आगे बैठ जाओ और बैग को पीछे रख लो। मेरे पास हुक वाला रबड़ का बेल्ट है उससे बैग बांध देता हूँ।
वो कुछ झिझकते हुए उतरी। मैंने उस बैग को रबड़ के बेल्ट से बांध दिया। बैग का आकार इतना बड़ा था कि मेरे बैठने के बाद नैना को बैठने के लिए बहुत कम जगह बची। वो बड़े असमंजस की स्थिति में आ गई। मैं उसकी हिकिचाहट को देखते हुए खुद थोड़ा और टंकी की तरफ खिसक गया और उसे बैठने का इशारा किया। वो भी कोई और उपाय ना देख किसी तरह बैठ गई।
उसका शरीर मेरे शरीर से बिल्कुल चिपक गया। इतनी देर में हमारे कपड़े भी लगभग भीग से गए थे, वो यथासंभव कोशिश कर रही थी कि उसके उरोज मेरे पीठ में ना सटें पर जगह की कमी और मोटरसाइकिल के हिचकोले उसके इस अभियान में सतत व्यवधान डाल रहे थे। रह-रह कर उसके यौवन कपोत मेरे पीठ पर चोंच मार बैठते थे।
बारिश की ठण्ड और यौवन की गर्मी आपस में प्रतिक्रिया करके कामविद्युत की तरंगें हम दोनों के शरीर में प्रवाहित करने लगी। उसके शरीर में कंपन सा होने लगा।
मैंने पूछा- "क्या ठण्ड ज्यादा लग रही है?
उसने कहा- "हाँ, मैं तो पूरी भीग गई हूँ।
किसी तरह हम दोनों अपने सुलगते जज्बातों पर काबू पाते हुए घर पहुँचे। वैसे यह मेरा सिर्फ अनुमान ही है कि नैना भी सुलग रही होगी क्योंकि यह उम्र ही ऐसी होती है।
घर पहुंच कर हमने कपड़े बदले और गरमागरम चाय पी। फिर हम लोग सामान्य हो गए और अपने-अपने काम में लग गए। लेकिन मैं सामान्य नहीं रह सका, देर रात तक नींद नहीं आई, जैसे आँखों में उसका रूप और जिस्म बस गया हो।
अब तो उसे परीक्षा भवन तक भी मैं ही अपने बाइक से ले जाता था। पर वो हमेशा इस बात का ख़याल रखती थी कि बाइक पर उसका जिस्म मेरे शरीर से ना टकराए या कम से कम टकराए। पर धीरे-धीरे वो खुलने लगी।
उसका दो पेपर हो चुके थे पर मेरे दिल की बात दिल में ही थी। चार दिन बाद आज उसका तीसरा पेपर था। मैंने सोचा कि आज तो हिम्मत कर लेना चाहिए।
पेपर के बाद मैंने उसे कहा- क्यूँ ना आज कहीं घूमा जाए?
उसने सहमति में सिर हिला दिया। मैं उसे लेकर जुब्बा साहनी पार्क चला गया। पार्क घूमने के दरम्यान हमारे शरीर यदा-कदा छू जाया करते थे। वो भी शायद इस छुअन को समझती थी और आनन्द ले रही थी। क्योंकि हर छुअन के बाद वो मेरी ओर देखकर मुस्कुरा देती थी। और जैसे ही मैं उसकी ओर देखता था वो नजरें झुका लेती थी।
थोड़ी देर घूमने के बाद उसने कहा- विपुल जी, चलिये कहीं कॉफी पीते हैं।
फिर हम लोग एक रेस्टोरेन्ट में आ गए। मैं जान-बूझकर फैमिली केबिन की ओर चला गया। उसने भी कोई एतराज नहीं किया। शायद उसे भी मेरे साथ एकांत चाहिए था। वहाँ हमने डोसा का ऑर्डर दे दिया। बैरा के जाने के बाद नैना ने टेबल पर रखे हुए मेरे हाथ को पकड़ लिया और जोर से भींच दिया। मैंने उसकी ओर प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा तो वो काँप रही थी।
मैंने भी अपना दूसरा हाथ उसके हाथ पर रख दिया।
कुछ देर बाद जब उसका कंपन कम हुआ तो मैंने पूछा- क्या हुआ?
उसने कहा- सॉरी, आप मुझे बुरा मत समझिएगा। पर कई दिनों से आपके साथ रहकर आज मैं खुद को रोक नहीं पाई।
इतना कहकर उसने मेरे हाथ को चूम लिया। यह शायद उसका सिग्नल था कि अब आगे बढ़ो। मैंने भी उसके चेहरे को अपनी हथेली में भर लिया और अपने आतुर होंठों को उसे प्यासे होठों पर रखकर चूम लिया। तब तक हमारा ऑर्डर सर्व हो गया।
फिर हम लोगों ने खुद को संयत किया और डोसा खाया और कॉफी पीकर घर आ गए।
अब घर में भी जब भी हम अकेले होते तो एक-दूसरे को चूम लेते थे। मैं कभी कभी भद्दे मजाक भी कर लेता था। हम एक दूसरे के नाजुक अंगों पर हाथ भी फेर लिया करते थे। पर इससे आगे की गतिविधियों के लिए कोई सही मौका नहीं मिल रहा था हमें।
पर कहते हैं न कि ऊपर वाले के यहाँ देर है अंधेर नहीं, दो दिन बाद की भैया के किसी सहकर्मी के यहाँ किसी फंक्शन में भैया-भाभी को जाना था। ऑफिस से आने के बाद भैया भाभी करीब सात बजे मेरी ही बाइक से चले गए क्यूंकि भैया ने अभी तक अपनी बाइक नहीं खरीदी थी। नैना रसोई में खाना बना रही थी। मैं सीधा रसोई में ही चला गया और उसे पीछे से बाँहों में लेकर उसे गर्दन पर चूमने लगा, वो भी बेहाल होने लगी।
पर मुझे अलग कर उसने कहा- खाना तो बना लूँ, भूखे ही सोना है क्या?
फिर मैं बैठक में आकर टीवी देखने लगा। करीब पैंतालीस मिनट के बाद वो प्लेट में मेरे लिए खाना निकाल कर लाई और मुझे खाने को कहा। मैंने उसे भी साथ में ही खाने का आग्रह किया। फिर हमने साथ में खाना खाया। फिर मैं अपने बेडरूम में चला गया और वो जूठे बर्तन लेकर चली गई।
थोड़ी देर बाद वो एक गिलास में दूध लेकर आई और अपने हाथों से मुझे पिलाने लगी।
मैंने उसे छेड़ते हुए कहा- क्या बात है, सुहागरात की पूरी रस्म निभा रही हो?
इस पर वो भी मुस्कुराते हुए बोली- मैं रस्म नहीं निभा रही, मैं तो इसलिए दूध पीला रही हूँ कि आप मुझे कुछ कमजोर से लग रहे हैं। क्या पता आप बीच में ही हार मान लें और मैं तड़पती ही रह जाऊँ?
उसके इस कथन में आमंत्रण और चैलेंज का मिलाजुला भाव था। मैं तो दंग रहा गया सुनकर। मैं क्या जवाब दूँ इस उलझन में ही था कि वो मेरे करीब आ गई और मेरे होठों को चूमने लगी। मैंने भी उसे अपने आलिंगन में लपेट लिया चुम्बन.. प्रतिचुम्बन...
फिर कब हमारे कपड़े हमारे शरीर से अलग हुए, यह पता भी नहीं चला। हम दोनों ही पूर्णतः वस्त्रविहीन हो गए। मेरे हाथ उसके संपूर्ण कोमल गात को सहला रहे थे और नैना के हाथ भी मेरे लिंग को सहला रहे थे।
अचानक उसने नीचे बैठकर गप्प से मेरे लिंग को अपने मुँह में ले लिया और चूसने और चूमने लगी। मेरा पूरा शरीर तरंगित होने लगा।
फिर हम लोग बिस्तर पर आ गए। मेरे हाथ भी उसके उरोजों को मसलने में लगे थे। वो मेरा सिर पकड़कर अपने सीने के पास ले आई। उसका अभिप्राय समझ गया था। मैं उसके एक उरोज को मुँह में लेकर चुभलाने लगा। नैना ने मेरा एक हाथ पकड़कर अपने दूसरे उरोज पर रख दिया। मैं हाथ से दूसरे उरोज के निप्पल को मसलने लगा।
फिर उसने मेरे सिर को नीचे की ओर दबाया। मैं भी अब उसके योनि के पास आ गया। क्या खूबसूरत योनि थी उसकी, एकदम गुलाबी, बाल-रहित, चिकनी, मुलायम, गद्देदार, लगभग एक अंगुल का चीरा।
मुझसे रहा नहीं गया, मैंने उसकी योनि को चूम लिया। फिर उसकी दोनों फांकों को अलग करके देखा, अंदर एकदम लाल-लाल।
मैंने अपनी जीभ घुसेड़ दी, वो चिहुँक गई। मैं लपालप जीभ को अंदर-बाहर करने लगा। कुछ ही देर में उसने मेरे सिर को अपने योनि पर दबाने लगी और उसके योनि से लिसलिसा सा पानी निकल आया।
अब नैना मुझे ऊपर की ओर खींचने लगी। ऊपर आकर मैंने फिर उसके होंठों को चूम लिया। उसके योनि पर मेरा लिंग टकरा रहा था। उसने अपने हाथों से मेरा लिंग पकड़ कर अपनी योनि द्वार पर सेट किया और मुझे इशारा लिया। मैंने हल्का सा दवाब दिया। चूंकि उसकी योनि पूरी गीली हो चुकी थी अतः मेरे लिंग का अग्रभाग फक्क से उसकी योनि में घुस गया। उसके चेहरे पर हलकी सी पीड़ा उभर आई।
मैंने पूछा- क्या दर्द ज्यादा हो रहा है?
उसने कहा- होने दो, पहली बार है तो दर्द तो होगा ही ना। मैं बर्दाश्त कर लूंगी।
मैं उसके होठों को चूमने लगा। मैं फिर अपने लिंग को थोड़ा सा बाहर निकालकर एक जोरदार धक्का लगाया और मेरा पूरा लिंग एक बार में ही घुप्प से उसके योनि में धँसा और हम दोनों की साम्प्रदायिकता धर्मनिरपेक्षता में बदल गई।
नैना ने अपने होंठ भींच लिए और सिर इधर-उधर करने लगी और साथ ही पैर भी पटकने लगी। पर उसके मुँह से आवाज नहीं निकली, उसने अपने दर्द को जज्ब कर लिया।उसके आँखों से आँसू निकलने लगे। मेरे लिंग में भी काफी तेज दर्द का अनुभव हुआ। पर नैना के दर्द को देखकर मैं घबरा गया। मैं अपना लिंग निकालने लगा पर नैना ने अपने दोनों पैरों से मेरी कमर को जकड़ लिया और बोली- अरे निकालो मत, इसी के लिए तो मैं तड़प रही थी।
और फिर उसने मेरे होंठों को चूम लिया।
फिर वो मुस्कुराते हुए बोली- तुम तो पूरे मर्द निकले, एक बार में ही किला फतह कर लिया।
कुछ देर के बाद उसने नीचे से अपनी कमर उचकाई तो मुझे लगा कि अब वो धक्के के लिए तैयार है। मैं धक्का लगाने लगा। उसकी कसी हुई योनि में मेरे लिंग का घर्षण अपूर्व आनन्द उत्पन्न कर रहा था। किसी ने सही कहा है कि दुनिया का सारा सुख एक तरफ और सम्भोग सुख एक तरफ।
करीब दस-बारह मिनट तक मैं धक्के मारता रहा। अचानक नैना का शरीर अकड़ने लगा और उसने मुझे कसकर जकड़ लिया। और इसके साथ ही लगा जैसे मेरे लिंग पर रस की बरसात हो गई।
फिर नैना का शरीर ढीला पड़ गया। पर मेरे धक्के लगातार चलते रहे।
कुछ देर बाद वो फिर स्खलित हो गई। अब लगता है वो कुछ थक सी गई थी। क्यूंकि उसने नीचे से कमर उचकाना बंद कर दिया।
मैं भी रुक गया और पूछा- क्या हुआ, थक गई क्या?
उसने भी मुस्कुरा कर कहा- हाँ, एक शेर से जो पाला पड़ा है।
मैंने उसे चूम लिया और उसी अवस्था में उसके उरोजों को चूसने लगा। कुछ देर चूसने के बाद जैसे फिर से उसमें उन्माद आ गया। वो फिर से कमर उचकाने लगी। मैंने भी धक्के लगाना शुरू किया। उसके दो-दो बार रसवर्षा के कारण योनि में इतना रस भर गया था कि हर धक्के से फच्च...फच्च.... का मादक संगीत कमरे में गूंजने लगा।
करीब बीस धक्कों के बाद मेरे लिंग में भी सुरसुराहट होने लगी, मैंने पूछा- नैना मैं भी छूटने वाला हूँ, बताओ कहाँ निकालूँ?
उसने जवाब दिया- मैं भी छूट रही हूँ मेरी जान, मेरे अंदर ही निकालो और मेरी प्यास बुझा दो। कल सुबह दवा ला देना, मै खा लूंगी।
उसके ऐसा कहते ही मेरे लिंग ने भी पिचकारी चलानी शुरू कर दी। पिचकारी चलते ही उसने अपनी योनि को इस तरह सिकोड़ लिया कि लगा जैसे मेरे लिंग को तोड़कर अपने अंदर सदा के लिए रख लेना चाहती हो।
पूर्ण स्खलन के बाद कुछ देर तक मैं भी नैना के ऊपर ही लेटा रहा। फिर मेरा लिंग समर्पण की मुद्रा में उसकी योनि से बाहर आ गया। तो मैं भी उसके ऊपर से हट गया।
उसने फिर मुझे चूम लिया और कहा- तुमने मुझे आज असीम सुख दिया है। मैं नहीं जानती थी कि सम्भोग में इतना आनन्द मिलता है। क्या एक बार और करें?
मैंने घड़ी देखी। रात के साढ़े बारह बज रहे थे। भैया-भाभी के आने का समय हो रहा था, मैंने उसे समझाया- अभी तो तुम हो कुछ दिन। फिर कभी मौका देख कर कर लेंगे। अब रिस्क है।
मैं अक्सर उन्हें ललचाई नजरों से देखता रहता था पर चूंकि पारिवारिक संस्कार मुझ पर हावी थे इसलिए मैं कुछ करने की हिम्मत नहीं जुटा पाता था। भाभी की तरफ से भी कभी कोई वैसा इशारा नहीं मिला था। हालाँकि हमारे बीच हल्का-फुल्का मजाक जरूर चलता था पर कभी शालीनता की सीमा नहीं लाँघता था।
अक्सर रात को भैया-भाभी के कमरे से उनके प्यार की फुसफुसाहट और कभी कभी आह...उह... की आवाज भी आती रहती थी। जिसे सुन कर मेरा दिल जोर जोर से धड़कने लगता था और मैं सोचने लगता था कि मेरी बारी कब आएगी। बस मैं आत्म-हस्त-बल के द्वारा खुद को शांत कर लेता था।
कई महीने यूँ ही गुजर गए।
फिर एक दिन मेरे भाग्य का सितारा भी चमका।
भाभी की छोटी बहन नैना जो उनसे सिर्फ दो साल छोटी है और दिखने में वो भी भाभी से बीस ही है उन्नीस नहीं। बल्कि स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से नैना कुछ ज्यादा ही गदराई हुई है। नैना का बी.ए. फ़ाइनल इयर का एक्जाम था और सेंटर भी मुजफ्फरपुर ही था। भाभी के पापा ने जो सपरिवार कानपुर में रहते थे, फोन किया कि नैना सवतंत्रता सेनानी एक्सप्रेस से आ रही है, रिसीव कर लेना।
दरअसल वो लोग भी मुजफ्फरपुर के ही रहने वाले हैं सिर्फ नौकरी के कारण कानपुर में रह रहे हैं। नैना भी मुजफ्फरपुर के कालेज में ही पढ़ती थी, पर कालेज में क्लास कम ही किया करती थी। भैया भी ट्रेनिंग के सिलसिले में पन्द्रह दिनों के लिए पटना गए हुए थे।
तो मैंने भाभी से कहा- मैं तो स्टेशन पर ही रहूँगा। तीन बजे तक तो मेरी ड्यूटी ही है और गाड़ी का समय भी साढ़े-तीन या चार बजे तक है तो मैं नैना को लेकर घर आ जाऊँगा। जब ड्यूटी समाप्त करके मैं बाहर निकला और गाड़ी का पता किया तो पता चला कि गाड़ी सात बजे तक आएगी। मैं यूँही अपने सहकर्मियों से बातचीत करके समय बिताने लगा। साढ़े छः बजे के आसपास जोरों की बारिश होने लगी। मैंने घर पर भाभी को फोन करके गाड़ी लेट होने की सूचना दे दी।
सवा सात के करीब गाड़ी आई। फिरोजी रंग के सलवार-सूट में तो वो गजब ढा रही थी। मैंने उसे विश किया तो उसने भी मुस्कुराकर जवाब दिया। एक बड़ा सा एयर-बैग था उसके पास। बारिश अभी भी हो रही थी पर बहुत धीमे-धीमे, बिल्कुल फुहारे की तरह। मैंने अपनी बाइक निकाली और उसे पीछे बैठा लिया। बैग को उसने बीच में अपनी जाँघों पर रख लिया था। बैग इतना बड़ा था कि उसे बैठने में असुविधा हो रही थी। उसका लगभग आधा तशरीफ़* बैक-लाईट के ऊपर आ गया था। दोस्तों आप तशरीफ़ का मतलब नहीं समझे ना। जब आपके घर कोई गेस्ट आते हैं तो क्या आप सोफे की ओर इशारा करके उनसे नहीं कहते हैं- यहाँ तशरीफ़ रखिये।
अब तो समझ गए ना?
स्टेशन से बाहर निकलते-निकलते उसे लगा कि वो इस तरह नहीं जा पायेगी। तो उसने मुझे रोका और बैग को फिर से एडजस्ट करने लगी।
मैंने उसे कहा- तुम आगे बैठ जाओ और बैग को पीछे रख लो। मेरे पास हुक वाला रबड़ का बेल्ट है उससे बैग बांध देता हूँ।
वो कुछ झिझकते हुए उतरी। मैंने उस बैग को रबड़ के बेल्ट से बांध दिया। बैग का आकार इतना बड़ा था कि मेरे बैठने के बाद नैना को बैठने के लिए बहुत कम जगह बची। वो बड़े असमंजस की स्थिति में आ गई। मैं उसकी हिकिचाहट को देखते हुए खुद थोड़ा और टंकी की तरफ खिसक गया और उसे बैठने का इशारा किया। वो भी कोई और उपाय ना देख किसी तरह बैठ गई।
उसका शरीर मेरे शरीर से बिल्कुल चिपक गया। इतनी देर में हमारे कपड़े भी लगभग भीग से गए थे, वो यथासंभव कोशिश कर रही थी कि उसके उरोज मेरे पीठ में ना सटें पर जगह की कमी और मोटरसाइकिल के हिचकोले उसके इस अभियान में सतत व्यवधान डाल रहे थे। रह-रह कर उसके यौवन कपोत मेरे पीठ पर चोंच मार बैठते थे।
बारिश की ठण्ड और यौवन की गर्मी आपस में प्रतिक्रिया करके कामविद्युत की तरंगें हम दोनों के शरीर में प्रवाहित करने लगी। उसके शरीर में कंपन सा होने लगा।
मैंने पूछा- "क्या ठण्ड ज्यादा लग रही है?
उसने कहा- "हाँ, मैं तो पूरी भीग गई हूँ।
किसी तरह हम दोनों अपने सुलगते जज्बातों पर काबू पाते हुए घर पहुँचे। वैसे यह मेरा सिर्फ अनुमान ही है कि नैना भी सुलग रही होगी क्योंकि यह उम्र ही ऐसी होती है।
घर पहुंच कर हमने कपड़े बदले और गरमागरम चाय पी। फिर हम लोग सामान्य हो गए और अपने-अपने काम में लग गए। लेकिन मैं सामान्य नहीं रह सका, देर रात तक नींद नहीं आई, जैसे आँखों में उसका रूप और जिस्म बस गया हो।
अब तो उसे परीक्षा भवन तक भी मैं ही अपने बाइक से ले जाता था। पर वो हमेशा इस बात का ख़याल रखती थी कि बाइक पर उसका जिस्म मेरे शरीर से ना टकराए या कम से कम टकराए। पर धीरे-धीरे वो खुलने लगी।
उसका दो पेपर हो चुके थे पर मेरे दिल की बात दिल में ही थी। चार दिन बाद आज उसका तीसरा पेपर था। मैंने सोचा कि आज तो हिम्मत कर लेना चाहिए।
पेपर के बाद मैंने उसे कहा- क्यूँ ना आज कहीं घूमा जाए?
उसने सहमति में सिर हिला दिया। मैं उसे लेकर जुब्बा साहनी पार्क चला गया। पार्क घूमने के दरम्यान हमारे शरीर यदा-कदा छू जाया करते थे। वो भी शायद इस छुअन को समझती थी और आनन्द ले रही थी। क्योंकि हर छुअन के बाद वो मेरी ओर देखकर मुस्कुरा देती थी। और जैसे ही मैं उसकी ओर देखता था वो नजरें झुका लेती थी।
थोड़ी देर घूमने के बाद उसने कहा- विपुल जी, चलिये कहीं कॉफी पीते हैं।
फिर हम लोग एक रेस्टोरेन्ट में आ गए। मैं जान-बूझकर फैमिली केबिन की ओर चला गया। उसने भी कोई एतराज नहीं किया। शायद उसे भी मेरे साथ एकांत चाहिए था। वहाँ हमने डोसा का ऑर्डर दे दिया। बैरा के जाने के बाद नैना ने टेबल पर रखे हुए मेरे हाथ को पकड़ लिया और जोर से भींच दिया। मैंने उसकी ओर प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा तो वो काँप रही थी।
मैंने भी अपना दूसरा हाथ उसके हाथ पर रख दिया।
कुछ देर बाद जब उसका कंपन कम हुआ तो मैंने पूछा- क्या हुआ?
उसने कहा- सॉरी, आप मुझे बुरा मत समझिएगा। पर कई दिनों से आपके साथ रहकर आज मैं खुद को रोक नहीं पाई।
इतना कहकर उसने मेरे हाथ को चूम लिया। यह शायद उसका सिग्नल था कि अब आगे बढ़ो। मैंने भी उसके चेहरे को अपनी हथेली में भर लिया और अपने आतुर होंठों को उसे प्यासे होठों पर रखकर चूम लिया। तब तक हमारा ऑर्डर सर्व हो गया।
फिर हम लोगों ने खुद को संयत किया और डोसा खाया और कॉफी पीकर घर आ गए।
अब घर में भी जब भी हम अकेले होते तो एक-दूसरे को चूम लेते थे। मैं कभी कभी भद्दे मजाक भी कर लेता था। हम एक दूसरे के नाजुक अंगों पर हाथ भी फेर लिया करते थे। पर इससे आगे की गतिविधियों के लिए कोई सही मौका नहीं मिल रहा था हमें।
पर कहते हैं न कि ऊपर वाले के यहाँ देर है अंधेर नहीं, दो दिन बाद की भैया के किसी सहकर्मी के यहाँ किसी फंक्शन में भैया-भाभी को जाना था। ऑफिस से आने के बाद भैया भाभी करीब सात बजे मेरी ही बाइक से चले गए क्यूंकि भैया ने अभी तक अपनी बाइक नहीं खरीदी थी। नैना रसोई में खाना बना रही थी। मैं सीधा रसोई में ही चला गया और उसे पीछे से बाँहों में लेकर उसे गर्दन पर चूमने लगा, वो भी बेहाल होने लगी।
पर मुझे अलग कर उसने कहा- खाना तो बना लूँ, भूखे ही सोना है क्या?
फिर मैं बैठक में आकर टीवी देखने लगा। करीब पैंतालीस मिनट के बाद वो प्लेट में मेरे लिए खाना निकाल कर लाई और मुझे खाने को कहा। मैंने उसे भी साथ में ही खाने का आग्रह किया। फिर हमने साथ में खाना खाया। फिर मैं अपने बेडरूम में चला गया और वो जूठे बर्तन लेकर चली गई।
थोड़ी देर बाद वो एक गिलास में दूध लेकर आई और अपने हाथों से मुझे पिलाने लगी।
मैंने उसे छेड़ते हुए कहा- क्या बात है, सुहागरात की पूरी रस्म निभा रही हो?
इस पर वो भी मुस्कुराते हुए बोली- मैं रस्म नहीं निभा रही, मैं तो इसलिए दूध पीला रही हूँ कि आप मुझे कुछ कमजोर से लग रहे हैं। क्या पता आप बीच में ही हार मान लें और मैं तड़पती ही रह जाऊँ?
उसके इस कथन में आमंत्रण और चैलेंज का मिलाजुला भाव था। मैं तो दंग रहा गया सुनकर। मैं क्या जवाब दूँ इस उलझन में ही था कि वो मेरे करीब आ गई और मेरे होठों को चूमने लगी। मैंने भी उसे अपने आलिंगन में लपेट लिया चुम्बन.. प्रतिचुम्बन...
फिर कब हमारे कपड़े हमारे शरीर से अलग हुए, यह पता भी नहीं चला। हम दोनों ही पूर्णतः वस्त्रविहीन हो गए। मेरे हाथ उसके संपूर्ण कोमल गात को सहला रहे थे और नैना के हाथ भी मेरे लिंग को सहला रहे थे।
अचानक उसने नीचे बैठकर गप्प से मेरे लिंग को अपने मुँह में ले लिया और चूसने और चूमने लगी। मेरा पूरा शरीर तरंगित होने लगा।
फिर हम लोग बिस्तर पर आ गए। मेरे हाथ भी उसके उरोजों को मसलने में लगे थे। वो मेरा सिर पकड़कर अपने सीने के पास ले आई। उसका अभिप्राय समझ गया था। मैं उसके एक उरोज को मुँह में लेकर चुभलाने लगा। नैना ने मेरा एक हाथ पकड़कर अपने दूसरे उरोज पर रख दिया। मैं हाथ से दूसरे उरोज के निप्पल को मसलने लगा।
फिर उसने मेरे सिर को नीचे की ओर दबाया। मैं भी अब उसके योनि के पास आ गया। क्या खूबसूरत योनि थी उसकी, एकदम गुलाबी, बाल-रहित, चिकनी, मुलायम, गद्देदार, लगभग एक अंगुल का चीरा।
मुझसे रहा नहीं गया, मैंने उसकी योनि को चूम लिया। फिर उसकी दोनों फांकों को अलग करके देखा, अंदर एकदम लाल-लाल।
मैंने अपनी जीभ घुसेड़ दी, वो चिहुँक गई। मैं लपालप जीभ को अंदर-बाहर करने लगा। कुछ ही देर में उसने मेरे सिर को अपने योनि पर दबाने लगी और उसके योनि से लिसलिसा सा पानी निकल आया।
अब नैना मुझे ऊपर की ओर खींचने लगी। ऊपर आकर मैंने फिर उसके होंठों को चूम लिया। उसके योनि पर मेरा लिंग टकरा रहा था। उसने अपने हाथों से मेरा लिंग पकड़ कर अपनी योनि द्वार पर सेट किया और मुझे इशारा लिया। मैंने हल्का सा दवाब दिया। चूंकि उसकी योनि पूरी गीली हो चुकी थी अतः मेरे लिंग का अग्रभाग फक्क से उसकी योनि में घुस गया। उसके चेहरे पर हलकी सी पीड़ा उभर आई।
मैंने पूछा- क्या दर्द ज्यादा हो रहा है?
उसने कहा- होने दो, पहली बार है तो दर्द तो होगा ही ना। मैं बर्दाश्त कर लूंगी।
मैं उसके होठों को चूमने लगा। मैं फिर अपने लिंग को थोड़ा सा बाहर निकालकर एक जोरदार धक्का लगाया और मेरा पूरा लिंग एक बार में ही घुप्प से उसके योनि में धँसा और हम दोनों की साम्प्रदायिकता धर्मनिरपेक्षता में बदल गई।
नैना ने अपने होंठ भींच लिए और सिर इधर-उधर करने लगी और साथ ही पैर भी पटकने लगी। पर उसके मुँह से आवाज नहीं निकली, उसने अपने दर्द को जज्ब कर लिया।उसके आँखों से आँसू निकलने लगे। मेरे लिंग में भी काफी तेज दर्द का अनुभव हुआ। पर नैना के दर्द को देखकर मैं घबरा गया। मैं अपना लिंग निकालने लगा पर नैना ने अपने दोनों पैरों से मेरी कमर को जकड़ लिया और बोली- अरे निकालो मत, इसी के लिए तो मैं तड़प रही थी।
और फिर उसने मेरे होंठों को चूम लिया।
फिर वो मुस्कुराते हुए बोली- तुम तो पूरे मर्द निकले, एक बार में ही किला फतह कर लिया।
कुछ देर के बाद उसने नीचे से अपनी कमर उचकाई तो मुझे लगा कि अब वो धक्के के लिए तैयार है। मैं धक्का लगाने लगा। उसकी कसी हुई योनि में मेरे लिंग का घर्षण अपूर्व आनन्द उत्पन्न कर रहा था। किसी ने सही कहा है कि दुनिया का सारा सुख एक तरफ और सम्भोग सुख एक तरफ।
करीब दस-बारह मिनट तक मैं धक्के मारता रहा। अचानक नैना का शरीर अकड़ने लगा और उसने मुझे कसकर जकड़ लिया। और इसके साथ ही लगा जैसे मेरे लिंग पर रस की बरसात हो गई।
फिर नैना का शरीर ढीला पड़ गया। पर मेरे धक्के लगातार चलते रहे।
कुछ देर बाद वो फिर स्खलित हो गई। अब लगता है वो कुछ थक सी गई थी। क्यूंकि उसने नीचे से कमर उचकाना बंद कर दिया।
मैं भी रुक गया और पूछा- क्या हुआ, थक गई क्या?
उसने भी मुस्कुरा कर कहा- हाँ, एक शेर से जो पाला पड़ा है।
मैंने उसे चूम लिया और उसी अवस्था में उसके उरोजों को चूसने लगा। कुछ देर चूसने के बाद जैसे फिर से उसमें उन्माद आ गया। वो फिर से कमर उचकाने लगी। मैंने भी धक्के लगाना शुरू किया। उसके दो-दो बार रसवर्षा के कारण योनि में इतना रस भर गया था कि हर धक्के से फच्च...फच्च.... का मादक संगीत कमरे में गूंजने लगा।
करीब बीस धक्कों के बाद मेरे लिंग में भी सुरसुराहट होने लगी, मैंने पूछा- नैना मैं भी छूटने वाला हूँ, बताओ कहाँ निकालूँ?
उसने जवाब दिया- मैं भी छूट रही हूँ मेरी जान, मेरे अंदर ही निकालो और मेरी प्यास बुझा दो। कल सुबह दवा ला देना, मै खा लूंगी।
उसके ऐसा कहते ही मेरे लिंग ने भी पिचकारी चलानी शुरू कर दी। पिचकारी चलते ही उसने अपनी योनि को इस तरह सिकोड़ लिया कि लगा जैसे मेरे लिंग को तोड़कर अपने अंदर सदा के लिए रख लेना चाहती हो।
पूर्ण स्खलन के बाद कुछ देर तक मैं भी नैना के ऊपर ही लेटा रहा। फिर मेरा लिंग समर्पण की मुद्रा में उसकी योनि से बाहर आ गया। तो मैं भी उसके ऊपर से हट गया।
उसने फिर मुझे चूम लिया और कहा- तुमने मुझे आज असीम सुख दिया है। मैं नहीं जानती थी कि सम्भोग में इतना आनन्द मिलता है। क्या एक बार और करें?
मैंने घड़ी देखी। रात के साढ़े बारह बज रहे थे। भैया-भाभी के आने का समय हो रहा था, मैंने उसे समझाया- अभी तो तुम हो कुछ दिन। फिर कभी मौका देख कर कर लेंगे। अब रिस्क है।
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