है जब मैं कोलकाता में एक आर्ट कॉलेज में पढ़ता था। मेरे साथ संपा दीदी पढ़ती थी जो मुझसे एक साल सीनियर थी।
अंडमान आइलैंड से हम दोनों ही थे हमारे कॉलेज में, इस लिए संपा दीदी मुझे अपनी भाई की तरह मानती थी। गर्मियों की छुट्टी शुरू होने वाली थी तो दीदी ने कहा- संजय चलो इस बार हम दोनों शिप (जहाज) से अंडमान जायेंगे !
मैंने कहा – ठीक है दीदी मैं टिकेट ले लूँगा।
और फिर हम लोग निर्धारित दिन में जहाज में चढ़ गए।
कोलकाता से अंडमान आने के लिए ४ दिन लगते है। मैंने एक ही केबिन के टिकेट लिए थे। जहाज में चढ़ कर हमने खिड़की में से देखा कि शाम को ५.०० बजे जहाज बन्दर से छूटा और फिर धीरे धीरे कोलकाता का खिदिरपुर डॉक हमसे दूर होता जा रहा था। शाम के वक्त लाइट बहुत सुंदर दिख रही थी।
तभी दीदी ने कहा- भाई देखो कितनी सुंदर दृश्य नज़र आ रहा है, इस सीन का लैंड स्केप बना सकते है।
मैंने भी हाँ में हामी भरी। वक्त कटता गया, शाम के ७.०० बजे डिनर होता है जहाज में, इसलिए हम ७.३० तक डिनर खाकर अपने केबिन में आ गए। दीदी ने कहा- संजय ! इस केबिन में तो चार सीट हैं फिर हम दोनों के अलावा और किसी को इस केबिन का टिकेट नहीं मिला क्या?
मैंने कहा- दीदी शायद जहाज खाली जा रहा है, इसलिए जहाज में लोग भी कम नज़र आ रहे हैं।
थोड़ी देर की खामोशी के बाद दीदी बोली- भाई इतनी जल्दी तो नींद नहीं आने वाली ! चलो कपड़े बदल लेते हैं और फिर हम एक दूसरे के स्केच बनाते हैं। मैंने भी हाँ कहा और बाथरूम जाकर फ्रेश होकर एक नेक्कर और बनियान पहनकर बेड में बैठ गया।
दीदी ने कहा- दरवाजा बंद कर दो।
और बाथरूम जाकर फ्रेश होकर एक स्कर्ट और हल्का सा टाप पहन कर बाहर आई। मैं देखता रह गया कि दीदी कितनी सुंदर लग रही हैं, इससे पहले दीदी को कभी इन कपड़ो में नहीं देखा था।
दीदी को पता चला तो बोली – संजय ! क्या देख रहे हो ? तुमको ठीक से मेरी फिगर दिखाई दे इसलिए ही इन कपड़ो को पहना है ताकि तुमको मेरी स्केच बनने कोई परेशानी न हो !
फिर हम दोनों एक दूसरे के स्केच बनाने लगे। मेरी नज़र तो बार बार संपा दीदी की छाती पर जाकर रुक जाती थी और मेरे लिए अपने लण्ड को हाफ पैन्ट में छुपाना मेरे लिए मुश्किल हो रहा था क्योंकि दीदी की उभरी हुयी चुंचियाँ टॉप के भीतर से झाँकने लगी थी। दीदी को शायद पता चला या नहीं अचानक दीदी ने कहा- भाई क्या हुआ तुमको? क्या देख रहे हो? क्या कुछ दिक्कत हो रही है स्केच बनाने में या ठीक से दिख नहीं रही है मेरी फिगर ? चलो तुम्हारे लिए और थोड़ी एडजस्ट कर लेती हूँ, लकिन तुम भी अपना बनियान उतार कर बैठो, और फिर दीदी ने अपने स्कर्ट और टाप उतार दी।मेरी तो हालत ख़राब हो रही थी। पर मैं चुपचाप से दीदी की ब्रा में बंद उनके बड़े बड़े बूब्स को ही देख रहा था।
तभी दीदी ने कहा- क्या हुआ संजय? जल्दी से अपनी बनियान उतार दो, मुझे भी तो तुम्हारा स्केच बनाने है। और इस तरह क्या देख रहे हो? ठीक से स्केच बनाओ !
मैंने धीरे से अपने बनियान उतार दिया और फिर स्केच बनने लगा, पर मेरा लण्ड को हाफ-पैन्ट में छुप नहीं पा रहा था और मैं इधर उधर देखने लगा। शायद दीदी को मेरा लण्ड हाफ-पैन्ट में खड़ा होता दिख गया।
दीदी ने कहा- संजय ! क्या हुआ ? कभी इस तरह किसी लड़की को नहीं देखा क्या? तुम्हारी नियत तो ठीक है न ?
मेरा झूठ पकड़ में आ रहा था मेरा लण्ड पैंट के ऊपर से उफनता हुआ दिख रहा था।
“क्या बात है….. तुम्हारा मुंह लाल क्यूँ हो रहा है…….?”
मेरी नजरों के सामने दीदी की ब्रा में उभरी हुयी चुंचियाँ के भीतर से झाँकने लगी। मेरी नजरें उनके स्तनों पर गड़ गयी। दीदी ने नीचे से ही तिरछी नजरों से उसे देखा… और मुझे गर्माते देख कर सीधे चोट की……”संजय …. मेरी छाती में क्या देख रहे हो …झांक कर ?”
“हाँ… नही…. क्या….?” मैं बुरी तरह झेंप गया।
“अच्छा.. अब मैं बताऊँ……कि क्या देख रहे हो तुम…..” मैं एकदम से शरमा गया।
“दीदी … वो…नही….सो…. सॉरी…”
“क्या सॉरी….. एक तो चोरी…फिर सॉरी…….”
“दीदी …. अच्छी लग रही है देखने में …..सॉरी कहा न ”
मैं “हाँ… नही…. क्या….?” मैं बुरी तरह झेंप गया।
“अच्छा.. अब मैं बताऊँ……कि क्या देख रहे हो तुम…..” मैं एकदम से शरमा गया।
“दीदी … वो…नही….सो…. सॉरी…”
“क्या सॉरी….. एक तो चोरी…फिर सॉरी…….”
“दीदी … अच्छी लग रही थी…..सॉरी कहा न ”
दीदी मेरे पाइंट पर से लण्ड के उभार को देख रही थी। मैंने ऊपर हाथ रख लिया।
“नहीं देखो… इधर.. ” मैं शरमा गया। दीदी मुस्कुरा उठी।
“तो कान पकड़ो……..”
मैने अपने कान पकड़ लिए…… “बस…ना…”
हाथ हटाने पर लण्ड का उभार फिर से दिखने लगा। वो हंस पड़ी।
“नहीं देखो… इधर.. ” मैं शरमा गया। वो मुस्कुरा उठी।
अब मुझे समझ में आ गया था कि खुला निमंत्रण है। मेरा लण्ड का पूरा आकार तक दिखने लगा था। मैं उठ कर दीदी के पास आ गया। मैंने उनके कंधे पर हाथ रखा और कहा-”दीदी …..तुम्हारे भी तो उभार हैं…… एक बार दिखा दो…..न …प्लीज़ !”
मैंने दीदी की पूरे बदन को देखा और फिर अचानक ही …… दीदी को बिस्तर पर चित लिटा दिया और उनकी पीठ पर सवार हो गया. वो कुछ कर पाती, उनके पहले मैंने उसको जकड़ लिया. मेरे लण्ड का जोर उनके चूतड़ों पर महसूस होने लगा था।
दीदी हलके से चीखी ..”संजू ….. ये क्या कर रहे हो …?”
“दीदी …मुझसे अब नहीं रहा जाता है ….!”
मैंने तुंरत ही उनके होंट पर अपने होंट रख दिए। मुझे लगा कि शायद दीदी को मजा आने लगा था।
मैंने उनके भारी स्तनों को पकड़ लिया और स्तनों को मसलना चालू कर दिया। वो सिमटी जा रही थी। पर मैंने हाथों से उनके उभारों को मसलना जारी रखा। वो अपने को बचाती भी रही…पर मुझे रोका भी नहीं। जब मैंने उनके उभारों को अच्छी तरह से दबा लिया तब उसने मुझे पीछे की ओर धक्का दे दिया और कहा -”बहुत बेशरम हो गए हो….”
उनके हाथ से पेंसिल नीचे गिर गयी। वो जैसे ही उठ कर पेंसिल उठाने को झुकी, मैंने फिर से उनके स्तनों पर कब्जा कर लिया।
“क्या हुआ…. अब बस करो ….छोड़ दो न ….. ये मत करो …. संजू …..हटो न ..?”
” अरे ….. हट जा न …… हटो संजय …”
“मना मत करो दीदी !”
“देखो मैं चिल्ला पडूँगी ..”
‘नहीं नहीं …ऐसा मत करना ……. दीदी … प्लीज़ एक बार देखने दो न …!”
मैंने दीदी के नरम नरम गोल चूतड़ों को हाथ से सहला दिया। गोलाइयां सहलाते हुए अपना हाथ दोनों फाकों की दरार में घुसा दिया और फिर अपनी उंगली घुसा कर उनकी गांड के छेद को सहलाने लगा। मुझे बहुत आनंद आ रहा था। दीदी वैसे ही झुकी रही। अब मेरे हाथ उनकी चूत की तरफ़ बढ गए।
वो सिहर उठी। जैसे ही उनकी चूत पैन्टी के ऊपर से दबी… चूत का गीलापन मेरे हाथ में लग गया। अब मैंने उनकी चूत को भींच दिया पर जल्दी से हाथ हटा दिया। और दीदी सीधी खड़ी हो गयी।
मैं मुस्कुराया “दीदी .. मज़ा आ गया…. तुम्हें कैसा लगा…?”
“अब तुम बेशरमी ज्यादा ही दिखा रहे हो…. स्केच नहीं बनाने क्या…?” दीदी भी मुस्कुरा कर कहा।
मैंने कहा- नहीं दीदी प्लीज़ मुझे अभी कुछ और करना है ….. और मैंने दीदी को धक्का देकर बेड पर लिटा दिया और उनकी पीठ के ऊपर फिर से बैठ गया और मैंने अपना नेक्कर उतार दिया और दीदी की पैन्टी भी उतार दी।
अब मैं और दीदी नीचे से नंगे हो गए थे। मैंने फिर अपने लण्ड को उनके चूतड़ों पर दबाया, दीदी ने भी चूतड़ों को ढीला छोड़ दिया …और मेरा लण्ड उनकी गांड के छेद से टकरा गया।
दीदी ने फिर कहा-” अब बस करो ….छोड़ दो न ….. ये मत करो …. संजू …..हटो न …”
“आह संजू … मत करो …न …… देखो तुमने …क्या किया ?”
“दीदी ..कुछ मत बोलो …आज मैं तुम्हे छोड़ने वाला नहीं …. मेरी अपनी इच्छा जरूर पूरी करूँगा !”
मुझे तो आनंद आ रहा था … मैंने अपने लण्ड को दीदी की गांड के छेद से रगड़ना शुरू किया, दीदी चुप रही।
फिर अचानक मैंने दीदी को सीधा कर दिया … और अपना लण्ड उनको दिखाया …”देखो न दीदी … अपनी गांड से इसका क्या हाल किया है तुमने…”
उसने कहा ..”देख संजय …मैं हाथ जोड़ती हूँ … मुझे छोड़ दे अब … प्लीज़ ..”
” दीदी …सॉरी …. ये मेरे बस में नहीं है अब …… मैं अब पूरा ही मजा लूँगा ….. तुमने मुझे बहुत तड़पाया है ..”
मैंने उनकी ब्रा के हुक खोल दिए, उनके बूब्स को देख कर मेरा लण्ड ज़ोर ज़ोर से झटके खाने लगा तब सबसे पहले मैंने उनके निप्पल को चूपा। उनके निप्पल भी बड़े सख्त हो रखे थे और मुझे भी उन्हें चूपने का बड़ा मज़ा आ रहा था।
फिर मैं उनके बूब्स को दोनों हाथों से ज़ोर ज़ोर से दबाने लगा मेरे इस तरह करने से वो और ज़्यादा तड़पने लगी। तब मैंने उनकी चूत को देखा, उसकी चूत पर बाल नहीं थे और उनकी चूत बहुत मस्त लग रही थी। उनकी चूत को देख कर मेरे मुंह में पानी आ गया और मैं उनकी चूत को चाटने लगा। दीदी ज़ोर ज़ोर से चीखने लगी- आ आ आ आ ओ ऊ ऊ ओ ओ करने लगी
थोड़ी देर तक उनकी चूत चाटने के बाद मैंने देखा कि वो बहुत गरम हो चुकी थी लेकिन मैं उसको और गरम करना चाहता था इसलिए अब मैं अपने लण्ड को उनके पूरे बदन पर घुमाने लगा, पहले उनके चेहरे पर अपने लण्ड को लगाया फिर उनकी गर्दन पर, फिर उनके बूब्स पर, उनके निप्पल पर, उनके बूब्स के बीच में अच्छी तरह मैं अपने लण्ड को लगा रहा था। मेरे लण्ड से जो पानी निकल रहा था वो भी उनके पूरे बदन पर लग रहा था जिससे वो और ज़्यादा गरम हो रही थी। मैंने अपने लण्ड को उनके बूब्स के बीच में अच्छी तरह दबा दिया वो भी मेरे लण्ड को अपने बूब्स में रख कर ज़ोर ज़ोर से दबाने लगी।
८ इंच लंबा और ३ इंच मोटा लण्ड देखते ही उनके होश उड़ गए और वो कहने लगी कि नहीं संजू प्लीज़ मेरे साथ वो मत करना मुझे बहुत दर्द होगा। मैंने कहा- डरो मत दीदी मैं बिल्कुल दर्द नहीं करूँगा।
मगर वो मान ही नहीं रही थी।
तो मैंने उसको कहा कि क्या तुम मेरे इस हथियार को अपने मुंह में ले सकती हो?
उसने पहले तो मना किया पर फ़िर मेरे बार बार प्लीज़ कहने पर वो मान गई। अब वो मेरे लण्ड को चूस रही थी और मैं मानो जन्नत में था। उससे खूबसूरत लड़की को मैंने अपनी ज़िंदगी में नहीं देखा था और वो मेरा लण्ड चूस रही थी।
थोड़ी देर के बाद वो पूरे मज़े के साथ चुसाई का काम करने लगी और उसे भी खूब मज़ा आ रहा था। फिर क्या था मैंने अपना सारा माल दीदी की मुँह में ही डाल दिया। दीदी को शायद ख़राब लगा और उन्हें उलटी आने लगी।
मैं जल्दी से उनकी चूत पर झुक गया। मादक सी गंध आ रही थी। मैंने धीरे से अपने होंठ उनकी चूत पर रख दिये। वो तिलमिला उठी मैने अपनी जीभ उनकी चूत के होठों पर रख दी। वो सिसक पड़ी। होले होले मैं उनकी चूत की पूरी दरार चाटने लगा। वो तिलमिलाने लगी, तड़फ़ने लगी। मैंने अपनी जीभ की नोक उनकी चूत के छेद मे डाली और अन्दर तक ले गया। वो तड़फ़ती रही। मैं जोर जोर से चूत रगड़ने लगा। उनकी सिसकियां बढ़ने लगी। अब वो सारे बहाने छोड़ कर दोनों हाथो से मेरे सर को अपनी चूत पर दबाने लगी। तभी वो काँपने लगी और उनकी चूत ने पानी छोड़ दिया और मैं उसका सारा पानी पी गया।
मैंने देखा कि वो हांफ रही है ओर मेरी तरफ़ देख रही है, मैंने उनके कान के पास जाकर फुसफुसा के कहा- दीदी अब बोलो तुम्हे कैसा लगा ?
दीदी ने आँख खोली और गहरी साँस ली। मैं उनके ऊपर से नीचे आ गया, दीदी तुंरत बिस्तर पर से नीचे आ गयी। अब दीदी ने मुझे बेड पर लिटा दिया और मेरे ऊपर चढ़ कर लेट गई और मुस्कराया……उसने मुझे चूमना चालू कर दिया। एक हाथ नीचे ला कर मेरा मुरझाया हुआ लण्ड पकड़ लिया और उसे हिलाने लगी, मसलने लगी…….
लण्ड ने फिर से अंगडाई ली और जाग उठा. दीदी अपने हाथों में भर लिया और धीरे धीरे मुठ मारने लगी। कुछ ही देर में मेरा लण्ड चोदने के लिए तैयार था। दीदी मेरे ऊपर लेट गयी, अपनी दोनों टांगे फैला दी, लण्ड का स्पर्श चूत के आस पास लग रहा था। मैंने उनके होंट अपने होटों में दबा लिए। हम दोनों अपने आप को हिला कर लण्ड और चूत को सही जगह पर लेने की कोशिश कर रहे थे। उसने अपने दोनों हाथों से मुझे जकड़ लिया। मैंने अपनी जीभ उनके मुंह में घुसा दी।
अचानक मेरे अन्दर आनंद की तीखी मीठी लहर दौड़ पड़ी। मेरा लण्ड फिर एक बार और मर्दानगी दिखने के लिए उतावला हो गया। मैंने बाजी पलटी और दीदी को नीचे लिटा दिया और कहा- दीदी एक बार असली खेल भी खेल लेते हैं फ़िर बहुत मज़ा आएगा।
वो फ़िर भी घबरा रही थी लेकिन अब की बार थोड़ा सा ही समझाने पर वो तुरंत मान गई और मैंने मुंह से ढेर सारा थूक निकाल कर अपने लण्ड और उनकी चूत पर लगाया और अपना काम धीरे धीरे शुरू किया।
उसे बहुत दर्द हो रहा था और मेर लण्ड उनकी चूत में रास्ता बनाता हुआ अन्दर घुस गया। उनके मुंह से एक मीठी सी सिसकारी निकल पड़ी…”संजू …. अ आह हह हह हह….. सी ई स स स ई एई….!”
एक धक्का मारा मेरा आधा लण्ड उनकी चूत में चला गया। वोह चिल्लाई- आआआआअह ह्ह्ह्ह्ह्छ ह्ह्ह . ..,संजू …….धीरे !
उनके बाद मैंने धीरे धीरे पूरा लण्ड उनकी चूत में पेल दिया फिर धीरे धीरे धक्के मारने लगा, मैंने महसूस किया कि दर्द के मारे उनके आँखों से आंसू निकल आए थे। मैंने उनके गालो को चूम कर पूछा,” ज्यादा दर्द हो रहा है..?”
उसने जवाब दिया “इस दर्द को पाने के लिए हर लड़की जवान होती है.. इस दर्द को पाए बिना हर यौवन अधूरा है !”
मैं उनके इस जवाब पे बस मुस्कुरा ही पाया क्योंकि मेरे पास बोलने को कुछ था ही नही..
अब हम दोनों को बहुत मजा आ रहा था।
वो मुझ में लिपटी हुई थी…और मैं उसे चूम रहा था…वो मेरे नीचे थी और अपने पैरों को मेरे कमर के इर्द गिर्द लपेटे हुए थी मानो कोई सर्पिनी चंदन के पेड़ को अपने कुंडली से कसी हो..अब मैंने धीरे धीरे अपनी रफ़्तार तेज कर दी… पूरे केबिन में मादक माहौल था….. हमारी सिसकारियां ज़हाज के इस केबिन में ऐसे गूंज रही थी मानो जलजला आने से पहले बदल गरज रहे हो…
वो जलजला जल्द ही आया जब मैं अपने कमर की हरकतों की वजह से चरम सीमा पे पहुँचने वाला था .. उधर दीदी भी मुझे बोल रही थी…”.. संजू प्लीज और जोर से..और जोर से …मेरे शरीर में अजीब सी हलचल हो रही है “… मैं समझ गया कि वो भी चरम सीमा पे है…इस पर मैंने अपनी रफ्तार काफी तेज कर दी। देखते ही देखते हम उफान पर थे और सैलाब बस फूटने ही वाला था कि मैंने अपना लण्ड बाहर निकला और मानो मेरे लण्ड से कोई झरना फ़ूट पड़ा हो.. मैं वापस उनके बाँहों में निढाल हो गया ..
बहुत देर बाद जब मैं उठा और देखा कि संपा दीदी की जांघों पर खून गिरा है तब मैं समझ गया कि वो अभी तक अन्छुई थी .. मुझे ये देख कर अपने किस्मत पर गर्व हो रहा था और साथ ही साथ दीदी के बारे में सोचने लगा कि .. ऐसी लड़की नहीं थी कि किसी को भी अपना शरीर सौंप दे .. इतने दिनों से अकेले कोलकाता में रहने के बाद भी वो आज तक अन्छुई थी…
मैंने पास में पड़े तौलिए को उठाया और उनके बूर के ऊपर लगे खून को साफ़ करने लगा। जब खून साफ़ हुआ तो मैंने एक बात गौर की और मुस्कुराने लगा।
दीदी ने मुझ से पूछा कि”… तुम क्या सोच कर मुस्कुरा रहे हो ..?”
मैंने उनके बिल्कुल बिना बाल के गुलाब की पंखुड़ियों सी योनि-लबों को चूम कर के बोला… ” दीदी सच बताऊँ तो .. मैंने तुम्हारी बूर अभी तक नहीं देखी थी.. और साफ़ करते वक्त अभी ही देखा….!”
और हम दोनों हंस पड़े..
उस दिन से अगले 4 दिन तक आप समझ ही सकते है कि हमारे सैलाब में कितनी बार उफान आई होगी.. जब तक हम अंडमान नहीं पहुँचे।
No comments:
Post a Comment