मैं सामाजिक कार्य में बहुत रुचि लेती हूँ, सभी लोग मेरी तारीफ़ भी करते हैं। मेरे पति भी मुझसे बहुत खुश रहते हैं, मुझे प्यार भी बहुत करते हैं। चुदाई में तो कभी भी कमी नहीं रखते हैं। पर हाँ उनका लण्ड दूसरों की अपेक्षा छोटा है, यानि राहुल, रोशन, गोवर्धन, गोविन्द के लण्ड से तो छोटा ही है। पर रात को वो मेरी चूत से ले कर गाण्ड तक चोद देते हैं, मुझे भी बहुत आनन्द आता है उनकी इस प्यारी चुदाई से।पर कमबख्त यह विपिन, क्या करूँ इसका ? मेरा दिल हिला कर रख देता है। जी हाँ, यह विपिन मेरे पति का छोटा भाई है, यानि मेरा देवर ... जालिम बहुत बहुत कंटीला है... उसे देख कर मेरा मन डोल जाता है।मेरे पति लगभग आठ बजे ड्यूटी पर चले जाते हैं और फिर छः बजे शाम तक लौटते है। इस बीच मैं उसके बहुत चक्कर लगा लेती हूँ, पर कभी ऐसा कोई मौका ही नहीं आया कि विपिन पर डोरे डाल सकूँ। ना जाने क्यूँ लगता था कि वो जानबूझ कर नखरे कर रहा है।आज सवेरे मेरा दिल तो बस काबू से बाहर हो गया। विपिन बेडमिन्टन खेल कर सुबह आठ बजे आ गया था और आते ही वो बाथरूम में चला गया। उसकी अण्डरवीयर शायद ठीक नहीं थी सो उसने उतार कर पेशाब किया और सिर्फ़ अपनी सफ़ेद निकर को ढीली करके बिस्तर पर लेट गया। मुझे उसका मोटा सा लण्ड का उभार साफ़ नजर आ रहा था। मेरा दिल मचलने लगा था।"विपिन को नाश्ता करा देना, मैं जा रहा हूँ ! आज मैंने दिल्ली जाना है, दोपहर को घर आ जाऊँगा।" मेरे पति ने मुझे आवाज लगाई और अपनी कार स्टार्ट कर दी।मैंने देखा कि विपिन की अंडरवीयर वाशिंग मशीन में पड़ी हुई थी, उसके कमरे में झांक कर देखा तो वो शायद सो गया था। उसे नाश्ता के लिये कहने के लिये मैं कमरे में आ गई। वो तो दूसरी तरफ़ मुख करके खर्राटे भर रहा था। उसकी सफ़ेद निकर ढीली सी नीचे खिसकी हुई थी, और उसके चूतड़ों के ऊपर की दरार नजर आ रही थी।मैंने ज्योंही उसके पांव को हिलाया तो मेरा दिल धक से रह गया। उसकी निकर की चैन पूरी खुल गई और उसका मोटा सा गोरा लण्ड बिस्तर से चिपका हुआ था, उसका लाल सुपाड़ा ठीक से तो नहीं, पर बिस्तर के बीच दबा हुआ थोड़ा सा नजर आ रहा था।मेरे स्पर्श करने पर वो सीधा हो गया, पर नींद में ही था वो। उसके सीधे होते ही उसका लण्ड सीधा खड़ा हुआ, बिलकुल नंगा, मदमस्त सा, सुन्दर, गुलाबी सा जैसे मुझे चिढ़ा रहा हो, मुझे मज़ा आ गया। शर्म से मैंने हाथों से अपना चेहरा छुपा लिया और जाने लगी।कहते हैं ना लालच बुरी बला है ... मन किया कि बस एक बार और और उसे देख लूँ...। मैंने एक बार फिर उसे चुपके से देखा। मेरा मन डोल उठा। मैं मुड़ी और उसके बिस्तर के पास नीचे बैठ गई। विपिन के खराटे पहले जैसे ही थे और वो गहरी नींद में था, शायद बहुत थका हुआ था। मैंने साहस बटोरा और उसके लण्ड को अपनी अंगुलियों से पकड़ लिया। वो शायद में सपने में कुछ गड़बड़ ही कर रहा था।मैं उसके लण्ड को सहलाने लगी, मुठ में भर कर भी देखा, फिर मन का लालच और बढ गया। मैंने तिरछी निगाहों से विपिन को देखा और अपना मुख खोल दिया। उसके सुन्दर से सुपाड़े को मुख में धीरे से भर लिया और उसको चूसने लगी। चूसने से उसे बेचैनी सी हुई। मैंने जल्दी से उसका लण्ड मुख से बाहर निकाल लिया और कमरे से बाहर चली आई।मेरा नियंत्रण अपने आप पर नहीं था, मेरी सांसें उखड़ रही थी। दिल जोर जोर से धड़क रहा था। आँखें बन्द करके और दिल पर हाथ रख कर अपने आप को संयत करने में लगी थी। मैं बार बार दरवाजे की ओट से उसे देख रही थी।विपिन अपने कमरे में नाश्ता कर रहा था ... और कह रहा था,"भाभी, जाने कैसे कैसे सपने आते हैं ... बस मजा आ जाता है !"मेरी नजरें झुक सी गई, कहीं वो सोने का बहाना तो नहीं कर रहा था। पर शायद नहीं ! वो स्वयं ही बोल कर शरमा गया था। मैंने हिम्मत करके अपने सीने पर ब्लाऊज का ऊपर का बटन खोल दिया था, ताकि उसे अपना हुस्न दिखा सकूं।चोरी चोरी वो तिरछी निगाहों से मेरे उभरे हुए स्तनों का आनन्द ले रहा था। उसकी हरकतों से मुझे भी आनन्द आने लगा था। मैंने अपना दिल और कड़ा करके झुक कर अपनी गोलाईयाँ और भी लटका दी। इस बीच मेरे दिल की धड़कन बहुत तेज हो गई थी। पसीना भी आने लगा था।यह कमबख्त जवानी जो करा दे वो भी कम है। मुझे मालूम हो गया था कि मैं उसकी जवानी के रसका आनन्द तो ले सकती हूँ। नाश्ता करके विपिन कॉलेज चला गया। मैं दिन का भोजन बनाने के बाद बिस्तर पर लेटी हुई विपिन के बारे में ही सोच रही थी। उसका मदमस्त गुलाबी, गोरा लण्ड मेरी आँखों के सामने घूमने लगा। मैंने अपनी चूत दबा ली, फिर बस नहीं चला तो अपना पेटीकोट ऊँचा करके चूत को नंगी कर ली और उसे सहलाने लगी।जितना सहलाती उतना ही विपिन का मोटा लण्ड मेरी चूत में घुसता सा लगता और मेरे मुख से एक सिसकारी सी निकल जाती। मैं अपनी यौवनकलिका को हिला हिला कर अपनी उत्तेजना बढ़ाती चली गई और फिर स्खलित हो गई। दोपहर को दो बजे मेरे पति और विपिन दोनों आ चुके थे, फिर मेरे पति दिन की गाड़ी से तीन दिनों के लिये दिल्ली चले गये। उनके दो-तीन दिन के टूर तो होते ही रहते थे। जब वो नहीं रहते थे तब विपिन शाम को खूब शराब पीता था और मस्ती करता था। आज भी शाम को ही वो शराब ले कर आ गया था और सात बजे से ही पीने बैठ गया था। शाम को डिनर के लिये उसने मुझ से पैसे लिये और मुर्गा और तन्दूरी चपाती ले आया था।मुझे वो बार बार बुला कर पीने के कहता था,"भाभी, भैया तो हैं नहीं, चुपके से एक पेग मार लो !" मस्ती में वो मुझे कहता ही रहा।"नहीं देवर जी, मैं नहीं पीती हूँ, आप शौक फ़रमायें !""अरे कौन देखता है, घर में तो अपन दोनों ही है ... ले लो भाभी ... और मस्त हो जाओ !"उसकी बातें मुझे घायल करने लगी, बार-बार के मनुहार से मैं अपने आप को रोक नहीं पाई।"अच्छा ठीक है, पर देखो, अपने भैया को मत बताना...!" मैंने हिचकते हुए कहा।"ओये होये, क्या बात है भाभी ... मजा आ गया इस बात पर... तुसी फिकर ही ना करो जी ... यह देवर भाभी के बीच के बात है..."मैंने गिलास को मुँह से लगाया तो बहुत कड़वी सी और अजीब सी लगी। मैंने विपिन का मन रखने के लिये एक सिप किया और चुपके से नीचे गिरा दी। कुछ ही देर में विपिन तो बहकने लगा और अपने मुख से मेरे लिये गाली निकालने लगा, पर मुझे तो वो गालियाँ भी अत्यन्त सेक्सी लग रही थी।"हिच, मां की लौड़ी, तेरी चूत मारूँ ... चिकनी है भाभी ...!" अब उसकी गालियाँ मुझे बहकाने लगी थी।"ऐ चुप रहो ..." मैंने उसे प्यार से सर पर हाथ फ़ेरते हुये कहा।"यार तेरी चुदी चुदाई भोसड़ी दिखा दे ना... साली को चोदना है !" उसने बहकते हुये कहा। आँखों में लाल वासना के डोरे साफ़ नजर आने लगे थे।"आप सो जाईये अब... बहुत हो गया !""अरे मेरी चिकनी भाभी, मेरा लण्ड तो देख, यह देख... तेरे साथ, तुझे नीचे दबा कर सो जाऊँ मेरी जान !"वो बेशर्म सा होकर, अपनी सुध-बुध खोकर अपना पजामा नीचे सरका कर लण्ड को अपने हाथ में ले कर हिलाने लगा। मुझे बहुत शरम आने लगी, पर उसकी यह मनमोहन हरकत मेरे दिल में बर्छियाँ चला रही थी।मुझे लगा वो टुन्न हो चुका था। मुझे लगा अच्छा मौका है देवर की जवानी देखने का। दिल कर रहा था कि बस लौड़ा अपनी चूत में भर लूँ। उसका पाजामा नीचे गिर चुका था।मैंने उसे सहारा दिया तो उसने मुझे जकड़ लिया और मुझे चूमने की कोशिश करने लगा। उसने अपनी बनियान भी उतार दी, और मस्ती से एक मस्त सांड की तरह झूमने लगा। मुझे पीछे से पकड़ कर अपनी कमर कुत्ते की तरह से हिलाने लगा जैसे कि मुझे वो चोद रहा हो ... मैंने उसे बिस्तर पर लेटा दिया। पर उसने मुझे कस कर अपने नीचे दबा लिया और मेरे भरे हुये और उभरे हुये स्तनों को मसलने लगा।पहले तो मैं नीचे दबी हुई इसका आनन्द उठाने लगी फिर खूब दब चुकी तो देखा कि उसका वीर्य निकल चुका था। मेरा पेटीकोट यहाँ-वहाँ से गीला हो गया था। मैंने उसे अपने ऊपर से उतार दिया और मैं बिस्तर से उतर गई। उसका गोरा लण्ड एक तरफ़ लटक गया था। समय देखा तो लगभग नौ बज रहे थे।मैंने भोजन किया और अपने कमरे में आ कर लेट गई। जो हुआ था अभी उसे सोच-सोच कर आनन्दित हो रही थी, मन बुरी तरह से बहक रहा था।जोश-जोश में मैंने अपना पेटीकोट ऊपर कर लिया और अपनी चूत दबाने लगी। मैं सोच रही रही थी कि यदि मैं देवर जी से चुदा भी लूँ तो किसी को क्या पता चलेगा ? साला टुन्न हो कर चोद भी देगा तो उसे क्या याद रहेगा। बात घर की घर में रहेगी और जब चाहो तब मजे करो।शादी से पहले तो मैं स्वतन्त्र थी, और दोस्तों से खूब चुदवाया करती थी। पर शादी के बाद तो पुराने दोस्त बस एक याद बन कर रह गए थे। इसी उधेड़ बुन में मेरी आँख लग गई और मैं सो गई।अचानक मेरी नींद खुल गई मुझे नीचे कुछ हलचल सी लगी।विपिन कमरे में था और उसने मेरा पेटीकोट ऊपर कर दिया था। मेरी नंगी चूत को बड़ी उत्तेजना से वो देख रहा था। उसका चेहरा मेरी चूत की तरफ़ झुक गया। उसका चेहरा वासना के मारे लाल था। मैंने भी धीरे से टांगे चौड़ी कर ली। तभी एक मीठी सी चूत में टीस उठ गई। विपिन की जीभ मेरी चूत की दरार में लपलपाती सी दौड़ गई। मेरी गीली चूत को उसने चाट कर साफ़ कर दिया। मेरी जांघें कांप गई।उसने नजरें उठा कर मेरी तरफ़ देखा और बोला,"चुदा ले मेरी जान ... लण्ड कड़क हो रहा है...!"अभी शायद वो और पीकर आया था। उसके मुख से शराब का भभका इतनी दूर से भी मेरे नथुनों में घुस गया। उसकी बात सुन कर मेरे शरीर में एक ठण्डी सी लहर दौड़ गई। उसका मुख एक बार फिर से मेरी चूत पर चिपक गया और मेरी चूत में एक वेक्यूम सा हो गया। मुझे लगा यह तो अभी मदहोश है, उसे पता ही नहीं है कि वो क्या कर रहा है। मौका है ! चुदा ही लूँ।उसने भरपूर मेरी चूत को चूसा, मैं गुदगुदी से निहाल हो गई। बरबस ही मुख से निकल पड़ा,"विपिन, यूँ मत कर, मैं तो तेरी भाभी हूँ ना...।"मेरी बेकरारी बढ़ती जा रही थी। मेरी टांगें चुदने के लिये ऊपर होती जा रही थी। तभी उसने अपनी अंगुली मेरी चूत में घुसा दी और मेरे पास आकर मेरे स्तन उघाड़ कर चूसने लगा।मैं उसे शरम के मारे उसे धकेल रही थी पर चुदना भी चाह रही थी। मेरी दोनों टांगें पूरी उठ चुकी थी। इसी दौरान उसने अपना मोटा लण्ड मेरे मुख में घुसा दिया।हाय राम ! कब से मैं इसे चूसने के लिये बेकरार थी। मैंने गड़प से उसका लण्ड मुख में ले लिया और आँखें बन्द करके चूसने लगी। उसने भी अपने चूतड़ हिला कर अपने लण्ड को मुख में हिलाया। उसके लण्ड में बहुत रस जैसा था... मेरे मुख को चिकना किये दे रहा था।"भाभी, देखो तो आपकी टांगें चुदने के लिये कैसी उठी हुई हैं ... अब तो चुदा ही लो भाभी...!""देवर जी ना करो ! भाभी को चोदेगा ... हाय नहीं, मुझे तो बहुत शरम आयेगी...!""पर भाभी, आपकी टांगें तो चुदने के लिये उठी जा रही है" उसने लण्ड को मेरी चूत की तरफ़ झुकाते हुये कहा।"देवर जी, आप तो बहुत खराब है ... " मैंने तिरछी नजर का एक भरपूर वार किया।
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